राहुल कुमार, सारस न्यूज, किशनगंज।
किशनगंज के धर्मशाला रोड स्थित पार्श्वनाथ भवन में विराजमान आचार्य प्रमुख सागर जी महाराज ने अपने प्रवचन में मोह को सभी कर्मों का राजा बताते हुए कहा कि मोह के कारण ही व्यक्ति संसार के भ्रमण में पड़ा रहता है। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे एक ग्वाला अपनी गाय को चरने के लिए ले जाता है और शाम को उसे खूंटे पर बाँध देता है, वैसे ही मोह हमें रोज़ाना की दिनचर्या में बाँध देता है।
आचार्य श्री ने कहा, “मोह हमें भौतिक वस्तुओं की ओर आकर्षित करता है, सुख का भ्रम कराता है, लेकिन ये सभी सुखभास हैं — अस्थायी हैं। अंततः सब कुछ यहीं रह जाता है, साथ कुछ नहीं जाता। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को मोह से बचना चाहिए और आत्मकल्याण की दिशा में बढ़ना चाहिए।”
आचार्य श्री के साथ संघ में मुनि श्री प्रभाकर सागर जी, आर्यिका प्रतिज्ञा माता जी, आर्यिका प्रतिभा जी, आर्यिका परीक्षा माता जी, आर्यिका पृक्षा माता जी, आर्यिका प्रमत्थिया माता जी, क्षुल्लक प्रगुण सागर जी, परमानंद सागर जी, क्षुल्लिका आराधना श्री, क्षुल्लिका परमसाध्य श्री और क्षुल्लिका परमशांता श्री सहित अन्य संत विराजमान हैं।
प्रतिदिन प्रातःकाल पार्श्वनाथ भवन में धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है, जिसमें जैन समाज के श्रद्धालु सम्मिलित होते हैं। इसके उपरांत आहार चर्या का कार्यक्रम संपन्न होता है। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जैन संत दिन में केवल एक बार खड़े होकर अन्न-जल ग्रहण करते हैं — यह तप और संयम का अनुपम उदाहरण है।
