जल वायु परिवर्तन राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार की निर्देशन में स्वास्थ्य विभाग के राष्ट्रीय कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य के अंतर्गत एक दिवसीय अंतर्विभागीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन सदर अस्पताल स्थित एएनएम् स्कूल प्रांगन में किया गया। उन्मुखीकरण कार्यशाला के आरंभ में पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से जिले के संबंधित अधिकारियो से चर्चा करते हुए मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के कारण पडने वाले प्रभावों के विषय में गंभीर चर्चा की गई। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हो रही वृद्धि , समुद्र तल का पानी बढ़ने (बर्फ के पिघलने) , पानी के अम्लीकारण होने से बढ़ रही बीमारियों , शहरीकरण इत्यादि एवं भविष्य में इसके दुष्प्रभाव को रोकने के बिंदु चर्चा में सम्मिलित रहे। उक्त कार्यक्रम में जिले के स्वास्थ्य विभाग के सीडीओ , डीएस ,डीआईओ, डीपिएम् , डीडीए सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी , बीएचएम् , बीसीएम एवं सहयोगी संस्था के पदाधिकारी उपस्थित हुए।
जलवायु से संबंधित घटनाएँ मानव स्वास्थ्य को दो तरह से प्रभावित करती हैं।
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की जलवायु से संबंधित घटनाएं मानव स्वास्थ्य को दो तरह से प्रभावित करती हैं। वे सीधे तौर पर बीमारी, चोट, मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि और जीवन की हानि (जैसे, बवंडर, तूफान या अन्य चरम मौसम की घटना) का कारण बन सकती हैं। और अप्रत्यक्ष रूप से जनसंख्या के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुँचाकर, देखभाल या सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच और आर्थिक प्रणालियों पर प्रभाव (जैसे, चरम मौसम की घटना के द्वितीयक परिणाम के रूप में) के माध्यम से जीवन की स्थितियों को बाधित करती हैं। प्राकृतिक आपदाएँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खतरनाक पदार्थों के उत्सर्जन के शक्तिशाली तंत्र भी हो सकती हैं। निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा तथा आपातकालीन प्रबंधन साझेदारों को आपातकालीन तैयारियों और भविष्य के प्रतिक्रिया प्रयासों तथा स्वास्थ्य सेवा वितरण क्षमताओं पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव को शामिल करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे सभी देशों को बहुपक्षीय रूप से संबोधित करना चाहिए। यह निश्चित रूप से इस सदी की सबसे बड़ी अस्थिर शक्तियों में से एक है जो हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था को कमजोर करती है, और पहले से ही पृथ्वी पर जीवन को बदलना शुरू कर रही है। यदि हम अभी कार्रवाई नहीं करते हैं, तो जलवायु परिवर्तन तेजी से उन भूमि और जल को बदल देगा जिन पर हम सभी जीवित रहने के लिए निर्भर हैं, जिससे हमारे बच्चों और नाती-नातिनों की दुनिया बहुत अलग हो जाएगी।
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।
सीडीओ डॉ मंजर आलम ने कार्यशाला के दौरान अपने उद्बोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसा विषय है जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है सिर्फ ये सोचकर कि ये एक औपचारिकता है बैठक करना और चिंता जाहिर करना इससे कोई बदलाव नहीं आएगा। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है जिसके लिए प्रत्येक सामाजिक संस्थान और जिले के विभाग द्वारा वृहद स्तर पर जन जागरूकता के साथ व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है। युवाओं को इस विषय पर परिचर्चा में शामिल करना आवश्यक है क्युकी आने वाली पीढ़ी को ऊर्जा की बचत सहित व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होगी तब जाकर हम स्तिथि पर नियंत्रण पाने की दिशा में अग्रसर होंगे । उन्होंने कहा कि पेड़ घटने से यदि जलग्रहण क्षेत्र खत्म हो गया तो नदियाँ ही खत्म हो जाएंगी। प्रकृति के विरुद्ध युद्ध और विकास का दुष्परिणाम है जलवायु परिवर्तन। उन्होंने कभी प्राकृतिक रूप से समृद्ध रहे विंध्य क्षेत्र की जैव-विविधता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
जल वायु परिवर्तन राष्ट्रीय सुरक्षा, पर्यावरणीय स्थिरता और मानव स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार की निर्देशन में स्वास्थ्य विभाग के राष्ट्रीय कार्यक्रम जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य के अंतर्गत एक दिवसीय अंतर्विभागीय उन्मुखीकरण कार्यशाला का आयोजन सदर अस्पताल स्थित एएनएम् स्कूल प्रांगन में किया गया। उन्मुखीकरण कार्यशाला के आरंभ में पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से जिले के संबंधित अधिकारियो से चर्चा करते हुए मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के कारण पडने वाले प्रभावों के विषय में गंभीर चर्चा की गई। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में हो रही वृद्धि , समुद्र तल का पानी बढ़ने (बर्फ के पिघलने) , पानी के अम्लीकारण होने से बढ़ रही बीमारियों , शहरीकरण इत्यादि एवं भविष्य में इसके दुष्प्रभाव को रोकने के बिंदु चर्चा में सम्मिलित रहे। उक्त कार्यक्रम में जिले के स्वास्थ्य विभाग के सीडीओ , डीएस ,डीआईओ, डीपिएम् , डीडीए सभी प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी , बीएचएम् , बीसीएम एवं सहयोगी संस्था के पदाधिकारी उपस्थित हुए।
जलवायु से संबंधित घटनाएँ मानव स्वास्थ्य को दो तरह से प्रभावित करती हैं।
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की जलवायु से संबंधित घटनाएं मानव स्वास्थ्य को दो तरह से प्रभावित करती हैं। वे सीधे तौर पर बीमारी, चोट, मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि और जीवन की हानि (जैसे, बवंडर, तूफान या अन्य चरम मौसम की घटना) का कारण बन सकती हैं। और अप्रत्यक्ष रूप से जनसंख्या के स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुँचाकर, देखभाल या सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच और आर्थिक प्रणालियों पर प्रभाव (जैसे, चरम मौसम की घटना के द्वितीयक परिणाम के रूप में) के माध्यम से जीवन की स्थितियों को बाधित करती हैं। प्राकृतिक आपदाएँ प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से खतरनाक पदार्थों के उत्सर्जन के शक्तिशाली तंत्र भी हो सकती हैं। निजी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा तथा आपातकालीन प्रबंधन साझेदारों को आपातकालीन तैयारियों और भविष्य के प्रतिक्रिया प्रयासों तथा स्वास्थ्य सेवा वितरण क्षमताओं पर जलवायु परिवर्तन के संभावित प्रभाव को शामिल करना चाहिए। जलवायु परिवर्तन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है जिसे सभी देशों को बहुपक्षीय रूप से संबोधित करना चाहिए। यह निश्चित रूप से इस सदी की सबसे बड़ी अस्थिर शक्तियों में से एक है जो हमारी वैश्विक अर्थव्यवस्था को कमजोर करती है, और पहले से ही पृथ्वी पर जीवन को बदलना शुरू कर रही है। यदि हम अभी कार्रवाई नहीं करते हैं, तो जलवायु परिवर्तन तेजी से उन भूमि और जल को बदल देगा जिन पर हम सभी जीवित रहने के लिए निर्भर हैं, जिससे हमारे बच्चों और नाती-नातिनों की दुनिया बहुत अलग हो जाएगी।
स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।
सीडीओ डॉ मंजर आलम ने कार्यशाला के दौरान अपने उद्बोधन में कहा कि जलवायु परिवर्तन एक ऐसा विषय है जिसे गंभीरता से लेने की जरूरत है सिर्फ ये सोचकर कि ये एक औपचारिकता है बैठक करना और चिंता जाहिर करना इससे कोई बदलाव नहीं आएगा। जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से जमीनी स्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है जिसके लिए प्रत्येक सामाजिक संस्थान और जिले के विभाग द्वारा वृहद स्तर पर जन जागरूकता के साथ व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता है। युवाओं को इस विषय पर परिचर्चा में शामिल करना आवश्यक है क्युकी आने वाली पीढ़ी को ऊर्जा की बचत सहित व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता होगी तब जाकर हम स्तिथि पर नियंत्रण पाने की दिशा में अग्रसर होंगे । उन्होंने कहा कि पेड़ घटने से यदि जलग्रहण क्षेत्र खत्म हो गया तो नदियाँ ही खत्म हो जाएंगी। प्रकृति के विरुद्ध युद्ध और विकास का दुष्परिणाम है जलवायु परिवर्तन। उन्होंने कभी प्राकृतिक रूप से समृद्ध रहे विंध्य क्षेत्र की जैव-विविधता पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
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