विजय गुप्ता, सारस न्यूज़, गलगलिया, किशनगंज।
भारत-नेपाल सीमावर्ती क्षेत्र के गलगलिया, भद्रपुर, चुरली में शनिवार को सुहागिनों का महापर्व वट सावित्री मनाया गया। वट सावित्री पर्व को लेकर बाजारों में एक दिन पूर्व ही चहल-पहल देखी गई। खास कर नव विवाहिताओं में वट सावित्री पर्व को लेकर उमंग व उत्साह का माहौल था। वट सावित्री पर्व को पर्यावरण संरक्षण का पर्व भी माना जाता है। क्योंकि, इस दिन सुहागिन बरगद पेड़ की पूजा करती हैं। वहीं, पेड़ में रक्षा सूत्र भी बांधती है। एक तरीके से महिलाएं बरगद के पेड़ में देवत्व का दर्शन करती हैं। वहीं, इस पर्व के मौके पर सावित्री सत्यवान कथा का भी सुहागिन अनुश्रवण करती हैं। वट सावित्री पूजा के संबंध में भातगाँव पंचायत के उप-सरपंच रीना देवी सहित संगीता देवी,,निर्मला देवी, अनीता देवी आदि सुहागिन महिलाओं ने बताया की यह पूजा महिलाएं सामूहिक रूप से करती है। इस पूजन के समय महिलाएं वट वृक्ष में जल फूल, प्रसाद को अर्पण कर रक्षा सूत्र बांधकर करती हैं। इस क्रम में महिलाएं देशज भक्ति गीत गाते हुए आस्था के इस पूजनोत्सव में शामिल होती हैं। पूजन के क्रम में वट सावित्री पूजन कथा का वाचन भी किया जाता है। जिसमें पतिव्रता सावित्री द्वारा पति के लिए यमराज से संघर्ष की कहानी है। इसके पश्चात उपस्थित लोगों के बीच चना, शक्कर, पकवान, मिष्टान प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है। 
वट सावित्री पूजन कथा
वट सावित्री पूजन कथा जिसमें बताया गया है कि अश्वपति राजा की पुत्री सावित्री का विवाह राजा ध्रुमसेन के पुत्र सत्यवान से हुआ था। जबकि नारद मुनि ने सत्यवान के बारे में सावित्री को पहले बता चुके थे कि यह लड़का अल्पायु है। फिर भी सावित्री हठ कर अल्पायु सत्यवान से शादी की। अल्पायु होने से सत्यवान की मृत्यु शादी के कुछ ही दिनों बाद हो गई। यमराज सत्यवान के आत्मा को ले जाने लगा तब सावित्री पति के कारण यमदूत के पीछे-पीछे चलने लगी। बहुत दूर जाकर यमराज ने देखा कि सावित्री भी उसके पीछे चल रही है। यमराज उसे लौट जाने को कहा। वह एक ना मानी तो यमराज ने उससे पीछा छुड़ाने के लिए उसे वर मांगने के लिए कहा। सावित्री ने सबसे पहले अपने अंधे ससुर अश्वपति की आंख की खोई ज्योति के साथ अपना खोया राज वापस मांग लिया। उसके बाद यमराज आगे बढ़ा और बढ़ते चला तो देखा कि सावित्री फिर भी उसके पीछे ही चल रही है। यमराज रुका और कहा सावित्री अब तुम लौट जाओ। फिर भी वह एक न मानी। तब यमराज ने कहा एक और वर मांग कर सावित्री तुम लौट जाओ। सावित्री ने अपने लिए पुत्र प्राप्ति की मांग की। यमराज ने वह भी वर दे दिया। तब सावित्री ने यमराज से कहा आपने मुझे पुत्र वर दिया है। मैं पतिव्रता नारी अपने पति के बगैर मैं कैसे पुत्र प्राप्त कर सकती हूं। तब यमराज दिए वरदान को ले संशय में फंस गया और दिए वरदान को ले यमराज ने कहा सावित्री तुम्हारे पति व्रत का फल है कि मैं तुझे पति वापस कर रहा हूं। इसको लेकर संसार तुम्हारी पतिव्रत की पूजा सदैव करता रहेगा। इसीलिए वट-सावित्री की पूजा सौभाग्यवती महिलाएं ज्येष्ठ मास के अमावश के दिन प्रत्येक वर्ष बरगद पेड़ के नीचे बैठकर करती हैं। ताकि उनके पति वटवृक्ष की तरह लंबी आयु प्राप्त कर सके।
