सारस न्यूज, वेब डेस्क।
हाँ.. मैं मजदूर हूँ
आधार स्तम्भ हूं देश का,
अर्थव्यवस्था की नींव हूं
हाँ मैं मजदूर हूं।
जेठ की चिलचिलाती धूप हो,
या हो सावन की बौछार।
पत्थरों को तोड़ता मै,
रुकते नही मेरे प्रहार।
हाथों में पड़ते छाले,
थक कर मैं चूर हूं,
हाँ.. मैं मजदूर हूँ।
खुद झोपड़ी में रहता,
महल गैरों के सजाता हूं।
खुद चीथड़ों से तन ढकता,
कपड़े दूसरों के लिये बनाता हूँ।
अनवरत मै करता मेहनत,
ऊर्जा से भरपूर हूँ।
हाँ… मैं मजदूर हूँ।
अगर मैं ना रहूं तो….
कौन बुनेगा धागों को?
कौन खेतों में हल चलाएगा?
कौन बनाएगा मॉलों को?
कौन नहरों में नीर बहायेगा?
कैसे बनेंगे मंदिर मस्जिद,
कौन गुरुद्वार बनाएगा?
मैं ही सजाता हूँ धरती को,
मैं बेरंग वह नूर हूँ।
इसलिए तो गर्व से कहता हूँ..
हाँ….मैं “मजदूर”हूँ
हाँ…. मैं”मजदूर”हूँ
बिंदु अग्रवाल (किशनगंज, बिहार)