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11 सितंबर को ब्रज चौरासी कोस यात्रा को लेकर सैकड़ों की संख्या में भक्तों का जत्था रवाना, परिक्रमा करने पर मोक्ष की होती है प्राप्ति।

सारस न्यूज टीम, किशनगंज।

किशनगंज शहर के धरमशाला रोड स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर परिसर से आगामी 11 सितंबर को ब्रज चौरासी कोस यात्रा को लेकर सैकड़ों की संख्या में भक्तों का जत्था रवाना होंगे। मंदिर के पुरोहित सुरजभान उपाध्याय ने बताया कि वृंदावन ब्रज चौरासी कोस यात्रा को लेकर भक्तजन काफी उत्साहित हैं। 11 सितंबर को रेलमार्ग द्वारा भक्तों का जत्था किशनगंज से रवाना होकर वृंदावन धाम पहुंचेंगे।

उन्होंने बताया कि वृंदावन पहुंचने के बाद भक्तजन 13 से 19 सितंबर तक होने वाले ब्रज चौरासी कोस की यात्रा में शामिल होंगे। श्री उपाध्याय ने बताया कि वेद-पुराणों में ब्रज की 84 कोस की परिक्रमा का काफी महत्व है। ब्रज भूमि भगवान श्रीकृष्ण एवं उनकी शक्ति राधा रानी की लीला भूमि है। श्री उपाध्याय ने बताया कि ब्रज की 84 कोस परिक्रमा के बारे में वाराह पुराण में बताया गया है।

कृष्ण की लीलाओं से जुड़े हैं 1100 सरोवरब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मथुरा के अलावा राजस्थान और हरियाणा के होडल जिले के गांवों से होकर गुजरती है। करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में परिक्रमार्थियों के विश्राम के लिए 25 पड़ाव स्थल हैं। इस पूरी परिक्रमा में करीब 1300 के आस-पास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं।

बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है। यज्ञ का मिलता है फलमान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने मैया यशोदा और नंदबाबा के दर्शनों के लिए सभी तीर्थों को ब्रज में ही बुला लिया था। 84 कोस की परिक्रमा लगाने से 84 लाख योनियों से छुटकारा पाने के लिए है।

परिक्रमा लगाने से एक-एक कदम पर जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि इस परिक्रमा के करने वालों को एक-एक कदम पर अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। साथ ही जो व्यक्ति इस परिक्रमा को लगाता है। उस व्यक्ति को निश्चित ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

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