सारस न्यूज, गलगलिया, किशनगंज, बिहार।
बात करनी पड़ती हैन चाहते हुए भी बात करनी पड़ती है, कभी-कभी दुश्मनों से भी मुलाकात करनी पड़ती है। भले ही हो दिल में दर्द के तूफ़ान, फिर भी होठों पे मुस्कान रखनी पड़ती है। गुम न हो जायें कहीं दुनियां की भीड़ में इसलिए अपनी अलग पहचान रखनी पड़ती है। सादगी से रहो तो अक्सर काहिल समझते हैं लोग, कभी-कभी ताकत की बरसात करनी पड़ती है। डूब न जाये कश्तियां मझधार में लहरों पे भी तो लगाम कसनी पड़ती है। बेअसर हो जाती है अक्सर जुबां जज्बातो की, कभी-कभी अपनी कड़क आवाज रखनी पड़ती है। मुशकिलों के दौर में 'सनम' हमसफर मिलते नही, मंजिल अपनी तनहा ही हासिल करनी पड़ती है। बिंदु अग्रवाल,गलगलिया,किशनगंज,बिहार।