सारस न्यूज, किशनगंज।
मंगलवार को डॉ. कलाम कृषि महाविद्यालय अर्राबाड़ी (किशनगंज) के अधीनस्थ कार्यरत मात्स्यिकी महाविद्यालय के शिक्षकों ने ठाकुरगंज के जामनीगुड़ी गांव में स्थित मत्स्य फार्म का दौरा किया। मात्स्यिकी महाविद्यालय के अनुसंधान कार्यक्रम अंतर्गत महाविद्यालय के शिक्षक भारतेंदु विमल एवं सुदेशना सरकार मत्स्यपालक बिजली प्रसाद सिंह के मत्स्य फार्म पहुंचे।
मात्स्यिकी महाविद्यालय के शिक्षकों ने सीमांचल क्षेत्र के किशनगंज, अररिया एवं पूर्णिया जिले में मीठे जल की मछलियों में होने वाले रोगों पर अनुसंधान हेतु फार्म पर मिट्टी एवं पानी की जांच की। इस दौरान द्वय शिक्षकों ने मत्स्यपालक बिजली प्रसाद सिंह के 14 एकड़ में बनाए गए 8 पाेखरों में पाले जा रहे विभिन्न प्रजाति के मछलियों के नमूने एकत्र किए। इस संबंध में मात्स्यिकी महाविद्यालय अर्राबाड़ी के मत्स्य विभाग के व्याख्यता भारतेंदु विमल ने बताया कि मात्स्यिकी महाविद्यालय के अंतर्गत होने वाले इस अनुसंधान का मुख्य लक्ष्य मीठे जल की मछलियों में होने वाले रोग, इनके प्रमुख कारक एवं समय पूर्व इनके रोकथाम का उपाय ढूंढना हैं। उन्होंने बताया कि मछलियाँ भी अन्य प्राणियों के समान प्रतिकूल वातावारण में रोगग्रस्त हो जाती है। रोग फैलते ही संचित मछलियों के स्वभाव में प्रत्यक्ष अंतर आ जाता है। बीमार मछली समूह में न रहकर किनारे पर अलग-थलग दिखाई देती है और वे शिथिल हो जाती है। बेचैनी ओर अनियंत्रित तैरती हैं। मछली के शरीर का रंग फीका पड़ जाता है। चमक कम हो जाती है। ऐसे कई कारणों से मछली की वृध्दि रूक जाती है तथा कालान्तर में तालाब की मछली मरने भी लगती है।

उन्होंने बताया कि पानी की गुणवत्ता, तापमान, पी.एच. आँक्सीजन, कार्बन डाईआक्साइड आदि की असंतुलित मात्रा मछली के लिए घातक होती है। कार्बनिक खाद, उर्वरक या आहार आवश्यकता से अधिक दिए जाने से विषैली गैसे उत्पन्न होते है जो नुकसान दायक होती है। बहुत से रोगजनक जीवाणु व विषाणु पानी में रहते है जब मछली प्रतिकूल परिस्थिति में कमजोर हो जाती है तो उस पर जीवाण व विषाणु आक्रमण कर रोग ग्रसित कर देते हैं। इस दौरान शिक्षकों द्वारा मत्स्य फार्म के प्रबंधक सहित मौके पर मौजूद मछुआरे को मत्स्य फार्म के समुचित प्रबंधन एवं अत्यधिक मुनाफा हेतु महत्वपूर्ण सलाह दी गई।
