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बिंदु अग्रवाल की कविता #86( शीर्षक-“मुझे पढ़ाओ पापा”)।

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

मुझे पढ़ाओ पापा

मुझे आगे बढ़ाओ पापा
हाँ मुझे पढ़ाओ पापा।
न दो मुझे उंगली का सहारा
मुझे चलना सिखाओ पापा।

किताबों का दो उपहार मुझे
दहेज न तुम जमाओ पापा।
मैं भी तो तुम्हारा हिस्सा हूँ
ज्ञान से मुझे सजाओ पापा।

सक्षम इतना बनाओ मुझे
न औरत होने का कलंक मिले
न दहेज लोभियों के हाथों
जलता शरीर जीवंत मिले

बेटी हूँ तो क्या हुआ ???
मैं तो किसी पर बोझ नहीं।
छोड़ जमाना,डालो पापा
तुम अपने अंदर सोच नई।

हाँ मैं तन से कोमल हूँ,
पर मैं तो कमजोर नहीं।
मै भी बनकर सूरज चमकूँ,
लाऊं जग में भोर नई।

आसमान में बन ध्रुव तारा
मैं जग को राह दिखाऊंगी।
शिक्षा की ज्योति से जगमग हो
मैं प्रकाश फैलाऊंगी।

बिंदु अग्रवाल
शिक्षिका मध्य विद्यालय गलगलिया
किशनगंज बिहार

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