नियमित जांच और सही जीवनशैली से मधुमेह से बचाव संभव मां बनना हर महिला का सपना होता है, लेकिन गर्भावस्था के नौ महीने चुनौतियों से भरे होते हैं। इस दौरान मां और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आजकल मधुमेह (डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप (बीपी) जैसी बीमारियां गर्भवती महिलाओं में सामान्य होती जा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था में मधुमेह का प्रभाव मां और शिशु दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है।
गर्भावस्था में मधुमेह क्यों है खतरनाक?
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. शबनम यास्मीन के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव इंसुलिन की कमी का कारण बन सकते हैं। इस स्थिति को गर्भावधि मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) कहा जाता है। यह उन महिलाओं को भी प्रभावित कर सकता है, जिन्हें पहले से मधुमेह नहीं है। इस स्थिति में शुगर का स्तर बढ़ने से मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
गर्भावधि मधुमेह के लक्षण
सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षणों की समय पर पहचान करना बहुत जरूरी है। मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
अत्यधिक थकान और मुंह का सूखना
बार-बार प्यास लगना और पेशाब आना
आंखों की रोशनी में कमी
बार-बार उल्टी और जी मिचलाना
त्वचा संक्रमण और घाव का देर से भरना
समय पर इलाज न होने के परिणाम
डॉ. शबनम यास्मीन का कहना है कि गर्भावधि मधुमेह का सही समय पर इलाज न होने से कई समस्याएं हो सकती हैं:
गर्भस्थ शिशु का आकार सामान्य से बड़ा हो सकता है, जिससे सिजेरियन डिलीवरी की आवश्यकता पड़ सकती है।
समय से पहले शिशु का जन्म या श्वसन संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
मां और शिशु दोनों में आगे चलकर टाइप-2 मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है।
कुछ मामलों में, गर्भावस्था के दौरान शिशु की मृत्यु भी हो सकती है।
मधुमेह से बचाव के उपाय
डॉ. राजेश कुमार के अनुसार, गर्भावस्था में मधुमेह से बचने के लिए जीवनशैली और आहार में सुधार करना जरूरी है:
संतुलित आहार:
फाइबर युक्त और कम वसा वाले भोजन को प्राथमिकता दें।
हरी सब्जियां, मौसमी फल, मछली और अंडा खाएं।
तले-भुने खाद्य पदार्थ और मीठे पेय पदार्थों से बचें।
नियमित व्यायाम:
प्रतिदिन 30-45 मिनट हल्का व्यायाम करें।
वजन पर नियंत्रण:
गर्भधारण से पहले वजन नियंत्रित करें और गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने पर नजर रखें।
नियमित जांच:
गर्भावस्था के दौरान मधुमेह और बीपी की नियमित जांच कराएं।
जागरूकता और सतर्कता है सबसे बड़ा उपाय
डॉ. शबनम यास्मीन कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान मधुमेह को नजरअंदाज करना गंभीर परिणाम दे सकता है। सही समय पर जांच, संतुलित आहार और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर गर्भवती महिलाएं इस समस्या से बच सकती हैं। मां और शिशु दोनों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सतर्कता और जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। डॉक्टर की सलाह मानें और हर कदम पर स्वास्थ्य का ख्याल रखें।
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
नियमित जांच और सही जीवनशैली से मधुमेह से बचाव संभव मां बनना हर महिला का सपना होता है, लेकिन गर्भावस्था के नौ महीने चुनौतियों से भरे होते हैं। इस दौरान मां और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य का ध्यान रखना बेहद जरूरी है। आजकल मधुमेह (डायबिटीज) और उच्च रक्तचाप (बीपी) जैसी बीमारियां गर्भवती महिलाओं में सामान्य होती जा रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था में मधुमेह का प्रभाव मां और शिशु दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है।
गर्भावस्था में मधुमेह क्यों है खतरनाक?
स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. शबनम यास्मीन के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान हार्मोनल बदलाव इंसुलिन की कमी का कारण बन सकते हैं। इस स्थिति को गर्भावधि मधुमेह (जेस्टेशनल डायबिटीज) कहा जाता है। यह उन महिलाओं को भी प्रभावित कर सकता है, जिन्हें पहले से मधुमेह नहीं है। इस स्थिति में शुगर का स्तर बढ़ने से मां और गर्भस्थ शिशु दोनों के स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ सकता है।
गर्भावधि मधुमेह के लक्षण
सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि गर्भावस्था में मधुमेह के लक्षणों की समय पर पहचान करना बहुत जरूरी है। मुख्य लक्षण इस प्रकार हैं:
अत्यधिक थकान और मुंह का सूखना
बार-बार प्यास लगना और पेशाब आना
आंखों की रोशनी में कमी
बार-बार उल्टी और जी मिचलाना
त्वचा संक्रमण और घाव का देर से भरना
समय पर इलाज न होने के परिणाम
डॉ. शबनम यास्मीन का कहना है कि गर्भावधि मधुमेह का सही समय पर इलाज न होने से कई समस्याएं हो सकती हैं:
गर्भस्थ शिशु का आकार सामान्य से बड़ा हो सकता है, जिससे सिजेरियन डिलीवरी की आवश्यकता पड़ सकती है।
समय से पहले शिशु का जन्म या श्वसन संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
मां और शिशु दोनों में आगे चलकर टाइप-2 मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है।
कुछ मामलों में, गर्भावस्था के दौरान शिशु की मृत्यु भी हो सकती है।
मधुमेह से बचाव के उपाय
डॉ. राजेश कुमार के अनुसार, गर्भावस्था में मधुमेह से बचने के लिए जीवनशैली और आहार में सुधार करना जरूरी है:
संतुलित आहार:
फाइबर युक्त और कम वसा वाले भोजन को प्राथमिकता दें।
हरी सब्जियां, मौसमी फल, मछली और अंडा खाएं।
तले-भुने खाद्य पदार्थ और मीठे पेय पदार्थों से बचें।
नियमित व्यायाम:
प्रतिदिन 30-45 मिनट हल्का व्यायाम करें।
वजन पर नियंत्रण:
गर्भधारण से पहले वजन नियंत्रित करें और गर्भावस्था के दौरान वजन बढ़ने पर नजर रखें।
नियमित जांच:
गर्भावस्था के दौरान मधुमेह और बीपी की नियमित जांच कराएं।
जागरूकता और सतर्कता है सबसे बड़ा उपाय
डॉ. शबनम यास्मीन कहती हैं कि गर्भावस्था के दौरान मधुमेह को नजरअंदाज करना गंभीर परिणाम दे सकता है। सही समय पर जांच, संतुलित आहार और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर गर्भवती महिलाएं इस समस्या से बच सकती हैं। मां और शिशु दोनों के अच्छे स्वास्थ्य के लिए सतर्कता और जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। डॉक्टर की सलाह मानें और हर कदम पर स्वास्थ्य का ख्याल रखें।
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