सारस न्यूज़, वेब डेस्क।
किशनगंज (बिहार): मुस्लिम बहुल किशनगंज ज़िले में वक्फ संशोधन कानून को लेकर राजनीतिक तापमान चरम पर पहुंच चुका है। शनिवार को इस मुद्दे पर जनता दल यूनाइटेड (जदयू) को बड़ा झटका तब लगा जब पार्टी के वरिष्ठ नेता, ज़िलाध्यक्ष और पूर्व विधायक मुजाहिद आलम ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया।
पूर्व विधायक मुजाहिद आलम जदयू के सीमांचल क्षेत्र में सबसे मज़बूत चेहरों में से एक माने जाते रहे हैं। उन्होंने वक्फ संशोधन कानून पर पार्टी द्वारा दिए गए समर्थन से आहत होकर पार्टी छोड़ने का फैसला किया। उन्होंने अपने इस्तीफे की घोषणा करते हुए कहा, “यह कानून मुस्लिम समुदाय की संपत्ति और अधिकारों को छीनने वाला है। मैं इस अन्याय के खिलाफ पहले ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर चुका हूँ और यह लड़ाई तब तक जारी रखूंगा जब तक न्याय नहीं मिलता।”
15 वर्षों की निष्ठा, लेकिन नहीं सुनी गई आवाज़
मुजाहिद आलम ने भावुक होते हुए कहा, “मैंने 15 वर्षों तक पार्टी के लिए सिपाही की तरह काम किया। किशनगंज में संगठन को खड़ा किया, पार्टी को जमीनी स्तर पर मज़बूत किया। लेकिन जब मेरी कौम के हक की बात आई, तो पार्टी ने मेरी नहीं सुनी।”
उन्होंने आगे कहा कि चाहे वे विधायक या सांसद रहें या न रहें, लेकिन अपने समुदाय के अधिकारों के लिए हमेशा खड़े रहेंगे।
नीतीश कुमार के फैसले से असहमति
पूर्व विधायक ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय ने भी हमेशा जदयू को समर्थन दिया, लेकिन आज जब उनके अधिकारों पर हमला हुआ है, तो मुख्यमंत्री ने उनकी भावनाओं को नजरअंदाज कर दिया।
पार्टी ऑफिस से हटे पोस्टर, लगाए गए नए नारे
इस्तीफा देने के साथ ही मुजाहिद आलम के कार्यालय से जदयू के पोस्टर और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तस्वीरें हटा दी गईं। उनकी जगह नया स्लोगन “सीमांचल के मर्दे मुजाहिद – मास्टर मुजाहिद” के पोस्टर लगाए गए, जिससे उनके भावी राजनीतिक रुख के संकेत मिलते हैं।
अगला राजनीतिक कदम?
गौरतलब है कि मुजाहिद आलम 2019 लोकसभा चुनाव में जदयू के प्रत्याशी भी रह चुके हैं। जब उनसे पूछा गया कि वे अब किस पार्टी में जाएंगे, तो उन्होंने कहा, “अभी इस पर कोई फैसला नहीं लिया गया है।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किशनगंज जैसे संवेदनशील क्षेत्र में मुजाहिद आलम का पार्टी से अलग होना जदयू के लिए गंभीर झटका हो सकता है, खासकर विधानसभा चुनाव से पहले।