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टीबी की दवा नियमित पूरा कोर्स नहीं खाने से बढ़ सकता है खतरा एमडीआर टीबी के 12 रोगी है इलाजरत।

सारस न्यूज़, राहुल कुमार, किशनगंज।

टीबी नियमित रूप से दवा खाने के बजाय बीच में ही छोड़ देने से बीमारी और बढ़ जाती है। हालांकि जो लोग नियमित रूप से दवा सेवन के साथ पौष्टिक आहार लेते हैं, वैसे लोग समय से स्वस्थ हो रहे हैं। सीडीओ डॉ.मंजर आलम ने बताया कि टीबी का सम्पूर्ण इलाज संभव है। सभी सरकारी अस्पतालों में निःशुल्क दवा भी उपलब्ध है। लेकिन यदि टीबी की दवा बीच में छोड़ी जाती है तो एमडीआर( मल्टी ड्रग रेसिस्टेंस) टीबी होने का अधिक खतरा होता है। एमडीआर-टीबी सामान्य टीबी की तुलना में अधिक ख़तरनाक होता है।एमडीआर-टीबी में टीबी की प्रथम पंक्ति की दवाएं एक साथ प्रतिरोधक हो जाती हैं। जिसके इलाज में सामान्य टीबी की तुलना में अधिक समस्या होती है।कहा कि टीबी को लेकर अभी लोगों में जानकारी का अभाव देखने को मिलता है। अमूमन लोगों में यह धारणा है की टीबी सिर्फ सांस से जुड़ी बीमारी है। लेकिन, लोगों को यह समझना होगा कि फेफड़ों के अलावा भी टीबी कई प्रकार की होती है। इसमें से एक प्रकार दिमाग की टीबी होता है। दिमाग की टीबी एक-दूसरे से नहीं फैलती लेकिन, जब फेफड़ों की टीबी से संक्रमित व्यक्ति खांसता, छींकता है तो उसके मुंह से निकली बूंदें दूसरे व्यक्ति के अंदर प्रवेश कर जाती हैं। ये बूंदें यदि दिमाग में प्रवेश कर जाती हैं तो व्यक्ति के दिमाग में टीबी या ब्रेन टीबी होने की संभावना होती है। उन्होंने बताया कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थान से नियमित रूप से दवा और पौष्टिक आहार खाने के बाद मरीज पूरी तरह से ठीक हो रहे हैं।

कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वालों को संक्रमण का खतरा अधिक।

सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार ने बताया ट्रयूबरक्लोसिस दो प्रकार के होते हैं। इनमें एक लेंटेंट टीबी होता है। जिसमें टीबी के बैक्टीरिया शरीर में मौजूद होते लेकिन उनमें लक्षण स्पष्ट रूप से नहीं दिखते हैं। लेकिन रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर इसका असर उभर कर देखने को मिल सकता है। वहीं कुछ स्पष्ट दिखने वाले लक्षणों से टीबी रोगियों का पता चल पाता है।

यह लक्षण दिखें तो कराए टीबी जांच।

लंबे समय से खांसी होना।

छाती में दर्द।

कफ में खून आना।

कमजोरी व थका हुआ महसूस करना।

वजन का तेजी से कम होना।

भूख नहीं लगना।

ठंड लगना।

बुखार लगा रहना।

रात को पसीना आना।

टीबी के मरीज सावधानियां बरतें और नियमित दवाओं का सेवन करें।

जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ मंजर आलम ने बताया की जिले में एक्सडीआर श्रेणी में मरीजो की संख्या शून्य हैं। जब एमडीआर श्रेणी वाले मरीज जब लापरवाही बरतने लगते है, नियमित दवा का सेवन नहीं करते है वो ही एक्सडीआर की चपेट में आ जाते हैं। टीबी के प्रति लापरवाही बरतना खतरनाक साबित हो सकता है। जो भी टीबी के मरीज हैं वो सावधानियां बरतें और नियमित दवा का सेवन करते रहें । एमडीआर श्रेणी भी खतरनाक है, इसके जिले में 12 मरीज हैं। इसके प्रति भी लापरवाही ठीक नहीं है। उन्होंने बताया, इलाज के क्रम में लापरवाही ही इन समस्याओं की जड़ है। एमडीआर का खतरा टीबी के वे रोगी जो एचआइवी से पीड़ित हैं, जिन्हें फिर से टीबी रोग हुआ हो, टीबी की दवा लेने पर भी बलगम में इस रोग के कीटाणु आ रहे हैं या टीबी से प्रभावित वह मरीज जो एमडीआर टीबी रोगी के संपर्क में रहा है, उसे एक्सडीआर टीबी का खतरा हो सकता है।

टीबी मरीजों के लिए काफी मददगार है “निक्षय पोषण योजना।

सिविल सर्जन डॉ राजेश कुमार ने बताया की टीबी मरीजों को इलाज के दौरान पोषण के लिए 500 रुपये प्रतिमाह दिए जाने वाली निक्षय पोषण योजना बड़ी मददगार साबित हुई है। नए मरीज मिलने के बाद उन्हें 500 रुपये प्रति माह सरकारी सहायता भी प्रदान की जा रही है। टीबी मरीज को आठ महीने तक दवा चलती है। इस आठ महीने की अवधि तक प्रतिमाह पांच 500-500 रुपये दिए जाएंगे। योजना के तहत डी बी टी के माध्यम से राशि सीधे बैंक खाते में भेजी जाती है। वहीं टीबी मरीजों के नोटीफाइड करने पर निजी चिकित्सकों को 500 रुपये तथा उस मरीज को पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद भी निजी चिकित्सकों को 500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। वहीं ट्रीटमेंट सपोर्टर को अगर कोई टीबी के मरीज छह माह में ठीक हो गया है तो उसे 1000 रुपये तथा एमडीआर के मरीज के ठीक होने पर 5000 रुपये की प्रोत्साहन दी जाती है। अगर कोई आम व्यक्ति भी किसी मरीज को सरकारी अस्पताल में लेकर आता है और उस व्यक्ति में टीबी की पुष्टि होती है तो लाने वाले व्यक्ति को भी 500 रुपये देने का प्रावधान है।

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