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विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया।
उगते सूरज की लालिमा
विहंग-झुंड का शोर,
मन के तारों को छु जाति
यह बसंती भोर।
मध्यम-मध्यम पवन चले है
फूल खिले हैं डाली,
देख-देख अपनी बगिया को
हर्षित होता माली।
आमोद छाया वन बागों में
हरियाली छाई चहूँ ओर,
चिड़िया गाती गीत सुहाने
पवन मचाये शोर।
आमों की बगिया फूली है
कोयल कु-कु गाती,
कभी धूप है, कभी बौछारें
मन को बहुत लुभाती।
तन-मन दोनों रंग जाते हैं
मन का नाचे मोर,
धरती पे तरुणाई छाई
यह बसंती भोर।
बिंदु अग्रवाल
विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया।
उगते सूरज की लालिमा
विहंग-झुंड का शोर,
मन के तारों को छु जाति
यह बसंती भोर।
मध्यम-मध्यम पवन चले है
फूल खिले हैं डाली,
देख-देख अपनी बगिया को
हर्षित होता माली।
आमोद छाया वन बागों में
हरियाली छाई चहूँ ओर,
चिड़िया गाती गीत सुहाने
पवन मचाये शोर।
आमों की बगिया फूली है
कोयल कु-कु गाती,
कभी धूप है, कभी बौछारें
मन को बहुत लुभाती।
तन-मन दोनों रंग जाते हैं
मन का नाचे मोर,
धरती पे तरुणाई छाई
यह बसंती भोर।
बिंदु अग्रवाल
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