जिले में आगामी 22 अप्रैल तक कार्यक्रम से जन को होंगे प्रमुख लाभ पोषण पखवाड़ा जन-जन से जुड़ा एक सामाजिक आंदोलन है।
भारत में आज भी कुपोषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है, जो बच्चों की वृद्धि, शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक है। किशनगंज जैसे सीमावर्ती जिले में यह चुनौती और भी अधिक गंभीर है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित है और पोषण संबंधी जागरूकता की कमी है।
इन्हीं छिपे हुए संकटों — जैसे कुपोषण, एनीमिया और अस्वस्थ जीवनशैली — से लड़ने के लिए “पोषण पखवाड़ा 2025” की शुरुआत जिलाधिकारी श्री विशाल राज के नेतृत्व में की गई। इस अवसर पर जिला मुख्यालय सभागार में विभिन्न विभागों के पदाधिकारी और प्रतिनिधि शामिल हुए।
जिलाधिकारी ने बताया कि पोषण पखवाड़ा का उद्देश्य है कि समुदाय के अंतिम व्यक्ति तक पोषण संबंधी जानकारी और सेवाएं पहुँचें — विशेषकर गर्भवती महिलाएं, धात्री माताएं, शिशु और किशोरियाँ। यह अभियान एक जन आंदोलन के रूप में चलाया जा रहा है ताकि हर व्यक्ति पोषण के महत्व को समझे और इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाए।
जिले में आगामी 22 अप्रैल तक कार्यक्रम से जन को होने वाले प्रमुख लाभ: प्रभारी कार्यक्रम पदाधिकारी श्रीमती जीनत यस्मिन ने बताया कि:
गर्भवती महिलाओं और नवजातों के पहले 1000 दिनों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सके।
कुपोषित बच्चों की समय पर पहचान कर उन्हें आवश्यक चिकित्सा व परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
पोषण ट्रैकर और C-SAM मॉड्यूल के माध्यम से तकनीकी निगरानी और पोषण सुधार की प्रभावी व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी।
आंगनवाड़ी केंद्रों पर पोषण मेले, पोषण थाली, पोषण परामर्श जैसी गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण समुदाय में जागरूकता बढ़ेगी।
मोटापे, एनीमिया और अन्य पोषण संबंधी समस्याओं से बचाव हेतु जनजागरूकता और व्यवहार परिवर्तन पर बल दिया जाएगा।
अंतर-विभागीय समन्वय के माध्यम से हर घर तक पोषण की जानकारी एवं सेवाएं पहुँचाई जाएंगी।
पोषण पखवाड़ा: एक सामाजिक आंदोलन जिलाधिकारी श्री विशाल राज ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा, “पोषण पखवाड़ा केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि जन-जन से जुड़ा एक सामाजिक आंदोलन है। इसके माध्यम से हम एक स्वस्थ, जागरूक और सक्षम पीढ़ी की नींव रख सकते हैं।”
उन्होंने सभी विभागों को अभियान के अंतर्गत निर्धारित कैलेंडर एवं दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करते हुए डैशबोर्ड पर नियमित प्रविष्टि और फोटो रिपोर्टिंग का निर्देश दिया। उन्होंने जोर दिया: “पोषण एक अधिकार है, न कि विकल्प। यह अभियान हमें एक सशक्त और सुपोषित भारत की ओर ले जाने वाला कदम है।”
समन्वय और सुचारू कार्यान्वयन हेतु जिलाधिकारी ने सभी विभागों को एक-एक नोडल पदाधिकारी नामित करने का निर्देश दिया, जिससे कार्यक्रम की दैनिक मॉनिटरिंग और परिणामों का मूल्यांकन सरल हो सके।
“पोषण और स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक” सिविल सर्जन डॉ. मंजर आलम ने कहा, “पोषण और स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक हैं। कुपोषण न केवल बच्चों के विकास को रोकता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर करता है।” उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग C-SAM मॉड्यूल के माध्यम से गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान कर उनका समुचित प्रबंधन सुनिश्चित करेगा।
डॉ. आलम ने यह भी जोड़ा, “स्वस्थ समाज की कल्पना केवल पोषण आधारित जीवनशैली से ही संभव है। यह कार्यक्रम समय रहते गंभीर कुपोषण, एनीमिया और अस्वस्थ आदतों से निपटने का अवसर प्रदान करता है।”
ICDS की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने कहा कि हमारा मुख्य फोकस बच्चों, किशोरियों और माताओं को पोषण के प्रति जागरूक बनाना है। आंगनवाड़ी केंद्र इस अभियान के प्रमुख केंद्र बिंदु होंगे, जहां समुदाय से सीधा संवाद और सहभागिता होगी।
प्रमुख गतिविधियाँ:
जीवन के पहले 1000 दिनों पर केंद्रित जागरूकता एवं सेवा कार्यक्रम
पोषण ट्रैकर पर लाभार्थियों का स्व-पंजीकरण
C-SAM मॉड्यूल द्वारा गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान
मोटापा और एनीमिया से निपटने हेतु जीवनशैली आधारित पहल
पर्यावरण और पोषण को जोड़ते हुए “Mission LiFE” के साथ समन्वय
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
जिले में आगामी 22 अप्रैल तक कार्यक्रम से जन को होंगे प्रमुख लाभ पोषण पखवाड़ा जन-जन से जुड़ा एक सामाजिक आंदोलन है।
भारत में आज भी कुपोषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या बनी हुई है, जो बच्चों की वृद्धि, शारीरिक एवं मानसिक विकास में बाधक है। किशनगंज जैसे सीमावर्ती जिले में यह चुनौती और भी अधिक गंभीर है, जहां स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सीमित है और पोषण संबंधी जागरूकता की कमी है।
इन्हीं छिपे हुए संकटों — जैसे कुपोषण, एनीमिया और अस्वस्थ जीवनशैली — से लड़ने के लिए “पोषण पखवाड़ा 2025” की शुरुआत जिलाधिकारी श्री विशाल राज के नेतृत्व में की गई। इस अवसर पर जिला मुख्यालय सभागार में विभिन्न विभागों के पदाधिकारी और प्रतिनिधि शामिल हुए।
जिलाधिकारी ने बताया कि पोषण पखवाड़ा का उद्देश्य है कि समुदाय के अंतिम व्यक्ति तक पोषण संबंधी जानकारी और सेवाएं पहुँचें — विशेषकर गर्भवती महिलाएं, धात्री माताएं, शिशु और किशोरियाँ। यह अभियान एक जन आंदोलन के रूप में चलाया जा रहा है ताकि हर व्यक्ति पोषण के महत्व को समझे और इसे अपनी जीवनशैली का हिस्सा बनाए।
जिले में आगामी 22 अप्रैल तक कार्यक्रम से जन को होने वाले प्रमुख लाभ: प्रभारी कार्यक्रम पदाधिकारी श्रीमती जीनत यस्मिन ने बताया कि:
गर्भवती महिलाओं और नवजातों के पहले 1000 दिनों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, जिससे बच्चों का सर्वांगीण विकास सुनिश्चित हो सके।
कुपोषित बच्चों की समय पर पहचान कर उन्हें आवश्यक चिकित्सा व परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
पोषण ट्रैकर और C-SAM मॉड्यूल के माध्यम से तकनीकी निगरानी और पोषण सुधार की प्रभावी व्यवस्था सुनिश्चित की जाएगी।
आंगनवाड़ी केंद्रों पर पोषण मेले, पोषण थाली, पोषण परामर्श जैसी गतिविधियों के माध्यम से ग्रामीण समुदाय में जागरूकता बढ़ेगी।
मोटापे, एनीमिया और अन्य पोषण संबंधी समस्याओं से बचाव हेतु जनजागरूकता और व्यवहार परिवर्तन पर बल दिया जाएगा।
अंतर-विभागीय समन्वय के माध्यम से हर घर तक पोषण की जानकारी एवं सेवाएं पहुँचाई जाएंगी।
पोषण पखवाड़ा: एक सामाजिक आंदोलन जिलाधिकारी श्री विशाल राज ने अपने उद्घाटन संबोधन में कहा, “पोषण पखवाड़ा केवल एक सरकारी कार्यक्रम नहीं, बल्कि जन-जन से जुड़ा एक सामाजिक आंदोलन है। इसके माध्यम से हम एक स्वस्थ, जागरूक और सक्षम पीढ़ी की नींव रख सकते हैं।”
उन्होंने सभी विभागों को अभियान के अंतर्गत निर्धारित कैलेंडर एवं दिशा-निर्देशों के अनुसार कार्य करते हुए डैशबोर्ड पर नियमित प्रविष्टि और फोटो रिपोर्टिंग का निर्देश दिया। उन्होंने जोर दिया: “पोषण एक अधिकार है, न कि विकल्प। यह अभियान हमें एक सशक्त और सुपोषित भारत की ओर ले जाने वाला कदम है।”
समन्वय और सुचारू कार्यान्वयन हेतु जिलाधिकारी ने सभी विभागों को एक-एक नोडल पदाधिकारी नामित करने का निर्देश दिया, जिससे कार्यक्रम की दैनिक मॉनिटरिंग और परिणामों का मूल्यांकन सरल हो सके।
“पोषण और स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक” सिविल सर्जन डॉ. मंजर आलम ने कहा, “पोषण और स्वास्थ्य एक-दूसरे के पूरक हैं। कुपोषण न केवल बच्चों के विकास को रोकता है, बल्कि रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर करता है।” उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य विभाग C-SAM मॉड्यूल के माध्यम से गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान कर उनका समुचित प्रबंधन सुनिश्चित करेगा।
डॉ. आलम ने यह भी जोड़ा, “स्वस्थ समाज की कल्पना केवल पोषण आधारित जीवनशैली से ही संभव है। यह कार्यक्रम समय रहते गंभीर कुपोषण, एनीमिया और अस्वस्थ आदतों से निपटने का अवसर प्रदान करता है।”
ICDS की जिला कार्यक्रम पदाधिकारी ने कहा कि हमारा मुख्य फोकस बच्चों, किशोरियों और माताओं को पोषण के प्रति जागरूक बनाना है। आंगनवाड़ी केंद्र इस अभियान के प्रमुख केंद्र बिंदु होंगे, जहां समुदाय से सीधा संवाद और सहभागिता होगी।
प्रमुख गतिविधियाँ:
जीवन के पहले 1000 दिनों पर केंद्रित जागरूकता एवं सेवा कार्यक्रम
पोषण ट्रैकर पर लाभार्थियों का स्व-पंजीकरण
C-SAM मॉड्यूल द्वारा गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान
मोटापा और एनीमिया से निपटने हेतु जीवनशैली आधारित पहल
पर्यावरण और पोषण को जोड़ते हुए “Mission LiFE” के साथ समन्वय