पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, अर्राबाड़ी द्वारा 48वीं किसान संवाद एवं पशुचिकित्सा शिविर का आयोजन 17 जनवरी को बालूबाड़ी, हालामाला, किशनगंज में किया गया। शिविर की आयोजिका, डॉ. रिचा अरोड़ा, सहायक प्राध्यापक, पशुचिकित्सा जीव रसायन विभाग ने बताया कि कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय के डीन डॉ. चंद्रहास के मार्गदर्शन में किया गया।
इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के 17 वैज्ञानिकों ने भाग लिया और 58 पशुपालक परिवारों से उनके द्वार पर संपर्क कर पशुपालन से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी एवं महाविद्यालय में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में अवगत कराया।
किसान संवाद के दौरान, वैज्ञानिकों ने ठंड के मौसम में पशुओं को बीमारियों से बचाने और दूध उत्पादन बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इनमें शामिल हैं:
पशुओं को रात्रि में खुले आसमान के नीचे न रखें।
पशु आवास को टाट या अन्य सामग्री से ढकें।
पशुओं को पुराने कंबल या जूट के बोरे से ढकें।
पीने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था करें।
पशुचिकित्सा शिविर में 120 छोटे-बड़े पशुओं का इलाज किया गया। बीमारियों के इलाज के साथ-साथ गर्मी में आए पशुओं के लिए कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। शिविर में पशुपालकों को आवश्यक दवाइयां, खनिज तत्व, और कृमिनाशक दवाइयां नि:शुल्क वितरित की गईं।
पशुपालकों ने इस पहल को सराहा और महाविद्यालय एवं वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने द्वार पर आकर समस्याओं के समाधान के प्रयासों की प्रशंसा की। महाविद्यालय द्वारा इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में भी जारी रखने की योजना है ताकि पशुपालकों को आधुनिक तकनीक और ज्ञान से सशक्त किया जा सके।
सारस न्यूज़, पोठिया, किशनगंज।
पशुचिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय, अर्राबाड़ी द्वारा 48वीं किसान संवाद एवं पशुचिकित्सा शिविर का आयोजन 17 जनवरी को बालूबाड़ी, हालामाला, किशनगंज में किया गया। शिविर की आयोजिका, डॉ. रिचा अरोड़ा, सहायक प्राध्यापक, पशुचिकित्सा जीव रसायन विभाग ने बताया कि कार्यक्रम का आयोजन महाविद्यालय के डीन डॉ. चंद्रहास के मार्गदर्शन में किया गया।
इस कार्यक्रम में महाविद्यालय के 17 वैज्ञानिकों ने भाग लिया और 58 पशुपालक परिवारों से उनके द्वार पर संपर्क कर पशुपालन से संबंधित वैज्ञानिक जानकारी एवं महाविद्यालय में उपलब्ध सुविधाओं के बारे में अवगत कराया।
किसान संवाद के दौरान, वैज्ञानिकों ने ठंड के मौसम में पशुओं को बीमारियों से बचाने और दूध उत्पादन बनाए रखने के लिए कई महत्वपूर्ण सुझाव दिए। इनमें शामिल हैं:
पशुओं को रात्रि में खुले आसमान के नीचे न रखें।
पशु आवास को टाट या अन्य सामग्री से ढकें।
पशुओं को पुराने कंबल या जूट के बोरे से ढकें।
पीने के लिए गर्म पानी की व्यवस्था करें।
पशुचिकित्सा शिविर में 120 छोटे-बड़े पशुओं का इलाज किया गया। बीमारियों के इलाज के साथ-साथ गर्मी में आए पशुओं के लिए कृत्रिम गर्भाधान की सुविधा भी उपलब्ध कराई गई। शिविर में पशुपालकों को आवश्यक दवाइयां, खनिज तत्व, और कृमिनाशक दवाइयां नि:शुल्क वितरित की गईं।
पशुपालकों ने इस पहल को सराहा और महाविद्यालय एवं वैज्ञानिकों का आभार व्यक्त किया। उन्होंने द्वार पर आकर समस्याओं के समाधान के प्रयासों की प्रशंसा की। महाविद्यालय द्वारा इस प्रकार के कार्यक्रम भविष्य में भी जारी रखने की योजना है ताकि पशुपालकों को आधुनिक तकनीक और ज्ञान से सशक्त किया जा सके।
Leave a Reply