विजय गुप्ता, सारस न्यूज, किशनगंज।
महाभारत काल से जुड़ा ऐतिहासिक कीचक बध स्थल में रविवार को लगी धार्मिक मेला, लाखों तीर्थयात्रियों और भक्तों से भरा हुआ देखा गया। यह किचक वध मेला किशनगंज जिले के भारत-नेपाल सीमा क्षेत्र गलगलिया के निम्बूगुड़ी से महज तीन किमी पर स्थित नेपाल के झापा जिला महेशपुर गाँव में माघी शुक्ल पूर्णिमा के दिन लगता है। ऐतिहासिक कीचकवध धार्मिक एवं पर्यटन स्थल संरक्षण समिति के अध्यक्ष दिल बहादुर थेबे ने बताया कि कोरोना महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से भले ही किचकवध धार्मिक मेले में अधिक भीड़ नहीं थी, लेकिन इस वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री एवं श्रद्धालुओं ने भाग लिया। धार्मिक मान्यता है कि माघी शुक्ल पूर्णिमा के दिन इस धार्मिक स्थल के तालाब में स्नान करने से मनोकामना पूरी होती है। भक्तों द्वारा तालाब में पैसे फेंकने, पान और पान के पत्तों से प्रार्थना करने और कबूतर उड़ाने की धार्मिक परंपरा है। भक्त उस मूर्ति की भी पूजा करते हैं जहां भीमसेन ने कीचक का वध किया था। इस मेले में भारत के राज्य बिहार,बंगाल तथा नेपाल के झापा,मोरंग,सप्तरी जिलों से श्रद्धालु विभिन्न मार्गों से नेपाल डोन्जो नदी के समीप उक्त स्थान पर माथा टेकने पहुंचते हैं। जानकारी के अनुसार महाभारत काल में बारह वर्ष के वनवास के उपरांत एक वर्ष के अज्ञातवास के दौरान राजा विराट की पत्नी महारानी सुदेशना का भाई तथा मतस्य देश के सेनापति कीचक का वध पांडव पुत्र भीम ने मल्य युद्ध में जिस स्थान पर किया था यह वही स्थान है जहाँ पर माघी पूर्णिमा के दिन विशाल मेला लगता है।जिसमें दोनों देशों के नागरिक हिन्दू रिति रिवाज से कीचक वध स्थली पर हर वर्ष पहुँच मेले में शामिल होते हैं।
महाभारतकालिन से जुड़ा है कीचक वध स्थल की कहानी
कीचक वध स्थल पर रह रहे पुरोहित ने महाभारतकालिन घटना से सम्बंधित उक्त स्थान के विषय में विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि पांडवों को एक वर्ष का अज्ञात वास गुजारना था पांडव अपना नाम व वेश भूषा बदल कर राजा विराट के दरबार में नौकरी करते थे। इसी दौरान सेनापति कीचक ने द्रौपदी जो शैरन्दी के नाम से नौकरानी थी उस पर गलत दृष्टि डालनी शुरू कर दी। किचक के गलत नियत की जानकारी जब द्रौपदी ने पांडव पुत्र भीम को दी जो उसी महल में रसोइया के रूप में कार्य कर रहे थे। तब योजनाबद्ध तरीके से द्रौपदी ने सेनापति किचक को अर्द्धरात्रि को नृत्यशाला में बुलाया जहाँ काफी देर तक चले मल्ययुद्ध में भीम ने किचक का वध कर दिया।
कीचक वध स्थल के पातालगंगा का महत्व
मेला कमिटी के अध्यक्ष दिल बहादुर थेवे, सचिव मदर करेल, उपाध्यक्ष अम्बिका थापा ने बताया कि मेला परिसर क्षेत्र में स्थित पातालगंगा का भी एक अलग महत्व है। चबूतरानुमा पातालगंगा के समीप शुद्ध मन व तन से किचक वध नाम, सत्यदेवी पातालगंगा धाम का जयकारा लगाने से पानी उबलने लगता है। मेला के दिन लाखों श्रद्धालु यहाँ मन्नत मांगने आते हैं। और पूर्ण होने पर श्रद्धालु फल फूल, बताशा, कबूतर, बकरा आदि का चढ़ावा चढ़ाते हैं। यहाँ पशु, पक्षी की बाली पर रोक है।
मौजूद अवशेष महाभारत काल के इतिहास से जुड़े होने की देते हैं गवाही
पाडवों ने बिहार एवं नेपाल की सीमा पर बसे ठाकुरगंज और इससे सटे नेपाल के महेशपुर में अज्ञात वाश बिताया था। यहाँ के विभिन्न जगहों पर मौजूद अवशेष इस बात की गवाही देते नजर आते हैं कि इस इलाके का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है।समय के साथ सब कुछ बदल जाने के बाद भी ठाकुरगंज, महेशपुर में पौराणिक अवशेष आज भी सुरक्षित है जिसे इतिहास के पन्नों में ”भीम तकिया, भातडाला, सागडाला और किचकबद्ध के नाम से स्थान दिया गया है। पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान महाभारत काल से जुड़े विभिन्न प्रकार के पुरातत्व भी पाया गया है।