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मात्स्यिकी महाविद्यालय के द्वारा अंगीकृत मत्स्य ग्राम खानाबाड़ी में महाझींगा पालन और संवर्धन पर क्षेत्रीय स्तरीय प्रदर्शन करते हुए किया गया महाझींगा के बीजों का संचयन।

सारस न्यूज, किशनगंज।

मंगलवार से को किशनगंज जिले के अर्राबाड़ी स्थित मात्स्यिकी महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. वी. पी. सैनी के नेतृत्व में महाविद्यालय द्वारा अंगीकृत मत्स्य ग्राम खानाबाड़ी में एक और नयी पहल की गई। इस दौरान मत्स्य ग्राम खानाबाड़ी के नवोन्मेषी मत्स्य कृषक विकास कुमार के तालाबों में मीठे पानी में महाझींगा पालन और संवर्धन पर क्षेत्रीय स्तरीय प्रदर्शन हेतु महाझींगा के बीजों का संचयन किया गया।
ज्ञात हो कि इस क्षेत्र स्तरीय प्रदर्शन के लिए एक्वाकल्चर विभाग के प्राध्यापकों को समन्वयन का दायित्व दिया गया है। जिसमें प्रमुख स्तर पर एक्वाकल्चर के प्राध्यापक क्रमशः अभिषेक कुमार, डॉ. अभिमान, विभागाध्यक्ष डॉ. नरेश राजकीर एवं विवेक कुमार शामिल हैं। इसी कड़ी में मंगलवार को महाविद्यालय के प्राध्यापकों द्वारा महाझींगों के बीजों का संचयन किया गया।

एक्वाकल्चर के प्राध्यापक अभिषेक कुमार ने बताया कि इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य महाझींगा की वृद्धि दर का क्षेत्रीय स्तर पर मूल्यांकन कर किसानों के बीच महाझींगा की खेती को लोकप्रिय बनाना, उनके आय के स्रोत में वृद्धि करने और मत्स्यपालन के क्षेत्र को बहुआयामी बनाना है।

महाझींगा एक सुस्वाद, पौष्टिक आहार के रूप में उपयोग में आने वाला जलीय प्राणी है। यह मछली की प्रजाति न होते हुए भी जल में रहने के कारण सामान्य बोल चाल में मछली ही समझा जाता है। इसका उप्तादन पूर्व में खारे पानी में (समुद्र) में ही संभव था, परन्तु वैज्ञानिकों के अथक परिश्रम से अब मीठे पानी (तालाब) में भी इसका पालन किया जा रहा है। महाझींगा का पालन अकेले अथवा अन्य मछलियों (रेहू, कतला, मृगल ) के साथ किया जा सकता है, चूँकि महाझींगा नीचे स्तर पर रहने वाला प्राणी है। इसलिए इसके तालाब में कॉमन कार्प या मृगल का संचयन कम मात्रा में करना चाहिये। मटियाही या दोमट मिटटी वाले एक एकड़ या इससे छोटे तालाब महाझींगा पालने के लिए उपयुक्त है।

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