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बिंदु अग्रवाल की कविता # 65 (शीर्षक:-बाकी है…)

बाकी है

दिल में मेरे जख्मों के निशान अभी बाकी है ।
ठहर जाओ जिस्म में मेरी जान अभी बाकी है।।

रूठने के तो बहाने बहुत है जिंदगी में मगर।
तुम्हें मनाऊं जो मैं वह शाम अभी बाकी है।।

एक ख्वाब था जो ख्वाब अधूरा ही रह गया।
तुम्हें जिंदगी में पाने का अरमान अभी बाकी है।।

कोई नशा नहीं बस तेरी आदत सी है जरा।
तेरी आंखों से जो छलके वह जाम अभी बाकी है।।

चाहे सोचे कुछ भी जमाना हमें कोई गम नहीं।
मुझे मेरी चाहत पर अभिमान अभी बाकी है।।

तेरे बिना दिल मेरा कहीं लगता ही नहीं।
कैसे कह दूं दिल लगाने को पूरा जहान अभी बाकी है।।

Bindu Agarwal

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