केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक पूरे देश से टीबी बीमारी के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी उद्देश्य के तहत जिले में एक सघन अभियान चलाया जा रहा है। गांव-गांव जाकर टीबी के मरीजों की पहचान की जा रही है और आंगनबाड़ी केंद्रों तथा स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य शिविर लगाकर संभावित रोगियों की जांच की जा रही है। टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है, जो म्यकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होती है। यह रोग मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी संक्रमित कर सकता है। यदि इस रोग को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। टीबी जैसी जानलेवा बीमारी के प्रिवेंशन और उपचार के महत्व को समझाने के लिए सदर अस्पताल स्थित एएनएम स्कूल प्रांगण में सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार की अध्यक्षता में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में जिले के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य टीबी की भयावहता को उजागर करना और इसके प्रभावी उपचार के लिए ठोस कदम उठाने पर विचार-विमर्श करना था।
हाथ मिलाने या खानपान की सामग्री देने से नहीं फैलता टीबी
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि भारत में टीबी की स्थिति चिंताजनक है। वैश्विक टीबी मामलों का लगभग 27% हिस्सा भारत में पाया जाता है, जो इस रोग की व्यापकता और गंभीरता को दर्शाता है। हर साल लाखों लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं, और उनमें से कई लोग समय पर इलाज न मिलने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं। टीबी के मामलों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधक क्षमता का बढ़ना भी एक गंभीर चुनौती है, जो इस रोग के इलाज को और अधिक जटिल बना देता है। उन्होंने कहा कि टीबी के बारे में व्याप्त मिथकों और भ्रांतियों को दूर करने की सख्त जरूरत है। कई लोग इस बीमारी को कलंक मानते हैं, जिसके कारण वे इसका इलाज करवाने से कतराते हैं। लोगों को शिक्षित करना और उन्हें सही जानकारी प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने सीडीसी के अनुसार टीबी संक्रमण के बारे में कुछ मिथ्याओं का भी उल्लेख किया। इन मिथ्याओं के कारण लोग टीबी ग्रसित लोगों की उपेक्षा करने लगते हैं, जो इलाज में भी असुविधा पैदा करता है। आमलोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि टीबी संक्रमण हाथ मिलाने, खानपान की सामग्री देने या लेने, बिस्तर पर बैठने, और एक ही शौचालय के उपयोग से बिल्कुल नहीं फैलता है।
2025 तक टीबी को जड़ से हटाना है
जिला यक्ष्मा रोग पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने तपेदिक के प्रिवेंशन और ट्रीटमेंट के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की। उन्होंने बताया कि तपेदिक के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण है रोग की जल्दी पहचान और प्रभावी उपचार। भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी को जड़ से समाप्त करने का संकल्प लिया है। समय पर उपचार न मिलने से यह रोग घातक बन सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि टीबी मरीजों के लिए समय पर और पूरा इलाज प्राप्त करना जरूरी है, ताकि इस बीमारी को जड़ से समाप्त किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि तपेदिक का अधूरा इलाज रोग की पुनरावृत्ति और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देता है, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मरीज अपनी दवा पूरी तरह से लें और इलाज को अधूरा न छोड़ें।
टीबी उन्मूलन के लिए जिला में हो रहे जरूरी प्रयास
जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने कहा कि वर्ष 2025 तक देश को पूरी तरह टीबी से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित है। इस दिशा में जिला टीबी विभाग द्वारा आवश्यक प्रयास किए जा रहे हैं। टीबी मरीजों की पहचान से लेकर निःशुल्क दवा वितरण और निक्षय योजना के तहत मरीजों को मिलने वाले लाभ को सुनिश्चित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि यदि किसी व्यक्ति में सीने में दर्द, चक्कर आना, दो सप्ताह से अधिक खांसी या बुखार, खांसी के साथ मुंह से खून आना, भूख में कमी, और वजन कम होना जैसे लक्षण हैं, तो उन्हें टीबी की जांच करानी चाहिए।
टीबी संक्रमित मरीजों के लिए स्वास्थ्य विभाग की योजनाएं वरदान
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि टीबी जैसी बीमारियों से लड़ने और बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का अहम योगदान है। अमीर हो या गरीब, हर रोगी के लिए सरकार की ओर से निःशुल्क दवा उपलब्ध है, साथ ही पौष्टिक आहार के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह टीबी संक्रमित मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इसीलिए लोगों को टीबी जैसे संक्रमण से डरने की बजाय, इससे लड़ने की जरूरत है। सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर टीबी जैसी बीमारी से पूरी तरह ठीक हुआ जा सकता है।
राहुल कुमार, सारस न्यूज, किशनगंज।
केंद्र सरकार ने वर्ष 2025 तक पूरे देश से टीबी बीमारी के उन्मूलन का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसी उद्देश्य के तहत जिले में एक सघन अभियान चलाया जा रहा है। गांव-गांव जाकर टीबी के मरीजों की पहचान की जा रही है और आंगनबाड़ी केंद्रों तथा स्वास्थ्य केंद्रों पर स्वास्थ्य शिविर लगाकर संभावित रोगियों की जांच की जा रही है। टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है, जो म्यकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक जीवाणु के कारण होती है। यह रोग मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन शरीर के अन्य अंगों को भी संक्रमित कर सकता है। यदि इस रोग को समय रहते नहीं रोका गया, तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। टीबी जैसी जानलेवा बीमारी के प्रिवेंशन और उपचार के महत्व को समझाने के लिए सदर अस्पताल स्थित एएनएम स्कूल प्रांगण में सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार की अध्यक्षता में एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। इस कार्यक्रम में जिले के स्वास्थ्य विशेषज्ञों, सरकारी अधिकारियों और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य टीबी की भयावहता को उजागर करना और इसके प्रभावी उपचार के लिए ठोस कदम उठाने पर विचार-विमर्श करना था।
हाथ मिलाने या खानपान की सामग्री देने से नहीं फैलता टीबी
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिविल सर्जन डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि भारत में टीबी की स्थिति चिंताजनक है। वैश्विक टीबी मामलों का लगभग 27% हिस्सा भारत में पाया जाता है, जो इस रोग की व्यापकता और गंभीरता को दर्शाता है। हर साल लाखों लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं, और उनमें से कई लोग समय पर इलाज न मिलने के कारण अपनी जान गंवा बैठते हैं। टीबी के मामलों में एंटीबायोटिक-प्रतिरोधक क्षमता का बढ़ना भी एक गंभीर चुनौती है, जो इस रोग के इलाज को और अधिक जटिल बना देता है। उन्होंने कहा कि टीबी के बारे में व्याप्त मिथकों और भ्रांतियों को दूर करने की सख्त जरूरत है। कई लोग इस बीमारी को कलंक मानते हैं, जिसके कारण वे इसका इलाज करवाने से कतराते हैं। लोगों को शिक्षित करना और उन्हें सही जानकारी प्रदान करना अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने सीडीसी के अनुसार टीबी संक्रमण के बारे में कुछ मिथ्याओं का भी उल्लेख किया। इन मिथ्याओं के कारण लोग टीबी ग्रसित लोगों की उपेक्षा करने लगते हैं, जो इलाज में भी असुविधा पैदा करता है। आमलोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि टीबी संक्रमण हाथ मिलाने, खानपान की सामग्री देने या लेने, बिस्तर पर बैठने, और एक ही शौचालय के उपयोग से बिल्कुल नहीं फैलता है।
2025 तक टीबी को जड़ से हटाना है
जिला यक्ष्मा रोग पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने तपेदिक के प्रिवेंशन और ट्रीटमेंट के विभिन्न पहलुओं पर गहन चर्चा की। उन्होंने बताया कि तपेदिक के इलाज में सबसे महत्वपूर्ण है रोग की जल्दी पहचान और प्रभावी उपचार। भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी को जड़ से समाप्त करने का संकल्प लिया है। समय पर उपचार न मिलने से यह रोग घातक बन सकता है। उन्होंने जोर देकर कहा कि टीबी मरीजों के लिए समय पर और पूरा इलाज प्राप्त करना जरूरी है, ताकि इस बीमारी को जड़ से समाप्त किया जा सके। उन्होंने यह भी बताया कि तपेदिक का अधूरा इलाज रोग की पुनरावृत्ति और एंटीबायोटिक-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देता है, जिससे स्थिति और गंभीर हो जाती है। इसलिए, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि मरीज अपनी दवा पूरी तरह से लें और इलाज को अधूरा न छोड़ें।
टीबी उन्मूलन के लिए जिला में हो रहे जरूरी प्रयास
जिला यक्ष्मा नियंत्रण पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने कहा कि वर्ष 2025 तक देश को पूरी तरह टीबी से मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित है। इस दिशा में जिला टीबी विभाग द्वारा आवश्यक प्रयास किए जा रहे हैं। टीबी मरीजों की पहचान से लेकर निःशुल्क दवा वितरण और निक्षय योजना के तहत मरीजों को मिलने वाले लाभ को सुनिश्चित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि यदि किसी व्यक्ति में सीने में दर्द, चक्कर आना, दो सप्ताह से अधिक खांसी या बुखार, खांसी के साथ मुंह से खून आना, भूख में कमी, और वजन कम होना जैसे लक्षण हैं, तो उन्हें टीबी की जांच करानी चाहिए।
टीबी संक्रमित मरीजों के लिए स्वास्थ्य विभाग की योजनाएं वरदान
जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि टीबी जैसी बीमारियों से लड़ने और बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न कार्यक्रमों का अहम योगदान है। अमीर हो या गरीब, हर रोगी के लिए सरकार की ओर से निःशुल्क दवा उपलब्ध है, साथ ही पौष्टिक आहार के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह टीबी संक्रमित मरीजों के लिए वरदान साबित हो रहा है। इसीलिए लोगों को टीबी जैसे संक्रमण से डरने की बजाय, इससे लड़ने की जरूरत है। सरकार की योजनाओं का लाभ उठाकर टीबी जैसी बीमारी से पूरी तरह ठीक हुआ जा सकता है।
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