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बिंदु अग्रवाल की कविता # 59 (शीर्षक:- क्योंकि मैं औरत हूं…)

सारस न्यूज, गलगलिया।

क्योंकि मैं औरत हूं…

तुम्हारा फोन बंद आ सकता है ।
पर मेरा फोन बंद नहीं आ सकता ..।

तुम्हारा फोन व्यस्त हो सकता है ।
पर मेरा फोन व्यस्त नहीं हो सकता..।

तुम फोन ना उठाओ कोई बात नहीं।
पर मैं फोन ना उठाऊं यह हो नहीं सकता..।

सबको थकान हो सकती है ।
मेरा शरीर नहीं थक सकता ..।

तुम्हें घर आने में लेट हो सकती है ।
पर मुझे लेट नहीं हो सकती ..।

तुम जब मन तब तक सो सकते हो।
मैं अपनी मर्जी से सो नहीं सकती ..।

तुम हर किसी के सामने हंस सकते हो।
मैं सबके सामने हंस नहीं सकती ..।

तुम हर किसी से बात कर सकते हो ।
मैं किसी से बात नहीं कर सकती ..।

तुम्हें जागने में देर हो सकती है।
पर मुझे जागने में देर नहीं सकती..।

तुमसे गलतियां हो सकती है।
मुझसे भूल हो नहीं सकती..।

तुम्हें आजादी है मनमानी करने की।
और मैं ख्वाब भी नहीं देख सकती..।

मुझे हक नहीं अपनी जिंदगी जीने का
क्योंकि मैं औरत हूं……।

नोट: यहां “मैं” से तात्पर्य उन तमाम महिलाओं से है
जो इन हालातों से गुजरी है या गुजर रही है।
बाकी सभी महिलाओं को मेरा सादर प्रणाम।

कवियित्री :- बिंदु अग्रवाल

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