प्रेम गा रहा है।
कल तक थी धूप आज कोहरा घना छा रहा है ।
मौसम भी 14 जनवरी से यूं इश्क निभा रहा है ।।
करवट बदली अचानक मौसम ने इस कदर ।
बेताब होकर जैसे कोई महबूब को बुला रहा है। ।
लपेट चादर कोहरे की फिजा झूम रही है ।
शीतल हवा का झोंका हर दिल को लुभा रहा है।।
गा रहे हैं पंछी पेड़ों की टहनियों पर।
पत्तों से गिरता पानी सरगम बज रहा है।।
जमीन के बादलों से सज गई हर दिशाएं।
मन मीत मेरा जाने किस गली से आ रहा है।।
ओढ़ शीत की चादर धरती लजा रही है ।
सूरज भी यूं शरमा कर अपना मुंह छुपा रहा है।।
प्रेम ही तो है जो कण- कण पर छा रहा है।
फिर क्यों जमाना प्रेम पर उंगली उठा रहा है।।
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं।
🙏🪁🪁❤️❤️🌹🌹