हर साल हजारों माताओं और नवजात शिशुओं की जान उस एक फैसले पर निर्भर करती है कि प्रसव कहां और कैसे होगा। यह फैसला केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर है। गृह प्रसव के दौरान अक्सर ऐसी जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं, जो मां और बच्चे दोनों के लिए घातक साबित हो सकती हैं। ऐसे में, संस्थागत प्रसव न केवल एक सुरक्षित विकल्प है, बल्कि मातृ-शिशु की सुरक्षा और सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 3—”स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना”—की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संस्थागत प्रसव: जटिलताओं को खत्म करने का माध्यम
सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार कहते हैं, “गृह प्रसव के दौरान किसी प्रकार की असावधानी या जटिलता होने पर तुरंत चिकित्सा सहायता मिलना मुश्किल हो सकता है, जो कई बार जानलेवा साबित होता है। संस्थागत प्रसव इस जोखिम को खत्म करता है और गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को आवश्यक देखभाल सुनिश्चित करता है।”
संस्थागत प्रसव केवल एक स्वास्थ्य सेवा नहीं, बल्कि मातृ-शिशु जीवन की रक्षा का वचन है। यह न केवल जीवन बचाने का माध्यम है, बल्कि एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज की नींव भी है। गृह प्रसव से बचें, संस्थागत प्रसव अपनाएं और जच्चा-बच्चा की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
गृह प्रसव क्यों है खतरनाक?
सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि गृह प्रसव में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों, आधुनिक चिकित्सा उपकरणों और आपातकालीन सुविधाओं की कमी होती है। इसके कारण निम्नलिखित जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं:
गंभीर रक्तस्राव और संक्रमण।
शिशु की स्थिति बिगड़ने पर समय पर इलाज का अभाव।
जटिल प्रसव की स्थिति में मां और बच्चे की जान को खतरा।
संस्थागत प्रसव: जच्चा-बच्चा की सुरक्षा की गारंटी
संस्थागत प्रसव के दौरान गर्भवती महिला को विशेषज्ञ चिकित्सकों और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की देखरेख में प्रसव की सुविधा मिलती है। महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शबनम यास्मीन कहती हैं, “संस्थागत प्रसव के माध्यम से जटिलताओं का समय पर निदान हो सकता है। यहां महिलाओं को प्रसव से पहले और बाद में सभी आवश्यक सुविधाएं मिलती हैं, जिससे मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने में मदद मिलती है।”
सतत विकास लक्ष्य और संस्थागत प्रसव का संबंध
संस्थागत प्रसव न केवल मां और बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि यह सतत विकास लक्ष्य 3 को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके माध्यम से मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) और शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में कमी लाई जा सकती है।
डॉ. राजेश कुमार कहते हैं, “गर्भधारण के तुरंत बाद गर्भवती महिला को फ्रंटलाइन वर्कर्स से संपर्क करना चाहिए। इससे वे प्रसव पूर्व सभी जरूरी जांच, पोषण संबंधी मार्गदर्शन और चिकित्सकीय सहायता समय पर प्राप्त कर सकती हैं।”
संस्थागत प्रसव के लाभ
सुरक्षित प्रसव: प्रशिक्षित डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की देखरेख।
आधुनिक तकनीक का उपयोग: किसी भी जटिलता का समय पर निदान।
नवजात की देखभाल: जन्म के तुरंत बाद आवश्यक टीकाकरण और पोषण मार्गदर्शन।
सरकारी योजनाओं का लाभ:
जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रोत्साहन राशि।
निःशुल्क एंबुलेंस सेवा।
प्रसव के बाद परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहन राशि।
जागरूकता ही सुरक्षा का आधार
स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना और जननी बाल सुरक्षा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को संस्थागत प्रसव के फायदे समझाए जा रहे हैं। गर्भवती महिलाओं को पहले तिमाही में ही चिन्हित कर उनकी निगरानी शुरू की जाती है।
संस्थागत प्रसव को अपनाकर न केवल मातृ-शिशु जीवन की रक्षा की जा सकती है, बल्कि एक स्वस्थ और समृद्ध समाज की ओर भी कदम बढ़ाया जा सकता है।
संस्थागत प्रसव: जच्चा-बच्चा की सुरक्षा की गारंटी
राहुल कुमार, किशनगंज
हर साल हजारों माताओं और नवजात शिशुओं की जान उस एक फैसले पर निर्भर करती है कि प्रसव कहां और कैसे होगा। यह फैसला केवल एक प्रक्रिया नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के बीच का अंतर है। गृह प्रसव के दौरान अक्सर ऐसी जटिलताएं उत्पन्न हो जाती हैं, जो मां और बच्चे दोनों के लिए घातक साबित हो सकती हैं। ऐसे में, संस्थागत प्रसव न केवल एक सुरक्षित विकल्प है, बल्कि मातृ-शिशु की सुरक्षा और सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी) 3—”स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करना”—की प्राप्ति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संस्थागत प्रसव: जटिलताओं को खत्म करने का माध्यम
सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार कहते हैं, “गृह प्रसव के दौरान किसी प्रकार की असावधानी या जटिलता होने पर तुरंत चिकित्सा सहायता मिलना मुश्किल हो सकता है, जो कई बार जानलेवा साबित होता है। संस्थागत प्रसव इस जोखिम को खत्म करता है और गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं को आवश्यक देखभाल सुनिश्चित करता है।”
संस्थागत प्रसव केवल एक स्वास्थ्य सेवा नहीं, बल्कि मातृ-शिशु जीवन की रक्षा का वचन है। यह न केवल जीवन बचाने का माध्यम है, बल्कि एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज की नींव भी है। गृह प्रसव से बचें, संस्थागत प्रसव अपनाएं और जच्चा-बच्चा की सुरक्षा सुनिश्चित करें।
गृह प्रसव क्यों है खतरनाक?
सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार बताते हैं कि गृह प्रसव में प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों, आधुनिक चिकित्सा उपकरणों और आपातकालीन सुविधाओं की कमी होती है। इसके कारण निम्नलिखित जोखिम उत्पन्न हो सकते हैं:
गंभीर रक्तस्राव और संक्रमण।
शिशु की स्थिति बिगड़ने पर समय पर इलाज का अभाव।
जटिल प्रसव की स्थिति में मां और बच्चे की जान को खतरा।
संस्थागत प्रसव: जच्चा-बच्चा की सुरक्षा की गारंटी
संस्थागत प्रसव के दौरान गर्भवती महिला को विशेषज्ञ चिकित्सकों और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की देखरेख में प्रसव की सुविधा मिलती है। महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शबनम यास्मीन कहती हैं, “संस्थागत प्रसव के माध्यम से जटिलताओं का समय पर निदान हो सकता है। यहां महिलाओं को प्रसव से पहले और बाद में सभी आवश्यक सुविधाएं मिलती हैं, जिससे मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने में मदद मिलती है।”
सतत विकास लक्ष्य और संस्थागत प्रसव का संबंध
संस्थागत प्रसव न केवल मां और बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, बल्कि यह सतत विकास लक्ष्य 3 को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसके माध्यम से मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) और शिशु मृत्यु दर (आईएमआर) में कमी लाई जा सकती है।
डॉ. राजेश कुमार कहते हैं, “गर्भधारण के तुरंत बाद गर्भवती महिला को फ्रंटलाइन वर्कर्स से संपर्क करना चाहिए। इससे वे प्रसव पूर्व सभी जरूरी जांच, पोषण संबंधी मार्गदर्शन और चिकित्सकीय सहायता समय पर प्राप्त कर सकती हैं।”
संस्थागत प्रसव के लाभ
सुरक्षित प्रसव: प्रशिक्षित डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की देखरेख।
आधुनिक तकनीक का उपयोग: किसी भी जटिलता का समय पर निदान।
नवजात की देखभाल: जन्म के तुरंत बाद आवश्यक टीकाकरण और पोषण मार्गदर्शन।
सरकारी योजनाओं का लाभ:
जननी सुरक्षा योजना के तहत प्रोत्साहन राशि।
निःशुल्क एंबुलेंस सेवा।
प्रसव के बाद परिवार नियोजन के लिए प्रोत्साहन राशि।
जागरूकता ही सुरक्षा का आधार
स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व योजना और जननी बाल सुरक्षा योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं को संस्थागत प्रसव के फायदे समझाए जा रहे हैं। गर्भवती महिलाओं को पहले तिमाही में ही चिन्हित कर उनकी निगरानी शुरू की जाती है।
संस्थागत प्रसव को अपनाकर न केवल मातृ-शिशु जीवन की रक्षा की जा सकती है, बल्कि एक स्वस्थ और समृद्ध समाज की ओर भी कदम बढ़ाया जा सकता है।
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