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बिंदु अग्रवाल की कविता #72 (शीर्षक:-आत्म शक्ति…)

आत्म शक्ति

है तुझ में धैर्य हिमालय सा
है तुझ में शक्ति धरा सी प्रबल ।
है शीतलता तुझ में चंदा सी
है तेज तुममें दिनकर सा प्रखर।

है मंथन गहरा सागर सा जिसमें में
अपनी लहरों पर है कमान कसी।
जिसने वार सहे सीने पर,
उसमें शक्ति सृजन की बसी।

जिसने कांटों पर खिलना सीखा
बनकर फुल महकना सीखा।
अपने मार्ग की बाधा से लड़कर
जिसने पथ पर बढ़ना सीखा।

गीली मिट्टी सा बनकर जिसने
हर ढांचे में ढलना सिखा ।
अपने श्रम की फसल को हरपल
बहा पसीना जिसने सिंचा।

बीच भंवर हो तूफानी लहरें
अपनी पतवार संभाली जिसने।
ना रहे वक्त के कभी भरोसे
पत्थर से नीर बहाए उसने।

सत्य ,अहिंसा ,धैर्य ,धर्म का
है हाथ थाम कर चलते जो।
चमक चांद सी उनमें होती,
नभ में सूरज सा चमकते वो।

आओ मिलकर आव्हान करें
एक पल ना कभी आराम करें।
इस नश्वर होती दुनिया में,
शाश्वत में अपना नाम करें।

बिंदु अग्रवाल (सुमन)

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