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बिंदु अग्रवाल की कविता # 40 (शीर्षक:- धीरे-धीरे भूलना हमें)

विजय कुमार गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।

धीरे-धीरे भूलना हमें

भूल जाओ तुम हमें
यह तुम्हारे दिल की बात है,
पर हाँ! धीरे-धीरे भूलना हमें
जैसे धीरे धीरे घर बनाए हो
मेरे अंदर और मिटा रहे
हो वजूद मेरा।

अचानक ही आये थे
मेरी जिंदगी में तुम।
पर दिल तो जुड़ा था
धीरे-धीरे ही तुमसे।

धीरे-धीरे ही तोड़ना
मेरे दिल को तुम।
ताकि तकलीफ ना हो मुझे
दिल के टुकड़ों को समेटने में।

प्रश्न चिन्ह ना लगाना
मेरी चाहत पे तुम,
बोल कर जाना की तुम
जा रहे हो हमेशा के लिए।

फिर रोक लेंगे हम
अपनी आँखों को
यादों के रेगिस्तान में
तुम्हें खोजने से।
ना भटके उन विरानों में
जहां तुम्हारे निशां तक नहीं।

पर हां!दिल तोड़ने से पहले
यह भी याद रखना “प्रिये”
तुम भी रहते हो इस दिल में
तोड़ोगे अगर इसे तो
तुम भी टूट जाओगे।
टूट गए जो इक बार
तो फिर कैसे जुड़ पाओगे?

बिंदु अग्रवाल (किशनगंज, बिहार)

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