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बिंदु अग्रवाल की कविता # 63 (शीर्षक:-भीगते एहसास…)

भीगते एहसास

वह जो प्रेम था तुम्हारा मेरे लिए
क्या वह सच था या मेरे दिल का भुलावा
वह जो तड़प थी मुझे नजर भर देखने की
हकीकत थी या मेरी नजरों का छलावा
क्या भ्रम मात्र था मेरे दिल का कि
मेरे एहसासों में तुम भी शामिल हो
और भीगते हो मेरे साथ तुम भी
यादों की बारिश में और गोते लगाते हो
ख्यालों के समंदर में मेरी तरह तुम भी
चुन लाते हो मोती हमारी चाहत के
वह चाहत जिसकी चमक कभी कम ना होगी
कुछ ऐसा ही कहा था तुमने कभी।
साथ मिलकर कसमे खाई थी दोनों ने
पास रहे या दूर साथ रहे चाहे ना रहे
कभी मिले या फिर कभी ना मिले
पर दिल में चाहत के फूल हमेशा खिले रहेंगे
ना मिलें तुमसे कभी तो कोई गम नहीं
दिल ही दिल में चाहेंगे तुम्हें और
ख्यालों में तुमसे रोज मिला करेंगे।

बिंदु अग्रवाल

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