हो पंथ पथरीला,सुनो पथिक! तुम रुक ना जाना राहों में…। मंजिल मिलती है सदा ही, मुश्किलों की बाहों में।।
मेहनत से डर कर ना जीवन, व्यर्थ गंवाना आहों में। खुशियां मिलती नही यहां बेमतलब की चाहों में।
लहू गिरे जो समर भूमि में, उठा भाल पर तिलक करो। हुंकार भरो,आगे बढ़ों तुम बाधाओं से ना कभी डरो।
जरा- जरा सी बातों से घबरा जाए वो वीर नही। व्यर्थ गंवाए वक्त खेल में पछताए वो धीर नही। हो कर्मवीर तुम कर्म करो जीवन कर्म सिखलाता है। जो हार ना माने कभी किसी से ईश्वर को वो ही भाता है।
सुनो पथिक तुम अपने पथ पर जलते,तपते तुम अड़े रहो। हो लाख मुसीबत जीवन में चट्टान बने तुम खड़े रहो।।
हो पंथ पथरीला,सुनो पथिक! तुम रुक ना जाना राहों में…। मंजिल मिलती है सदा ही, मुश्किलों की बाहों में।।
मेहनत से डर कर ना जीवन, व्यर्थ गंवाना आहों में। खुशियां मिलती नही यहां बेमतलब की चाहों में।
लहू गिरे जो समर भूमि में, उठा भाल पर तिलक करो। हुंकार भरो,आगे बढ़ों तुम बाधाओं से ना कभी डरो।
जरा- जरा सी बातों से घबरा जाए वो वीर नही। व्यर्थ गंवाए वक्त खेल में पछताए वो धीर नही। हो कर्मवीर तुम कर्म करो जीवन कर्म सिखलाता है। जो हार ना माने कभी किसी से ईश्वर को वो ही भाता है।
सुनो पथिक तुम अपने पथ पर जलते,तपते तुम अड़े रहो। हो लाख मुसीबत जीवन में चट्टान बने तुम खड़े रहो।।
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