प्रायः लोगों को धर्म के नाम पर लड़ते- झगड़ते देखा जाता हैं। धार्मिक हिंसाओं से भी लोगों को दो चार होना पड़ता है। मगर, कई ऐसे परिवार भी हैं जिसे यह कभी ख्याल नहीं आया कि वह दोनों धर्म के नाम पर लड़ें। पैसों की तंगी रही तो उसपर जली-कटी हुई हो पर मगर धर्म के नाम पर नहीं। होने को बहुत कुछ हो सकता था। दोनों का धर्म अलग था, अलग ही रह गया। पति के साथ भी, पति के बाद भी। पहले पति की मौत हुई और अब पत्नी की। पर एक कहानी तब सामने आई जब पत्नी की मौत हुई। कहानी भले विवाद के साथ सामने आई, लेकिन बिहार के एक घर से निकली यह कहानी बहुत कुछ बताती है, सिखाती है। इसलिए, इस कहानी को कहानी की तरह ही बताते हैं।
एक घर में तीन लोग हिंदू, तीन मुसलमान:-
कहानी 45-46 साल पहले की है। रायका खातून का निकाह होता है। दो बच्चे होते हैं- मो. मोफिल और मो. सोनेलाल। बच्चे दो-तीन साल के रहे होंगे कि शौहर रायका को छोड़ देता है। उसके बाद रायका की मुलाकात बेगूसराय की राजेंद्र झा से होती है। राजेंद्र झा कर्मकांडी पंडित थे। यही उनका रोजगार का जरिया। दोनों की मुलाकात कुछ आगे बढ़ती है, लेकिन समाज के डर से वह सार्वजनिक तौर पर शादी कर अपने घर नहीं जाते हैं। दोनों शादी करते हैं और राजेंद्र झा अपनी पत्नी रायका खातून को लेकर अपने घर सिंहचक की जगह जानकीडीह में बस जाते हैं।
यहां इसलिए कि इस इलाके में पूजापाठ कराने वाले कोई पंडित पहले से नहीं थे। यह इलाका आज लखीसराय जिले के चानन प्रखंड में है। यहां इस अंतर-धार्मिक शादी को लेकर बात न बने, इसलिए पंडित जी ने रायका खातून को रेखा देवी नाम दे दिया। लेकिन, पंडित जी के घर का सीन अलग था। पंडित जी पूजा कराने जाते और घर में भी पूजा-पाठ करते। उधर, बाहर रेखा के रूप में नजर आने वाली रायका घर में नमाज पढ़तीं।
पंडित जी से रेखा को दो बच्चे हुए- बेटा बबलू झा और बेटी तेतरी। इस तरह एक घर में तीन हिंदू और तीन मुसलमान जी रहे थे। मो. मोफिल के निकाह तक यह चलता रहा। मो. मोफिल ने निकाह के बाद अलग झोपड़ी में आशियाना बसा लिया। भाई मो. सोनेलाल भी साथ चला गया। इधर पंडित जी का निधन हो गया तो हिंदू मान्यताओं के अनुसार क्रियाकर्म हुआ।
रायका या रेखा, मौत के बाद उठा विवाद:-
हट मंगलवार को रायका उर्फ रेखा की मौत हो गई। अब हिंदू और मुसलमान, दो टुकड़ों में बंटा यह परिवार लोगों के सामने आया। मो. मोफिल और मो. सोनेलाल का कहना था कि रायका खातून ताउम्र मुसलमान धर्म को मानते हुए नमाज पढ़ रही थीं, इसलिए उन्हें सुपुर्द-ए-खाक करना चाहिए। दूसरी तरफ बबलू झा का कहना था कि रेखा देवी के पति राजेंद्र झा हिंदू थे, इसलिए अंतिम संस्कार हिंदू धर्म के अनुसार दाह-संस्कार के जरिए होना चाहिए। दोनों मुसलमान भाई और उनका सौतेला हिंदू भाई अपनी जिद पर ऐसे अड़े कि थाना-पुलिस हो गया। थानाध्यक्ष के समझाने पर भी रास्ता नहीं निकला।
अंत में एएसपी सैयद इमरान मसूद आए और फैसला हुआ। फैसला यह हुआ कि राजेंद्र झा की पत्नी थीं, इसलिए रेखा देवी के रूप में दाह-संस्कार होगा। हिंदू पुत्र अपने धर्म के हिसाब से श्राद्ध कर्म कर लें और मुस्लिम बेटे अपने धर्म के हिसाब से दाह संस्कार कर्मकांड को संपन्न कर रहे हैं।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
प्रायः लोगों को धर्म के नाम पर लड़ते- झगड़ते देखा जाता हैं। धार्मिक हिंसाओं से भी लोगों को दो चार होना पड़ता है। मगर, कई ऐसे परिवार भी हैं जिसे यह कभी ख्याल नहीं आया कि वह दोनों धर्म के नाम पर लड़ें। पैसों की तंगी रही तो उसपर जली-कटी हुई हो पर मगर धर्म के नाम पर नहीं। होने को बहुत कुछ हो सकता था। दोनों का धर्म अलग था, अलग ही रह गया। पति के साथ भी, पति के बाद भी। पहले पति की मौत हुई और अब पत्नी की। पर एक कहानी तब सामने आई जब पत्नी की मौत हुई। कहानी भले विवाद के साथ सामने आई, लेकिन बिहार के एक घर से निकली यह कहानी बहुत कुछ बताती है, सिखाती है। इसलिए, इस कहानी को कहानी की तरह ही बताते हैं।
एक घर में तीन लोग हिंदू, तीन मुसलमान:-
कहानी 45-46 साल पहले की है। रायका खातून का निकाह होता है। दो बच्चे होते हैं- मो. मोफिल और मो. सोनेलाल। बच्चे दो-तीन साल के रहे होंगे कि शौहर रायका को छोड़ देता है। उसके बाद रायका की मुलाकात बेगूसराय की राजेंद्र झा से होती है। राजेंद्र झा कर्मकांडी पंडित थे। यही उनका रोजगार का जरिया। दोनों की मुलाकात कुछ आगे बढ़ती है, लेकिन समाज के डर से वह सार्वजनिक तौर पर शादी कर अपने घर नहीं जाते हैं। दोनों शादी करते हैं और राजेंद्र झा अपनी पत्नी रायका खातून को लेकर अपने घर सिंहचक की जगह जानकीडीह में बस जाते हैं।
यहां इसलिए कि इस इलाके में पूजापाठ कराने वाले कोई पंडित पहले से नहीं थे। यह इलाका आज लखीसराय जिले के चानन प्रखंड में है। यहां इस अंतर-धार्मिक शादी को लेकर बात न बने, इसलिए पंडित जी ने रायका खातून को रेखा देवी नाम दे दिया। लेकिन, पंडित जी के घर का सीन अलग था। पंडित जी पूजा कराने जाते और घर में भी पूजा-पाठ करते। उधर, बाहर रेखा के रूप में नजर आने वाली रायका घर में नमाज पढ़तीं।
पंडित जी से रेखा को दो बच्चे हुए- बेटा बबलू झा और बेटी तेतरी। इस तरह एक घर में तीन हिंदू और तीन मुसलमान जी रहे थे। मो. मोफिल के निकाह तक यह चलता रहा। मो. मोफिल ने निकाह के बाद अलग झोपड़ी में आशियाना बसा लिया। भाई मो. सोनेलाल भी साथ चला गया। इधर पंडित जी का निधन हो गया तो हिंदू मान्यताओं के अनुसार क्रियाकर्म हुआ।
रायका या रेखा, मौत के बाद उठा विवाद:-
हट मंगलवार को रायका उर्फ रेखा की मौत हो गई। अब हिंदू और मुसलमान, दो टुकड़ों में बंटा यह परिवार लोगों के सामने आया। मो. मोफिल और मो. सोनेलाल का कहना था कि रायका खातून ताउम्र मुसलमान धर्म को मानते हुए नमाज पढ़ रही थीं, इसलिए उन्हें सुपुर्द-ए-खाक करना चाहिए। दूसरी तरफ बबलू झा का कहना था कि रेखा देवी के पति राजेंद्र झा हिंदू थे, इसलिए अंतिम संस्कार हिंदू धर्म के अनुसार दाह-संस्कार के जरिए होना चाहिए। दोनों मुसलमान भाई और उनका सौतेला हिंदू भाई अपनी जिद पर ऐसे अड़े कि थाना-पुलिस हो गया। थानाध्यक्ष के समझाने पर भी रास्ता नहीं निकला।
अंत में एएसपी सैयद इमरान मसूद आए और फैसला हुआ। फैसला यह हुआ कि राजेंद्र झा की पत्नी थीं, इसलिए रेखा देवी के रूप में दाह-संस्कार होगा। हिंदू पुत्र अपने धर्म के हिसाब से श्राद्ध कर्म कर लें और मुस्लिम बेटे अपने धर्म के हिसाब से दाह संस्कार कर्मकांड को संपन्न कर रहे हैं।