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फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को बेहतर देखभाल के लिए मिली एमएमडीपी किट।

05 फाइलेरिया मरीजों को किट के साथ यूडीआईडी सर्टिफिकेट दिया गया

फाइलेरिया से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी

स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को देखभाल की दी जा रही नियमित जानकारी

हाथीपांव के साथ जीवन कठिन और बोझिल हो जाता है। यह आवश्यक है कि मरीज फ़ाइलेरिया का प्रबंधन कैसे करें, इसे जानें और इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं। फाइलेरिया उन्मूलन मुहिम को लेकर जिले में स्वास्थ्य विभाग काफी सजग है। जिले को फाइलेरिया मुक्त बनाने के लिए स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। जिले के प्रखंडों में 1846 मरीजों के लिए फाइलेरिया क्लीनिक एमएमडीपी की शुरुआत की गई है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में फाइलेरिया से ग्रसित मरीजों को प्रभावित अंग की बेहतर देखभाल के लिए ठाकुरगंज सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 05 फाइलेरिया ग्रसित मरीजों को मोरबिडिटी मैनेजमेंट एंड डिसेबिलिटी प्रिवेंशन (एमएमडीपी) किट एवं यूडीआईडी सर्टिफिकेट प्रदान किए गए। सभी मरीजों को किट प्रदान करते हुए स्वास्थ्य अधिकारियों ने उन्हें फाइलेरिया ग्रसित अंगों की देखभाल और नियमित रूप से आवश्यक दवाइयों का उपयोग करने की जानकारी दी। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग ने मरीजों को फाइलेरिया से सुरक्षित रहने के लिए अपने घर और आसपास के लोगों को जागरूक करने का संदेश भी दिया।

मरीजों को सावधानी रखते हुए ग्रसित अंगों की देखभाल की जानकारी दी गई

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि फ़ाइलेरिया ग्रसित मरीजों का सम्पूर्ण इलाज संभव नहीं है, लेकिन इसे नियंत्रित रखा जा सकता है। इसके लिए मरीजों को प्रभावित अंगों की सही देखभाल करना जरूरी है। ज्यादातर लोगों के पैर फाइलेरिया से ग्रसित होते हैं, जिसे आमतौर पर हाथीपांव कहा जाता है। ऐसे में लोगों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए। प्रभावित अंगों को नियमित रूप से डेटॉल साबुन से साफ करना और उस पर एंटीसेप्टिक क्रीम लगाना चाहिए। इससे अंगों को नियंत्रित रखा जा सकता है। उन्होंने यह भी बताया कि पैर के अतिरिक्त लोगों के हाथ, हाइड्रोसील, और महिलाओं के स्तन भी फाइलेरिया से प्रभावित हो सकते हैं। समय पर पहचान और आवश्यक चिकित्सकीय सहायता से इसे नियंत्रित रखा जा सकता है।

फाइलेरिया से बचाव के लिए जागरूकता जरूरी

सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि फाइलेरिया विशेष रूप से परजीवी क्यूलैक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के काटने से होता है, जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में मानसुनिया मच्छर भी कहा जाता है। जब यह मच्छर किसी फाइलेरिया से ग्रसित व्यक्ति को काटता है, तो वह उसके शरीर से फाइलेरिया के विषाणु उठाकर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटते समय उसके शरीर में पहुंचा देता है। इससे फाइलेरिया के विषाणु रक्त के जरिए स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर उसे भी प्रभावित कर देते हैं। फ़ाइलेरिया का कोई विशेष इलाज नहीं है, लेकिन जागरूकता और सावधानी से इससे बचाव संभव है। डॉ. कुमार ने बताया कि फाइलेरिया न केवल शारीरिक विकलांगता का कारण बनता है, बल्कि मरीज की मानसिक स्थिति पर भी बुरा असर डालता है। अगर समय रहते इसकी पहचान कर ली जाए तो इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है।

स्वास्थ्य विभाग द्वारा मरीजों को देखभाल की दी जा रही नियमित जानकारी

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण सलाहकार अविनाश रॉय ने कहा कि फाइलेरिया के मरीजों की देखभाल के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा नियमित रूप से ध्यान रखा जाता है। समय-समय पर मरीजों को एमएमडीपी किट प्रदान की जाती है, जिसमें एक टब, मग, कॉटन बंडल, तौलिया, डेटॉल साबुन, और एंटीसेप्टिक क्रीम शामिल होते हैं। यह सामग्री मरीजों को फाइलेरिया ग्रसित अंगों की देखभाल में मदद करती है। साथ ही मरीजों को फ़ाइलेरिया से सुरक्षित रहने के प्रति जागरूक किया जाता है। फाइलेरिया के लक्षण सामान्य रूप से शुरू में दिखाई नहीं देते, लेकिन इसके परजीवी शरीर में प्रवेश करने के बाद इसके लक्षण पांच से दस साल के भीतर दिखाई दे सकते हैं। यह बीमारी शरीर को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाती है और इसका कोई ठोस इलाज नहीं है, लेकिन सही देखभाल और सावधानी से जटिलताओं से बचा जा सकता है।

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