- पल्स पोलियो अभियान के तहत जिले में आगामी 22 सितम्बर से पिलाई जाएगी दो बूंद दवा।
- एक से पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियो की खुराक पिलाने के लिए टिकाकर्मी को दिया जा रहा प्रशिक्षण।
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
भारत में पोलियो उन्मूलन के लिए चलाया जा रहा पल्स पोलियो अभियान एक बेहद महत्वपूर्ण और सफल सार्वजनिक स्वास्थ्य पहल है। 1995 में शुरू किए गए इस अभियान का मुख्य उद्देश्य 5 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को पोलियो की खुराक देना है, ताकि इस गंभीर बीमारी से बच्चों को बचाया जा सके और देश को पोलियो मुक्त बनाए रखा जा सके।भारत ने 2014 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से पोलियो मुक्त देश का दर्जा प्राप्त कर लिया था। हालांकि, पोलियो का खतरा अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, क्योंकि यह बीमारी अब भी कुछ देशों में मौजूद है। सरकार इस बात से पूरी तरह अवगत है कि पोलियो फिर से न लौट आए, इसलिए नियमित रूप से पल्स पोलियो अभियान आयोजित किया जाता है। लाखों स्वास्थ्यकर्मी घर-घर जाकर सुनिश्चित कर रहे हैं कि हर बच्चे को पोलियो की खुराक मिले। इसी क्रम में आगामी 22 सितम्बर से 26 सितम्बर पल्स पोलियो अभियान का आयोजन किया जायेगा , जिसकी शुरुआत जिला पदाधिकारी श्री तुषार सिंगला की अध्यक्षता में डीटीएफ की बैठक कर किया जा चूका है अगले चरण में सभी प्रखंडो में सभी टिकाकर्मी को प्रशिक्षित किया जा रहा है |सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की पोलियो जैसी संक्रामक बीमारियों का खतरा तब तक समाप्त नहीं हो सकता जब तक विश्व भर से इसका उन्मूलन न हो जाए। इसलिए, पल्स पोलियो अभियान की निरंतरता बेहद जरूरी है, ताकि देश की सीमाओं के पार से वायरस दोबारा न फैल सके। इसके लिए स्वास्थ्यकर्मी घर-घर जाकर सुनिश्चित करते हैं कि कोई भी बच्चा टीकाकरण से वंचित न रहे।
पोलियो की खुराक केवल दवा समझकर नहीं बल्कि दो बूंद जिंदगी की समझकर पिलाएं।
सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने अभियान को सफल बनाने के लिए जिलेवासियों से भी अपील कर कहा कि आज के दौर में भी बच्चों के माता-पिता व अभिभावक पोलियो की खुराक दिलाने से कतराते हैं। उन्हें पोलियो की खुराक पिलाने से उनके बच्चे को कोई नुकसान पहुंचने का डर सताता है। लेकिन, उन्हें समझना होगा की पोलियो की खुराक बच्चों को ना पिलाना उनके बच्चे को स्थायी रूप से अपंग बना सकता है। बल्कि विकसित स्टेज पर मौत का कारण भी बन सकता है। पोलियो की दवा पिलाने से आपके बच्चे का जीवन बच सकता है। पोलियो की खुराक केवल दवा समझकर नहीं बल्कि दो बूंद जिंदगी की समझकर पिलाएं। उन्होंने बताया कि बुखार से पीड़ित बच्चों के माता-पिता उसके ठीक होने के बाद पोलियो की खुराक दिला सकते हैं । उसके अलावा सर्दी खांसी या दस्त है तो भी उसे अवश्य यह दवाई पिलाएं। बच्चे के जन्म पर, छठे, दसवें व चौदहवें सप्ताह में पोलियो टीकाकरण करवाना चाहिए और 16 से 24 महीने की आयु में बूस्टर डोज दिया जाना अनिवार्य है। इसके अलावा जब भी आपके आसपास पोलियो कैंप लगे अपने पांच साल से छोटे बच्चों को यह दवाई अवश्य पिलानी चाहिए। ह हर नागरिक का दायित्व है कि वह इस अभियान में अपना सहयोग दे, ताकि देश को हमेशा के लिए पोलियो मुक्त रखा जा सके। विदेशों में बढ़ते पोलियो के मामलों को देखते हुए यह और भी जरूरी हो जाता है कि कोई भी बच्चा टीकाकरण से न छूटे।
पोलियो की बीमारी बच्चे के अंगों को जीवन भर के लिए कमजोर कर देती है।
जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ देवेन्द्र कुमार ने बताया कि पोलियो एक संक्रामक रोग है, जो पोलियो विषाणु से मुख्यतः छोटे बच्चों में होता है। यह बीमारी बच्चे के अंगों को जीवन भर के लिये कमजोर कर देती है। पोलियो लाइलाज है क्योंकि इसका लकवापन ठीक नहीं हो सकता है। बचाव ही इस बीमारी का एक मात्र उपाय है। मल पदार्थ में पोलियो का वायरस जाता है। ज्यादातर वायरस युक्त भोजन के सेवन करने से यह रोग होता है। यह वायरस श्वास तंत्र से भी शरीर में प्रवेश कर रोग फैलाता है। पोलियो स्पाइनल कॉर्ड व मैडुला की बीमारी है। स्पाइनल कॉर्ड मनुष्य का वह हिस्सा है जो रीड की हड्डी में होता है। पोलियो मांसपेशी हड्डी की बीमारी नहीं है। बच्चों में पोलियो विषाणु के विरुद्ध किसी प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता नहीं होती है , इसी कारण यह बच्चों में होता।