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बिंदु अग्रवाल की कविता #17 (बसंती भोर)

विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया।

उगते सूरज की लालिमा
विहंग-झुंड का शोर,
मन के तारों को छु जाति
यह बसंती भोर।

मध्यम-मध्यम पवन चले है
फूल खिले हैं डाली,
देख-देख अपनी बगिया को
हर्षित होता माली।

आमोद छाया वन बागों में
हरियाली छाई चहूँ ओर,
चिड़िया गाती गीत सुहाने
पवन मचाये शोर।

आमों की बगिया फूली है
कोयल कु-कु गाती,
कभी धूप है, कभी बौछारें
मन को बहुत लुभाती।

तन-मन दोनों रंग जाते हैं
मन का नाचे मोर,
धरती पे तरुणाई छाई
यह बसंती भोर।

  बिंदु अग्रवाल

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