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महाभारत काल से जुड़ा है किशनगंज जिले का ठाकुरगंज प्रखंड।

सारस न्यूज, वेब डेस्क।

ठाकुरगंज भारत के बिहार राज्य के किशनगंज ज़िले में स्थित एक नगर है। राष्ट्रीय राजमार्ग 327 यहाँ से गुज़रता है। पुरोहित जयंत गांगुली के अनुसार ठाकुरगंज का पुराना नाम कनकपुर था, जिसे रविंद्र नाथ ठाकुर के वंशज ज्योनिन्द्र मोहन ठाकुर ने खरीदा था और इसका नाम ठाकुरगंज रखा। 1897 में उनके परिवार द्वारा पूर्वोत्तर कोण में पाण्डव काल के भग्नावशेष की खुदाई क्रम में शिवलिंग मिला, जाे एक फुट काले पत्थर का था। नेपाल के बगल में एवं बिहार के आखिरी छोर पर स्थित किशनगंज जिले का ठाकुरगंज प्रखंड वैसे तो कई प्रकार से इतिहास से संबंधित है लेकिन मुख्य रूप से लोग इसे महाभारत से जोड़कर खासकर पांडवो के अज्ञातवास स्थल के रूप में भी जानते हैं। जैसा की सभी जानते है कि पांडवो को जब अज्ञातवास मिला था तब उन्होंने कुछ समय इस क्षेत्र में बिताया था। हमेशा से ही लोगों का मानना है कि महाभारत के समय के कई धरोहर ठाकुरगंज व इसके आसपास बिखरे हैं। उन्हीं में से एक स्थल भीमतकिया के नाम से प्रसिद्ध है जो वार्ड नंबर 4 में स्थित है। यह एक तकिया के आकार का गोल टीला है जिसे लोग भीम का तकिया कहते हैं और मानते हैं कि अज्ञातवास के दिनों में विशालकाय भीम इसी टीले पर सर रख कर विश्राम किया करते थे। नगर के वार्ड नंबर 6 में भातढ़ाला एवं वार्ड नंबर एक में सागढ़ाला पोखर है जहां कि मान्यता है कि पांडवों ने स्नान के लिए तालाब बनवाया था और वे यहां खाना भी बनाते थे। इसी प्रकार पटेसरी पंचायत अंतर्गत दूधमंजर में एक खीर समुंद्र नामक स्थल है। जहां माना जाता है कि अर्जुन ने अपने वाण से खीर की नदी बनाई थी। आज के समय में लोग इसे खीर समुन्द्र के नाम से जानते हैं और माघ मास के पूर्णिमा के मौके पर यहां लोग आकर पूजा-अर्चना करते हैं और यहां मेला भी लगता है। बंदरझूला पंचायत अंतर्गत कन्हैया जी एक टापू है जहां पांडवो में अपना समय बिताया था। सबसे प्रत्यक्ष प्रमाण इस बात का है कि प्रखंड क्षेत्र से बिलकुल सटे मेची नदी के उस पार नेपाल में महाभारत काल में भीम ने कीचक नाम के राक्षक का वध किया था। इस स्थान पर कीचक का वध करते हुए एक प्रतिमा आज भी कीचकबध स्थल पर लगी है। यहां भी माघी पूर्णिमा के मौके पर मेला लगता है और लोग पूजा-अर्चना के लिए यहां पहुंचते हैं। आस्था और मान्यताओं से भरा ठाकुरगंज प्रखंड वैसे तो काफी ऐतिहासिक है लेकिन यहां के धरोहर सुरक्षित नहीं है। 2022 का यह वर्ष इस बात का गवाह है जो भीमतकिया किसी समय में इतना ऊंचा हुआ करता था वो आज के समय में कहीं खो सा गया है। पुरातत्व विभाग या जिला प्रशासन का शायद ही इनपर ध्यान गया है। वैसे तो 2007 में पुरातत्व विभाग ने इन जगहों का जायज़ा लिया था और इनके संरक्षण की योजना भी तैयार की थी लेकिन इतनों में सिर्फ कन्हैयाजी में टापू के ऊपर कार्य किया गया। आज के समय में भी लोग कई जगहों से इन स्थलों को देखने आते हैं चाहे वो भीमतकिया हो या खीर समुंद्र का मेला या फिर किचक वध का मेला।

ठाकुरगंज के हारगौरी मंदिर का भी अपना अलग ही इतिहास है। 118 वर्ष पूर्व रविंद्र नाथ ठाकुर के वंशजों ने इस मंदिर की स्थापना की। यह मंदिर हमेशा से ही श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र बना हुआ है।

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