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बिंदु अग्रवाल की कविता # 64 (शीर्षक:-हे जग के पालनहार प्रभु…)

हे जग के पालनहार प्रभु !

हे जग के पालनहार प्रभु!
सुन लो करुण पुकार प्रभु।
जग करता त्राहिमाम प्रभु ,
है कष्ट में हर इंसान प्रभु।
हे जग के पालनहार प्रभु !
कुछ तो करो उपचार प्रभु!

मानव ने मानवता भूली,
लिया रूप हैवानों का ।
राम-लखन की पावन भूमि,
अब ठेक बनी शैतानों का।
ईमान की नैया डगमग डोले,
थामों अब पतवार प्रभु ।
हे जग के पालनहार प्रभु !
कुछ तो करो उपचार प्रभु !

नजर लग गई तेरी सृष्टि को ,
सजक करो अपनी दृष्टि को ।
अब तो तंद्रा भंगकरो,
मिलकर हमारे संग चलो।
डालो हाथों में हाथ प्रभु ।
हे जग के पालनहार प्रभु !
कुछ तो करो उपचार प्रभु!

कहीं बेटियां कुचली जाती,
कहीं पर धरती डोले।
कहीं पर फटता बादल,
मानव बहुत हो गया बोल ।
अब रोको तूफानी लहरों को
कुछ तो करो चमत्कार प्रभु ।
हे जग के पालनहार प्रभु !
कुछ तो करो उपचार प्रभु!

बिंदु अग्रवाल

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