जागरूकता, नियमित जांच और बेहतर परामर्श से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार की ओर कदम
सारस न्यूज़, किशनगंज।
मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से किशनगंज जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने संयुक्त रूप से गुणवत्तापूर्ण एएनसी (Antenatal Care) जांच को लेकर एक सशक्त अभियान की शुरुआत की है। इस पहल का मकसद है कि जिले की हर गर्भवती महिला अपनी गर्भावस्था के आरंभिक चरण से ही नियमित जांच करवाकर सुरक्षित मातृत्व की दिशा में आगे बढ़े।
सुरक्षित मातृत्व की नींव — पहली जांच से जिलाधिकारी विशाल राज ने बताया कि गर्भवती महिलाओं की पहचान पहली तिमाही में ही की जा रही है और उनका एएनसी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रूप से कराया जा रहा है। प्रत्येक गर्भवती महिला की कम से कम चार बार जांच सुनिश्चित की जा रही है। उन्होंने कहा, “गर्भावस्था की देखभाल का आरंभ पहली एएनसी जांच से ही होता है। यह न केवल जटिलताओं की पहचान में मदद करती है, बल्कि पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और प्रसव पूर्व तैयारी में भी मार्गदर्शन देती है। गुणवत्तापूर्ण जांच से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में ठोस कमी लाने का लक्ष्य है।”
स्वास्थ्य केंद्रों पर बेहतर जांच और परामर्श की सुविधा महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शबनम यास्मीन ने बताया कि जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC), हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWC) और अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (APHC) पर गर्भवती महिलाओं के लिए सभी आवश्यक जांचें और परामर्श सेवाएं उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा, “अब केवल जांच ही नहीं की जा रही है, बल्कि परिणामों के आधार पर व्यक्तिगत परामर्श और उपचार भी दिए जा रहे हैं। एनीमिया, रक्तचाप, और शुगर जैसी समस्याओं का समय रहते पता चलने से जटिल प्रसव के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सका है।”
एचआईवी और सिफलिस जांच अनिवार्य — शिशु संक्रमण से सुरक्षा जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. देवेंद्र कुमार ने बताया कि एएनसी जांच के दौरान एचआईवी और सिफलिस टेस्ट अब सभी गर्भवती महिलाओं के लिए अनिवार्य कर दिए गए हैं। इसके लिए एएनएम को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा, “एचआईवी-सिफलिस जांच से संक्रमित माताओं से शिशु में संक्रमण के प्रसार को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। हर गर्भवती महिला की शुरुआती जांच हमारी प्राथमिकता है। तकनीकी सहायता और जागरूकता के माध्यम से हम जांच की गुणवत्ता को निरंतर सशक्त बना रहे हैं।”
एचआरपी मामलों की सटीक पहचान — जांच से मिले नए संकेत सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि अब एएनसी जांच से ही एचआरपी (High Risk Pregnancy) के मामलों की समय पर पहचान की जा रही है। ब्लड प्रेशर, हेमोग्लोबिन, यूरिन टेस्ट और वजन जैसे बेसिक टेस्ट से गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य का सही मूल्यांकन संभव हो रहा है। उन्होंने कहा, “गुणवत्ता सुधार का अर्थ केवल जांच पूरी करना नहीं है, बल्कि हर जांच को उपयोगी और परिणामोन्मुख बनाना है। प्रत्येक जांच के बाद गर्भवती महिलाओं को आवश्यक पोषण परामर्श देना स्वास्थ्यकर्मियों की जिम्मेदारी है।”
स्वस्थ मातृत्व की दिशा में जन-जागरूकता अभियान स्वास्थ्य विभाग ने आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं के माध्यम से गांव-गांव जाकर गर्भवती महिलाओं को जागरूक करने का अभियान शुरू किया है। उन्हें बताया जा रहा है कि एएनसी जांच कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि “मां बनने की तैयारी का पहला कदम” है। सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा, “हमारा उद्देश्य है कि हर गर्भवती महिला अपने पहले ट्राइमेस्टर में ही एएनसी जांच कराए। यह पहल मातृत्व को न केवल सुरक्षित बनाती है बल्कि सम्मानजनक प्रसव अनुभव की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
सकारात्मक परिणामों की उम्मीद किशनगंज जिला स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि नियमित, सटीक और गुणवत्तापूर्ण एएनसी जांच से माताओं और नवजात शिशुओं दोनों के स्वास्थ्य में दीर्घकालिक सुधार आएगा। एएनसी जांच से मिलने वाले आंकड़ों के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं की योजना और अधिक सुदृढ़ की जा रही है। यह पहल न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव है, बल्कि “सुरक्षित मातृत्व — स्वस्थ भविष्य” के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में किशनगंज जिला एक नई मिसाल पेश कर रहा है।
जागरूकता, नियमित जांच और बेहतर परामर्श से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य में सुधार की ओर कदम
सारस न्यूज़, किशनगंज।
मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से किशनगंज जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग ने संयुक्त रूप से गुणवत्तापूर्ण एएनसी (Antenatal Care) जांच को लेकर एक सशक्त अभियान की शुरुआत की है। इस पहल का मकसद है कि जिले की हर गर्भवती महिला अपनी गर्भावस्था के आरंभिक चरण से ही नियमित जांच करवाकर सुरक्षित मातृत्व की दिशा में आगे बढ़े।
सुरक्षित मातृत्व की नींव — पहली जांच से जिलाधिकारी विशाल राज ने बताया कि गर्भवती महिलाओं की पहचान पहली तिमाही में ही की जा रही है और उनका एएनसी रजिस्ट्रेशन अनिवार्य रूप से कराया जा रहा है। प्रत्येक गर्भवती महिला की कम से कम चार बार जांच सुनिश्चित की जा रही है। उन्होंने कहा, “गर्भावस्था की देखभाल का आरंभ पहली एएनसी जांच से ही होता है। यह न केवल जटिलताओं की पहचान में मदद करती है, बल्कि पोषण, मानसिक स्वास्थ्य और प्रसव पूर्व तैयारी में भी मार्गदर्शन देती है। गुणवत्तापूर्ण जांच से मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में ठोस कमी लाने का लक्ष्य है।”
स्वास्थ्य केंद्रों पर बेहतर जांच और परामर्श की सुविधा महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. शबनम यास्मीन ने बताया कि जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC), हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर (HWC) और अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (APHC) पर गर्भवती महिलाओं के लिए सभी आवश्यक जांचें और परामर्श सेवाएं उपलब्ध हैं। उन्होंने कहा, “अब केवल जांच ही नहीं की जा रही है, बल्कि परिणामों के आधार पर व्यक्तिगत परामर्श और उपचार भी दिए जा रहे हैं। एनीमिया, रक्तचाप, और शुगर जैसी समस्याओं का समय रहते पता चलने से जटिल प्रसव के जोखिम को काफी हद तक कम किया जा सका है।”
एचआईवी और सिफलिस जांच अनिवार्य — शिशु संक्रमण से सुरक्षा जिला प्रतिरक्षण पदाधिकारी डॉ. देवेंद्र कुमार ने बताया कि एएनसी जांच के दौरान एचआईवी और सिफलिस टेस्ट अब सभी गर्भवती महिलाओं के लिए अनिवार्य कर दिए गए हैं। इसके लिए एएनएम को विशेष प्रशिक्षण प्रदान किया गया है। उन्होंने कहा, “एचआईवी-सिफलिस जांच से संक्रमित माताओं से शिशु में संक्रमण के प्रसार को प्रभावी ढंग से रोका जा सकता है। हर गर्भवती महिला की शुरुआती जांच हमारी प्राथमिकता है। तकनीकी सहायता और जागरूकता के माध्यम से हम जांच की गुणवत्ता को निरंतर सशक्त बना रहे हैं।”
एचआरपी मामलों की सटीक पहचान — जांच से मिले नए संकेत सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि अब एएनसी जांच से ही एचआरपी (High Risk Pregnancy) के मामलों की समय पर पहचान की जा रही है। ब्लड प्रेशर, हेमोग्लोबिन, यूरिन टेस्ट और वजन जैसे बेसिक टेस्ट से गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य का सही मूल्यांकन संभव हो रहा है। उन्होंने कहा, “गुणवत्ता सुधार का अर्थ केवल जांच पूरी करना नहीं है, बल्कि हर जांच को उपयोगी और परिणामोन्मुख बनाना है। प्रत्येक जांच के बाद गर्भवती महिलाओं को आवश्यक पोषण परामर्श देना स्वास्थ्यकर्मियों की जिम्मेदारी है।”
स्वस्थ मातृत्व की दिशा में जन-जागरूकता अभियान स्वास्थ्य विभाग ने आशा और एएनएम कार्यकर्ताओं के माध्यम से गांव-गांव जाकर गर्भवती महिलाओं को जागरूक करने का अभियान शुरू किया है। उन्हें बताया जा रहा है कि एएनसी जांच कोई औपचारिकता नहीं, बल्कि “मां बनने की तैयारी का पहला कदम” है। सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा, “हमारा उद्देश्य है कि हर गर्भवती महिला अपने पहले ट्राइमेस्टर में ही एएनसी जांच कराए। यह पहल मातृत्व को न केवल सुरक्षित बनाती है बल्कि सम्मानजनक प्रसव अनुभव की दिशा में एक बड़ा कदम है।”
सकारात्मक परिणामों की उम्मीद किशनगंज जिला स्वास्थ्य विभाग का मानना है कि नियमित, सटीक और गुणवत्तापूर्ण एएनसी जांच से माताओं और नवजात शिशुओं दोनों के स्वास्थ्य में दीर्घकालिक सुधार आएगा। एएनसी जांच से मिलने वाले आंकड़ों के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं की योजना और अधिक सुदृढ़ की जा रही है। यह पहल न केवल स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की दिशा में एक सकारात्मक बदलाव है, बल्कि “सुरक्षित मातृत्व — स्वस्थ भविष्य” के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में किशनगंज जिला एक नई मिसाल पेश कर रहा है।
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