ठाकुरगंज: आसेका बिहार संस्था की ओर से ठाकुरगंज प्रखंड अंतर्गत बेसरबाटी पंचायत के वार्ड संख्या-06 में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता श्री उमेश टुडू ने की, जिसमें अलचिकी लिपि की पढ़ाई आगामी 22 जून, रविवार से प्रारंभ करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया।
बैठक में संस्था के प्रदेश महासचिव श्री राजेश कुमार किस्कू ने मुख्य विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि अलचिकी भाषा आदिवासी संथाल समाज की आत्मा है, और इसे हर संथाल भाई, बहन और बेटी को सीखना चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अपनी भाषा और संस्कृति को सहेजना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
श्री किस्कू ने इस अवसर पर एक दोहा भी प्रस्तुत किया:
“अल एम आद् रेले, रोड़ एम् आद् रेले, अरीचलीम् आद् रेले, आमहोम् आदो” (अर्थ: जिस दिन तुम अपनी भाषा और अरी चली संस्कृति को खो दोगे, उसी दिन तुम विलुप्त हो जाओगे।)
उन्होंने यह भी बताया कि आज असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड जैसे कई राज्यों के सरकारी विद्यालयों में अलचिकी भाषा के शिक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं। भारत के कई विश्वविद्यालयों में छात्र संथाली भाषा में पीएचडी कर रहे हैं और प्रोफेसर बनकर समाज की सेवा कर रहे हैं।
इस बैठक में श्री सरकार मरांडी, वकील सोरेन, पृथ्वी हेम्ब्रम, वीरेंद्र मुर्मू, सुनीराम सोरेन, सुखदेव सोरेन, शिवलाल टुडू, श्याम किस्कू, रूपलाल हेम्ब्रम, तांतली मुर्मू सहित दर्जनों ग्रामीणों की उपस्थिति रही। सभी ने एक स्वर में अलचिकी लिपि और संथाली संस्कृति को जीवित रखने के लिए निरंतर प्रयास करने की शपथ ली।
सारस न्यूज़, किशनगंज।
ठाकुरगंज: आसेका बिहार संस्था की ओर से ठाकुरगंज प्रखंड अंतर्गत बेसरबाटी पंचायत के वार्ड संख्या-06 में एक महत्वपूर्ण बैठक आयोजित की गई। बैठक की अध्यक्षता श्री उमेश टुडू ने की, जिसमें अलचिकी लिपि की पढ़ाई आगामी 22 जून, रविवार से प्रारंभ करने का सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया।
बैठक में संस्था के प्रदेश महासचिव श्री राजेश कुमार किस्कू ने मुख्य विषय पर चर्चा करते हुए कहा कि अलचिकी भाषा आदिवासी संथाल समाज की आत्मा है, और इसे हर संथाल भाई, बहन और बेटी को सीखना चाहिए। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि अपनी भाषा और संस्कृति को सहेजना आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता है।
श्री किस्कू ने इस अवसर पर एक दोहा भी प्रस्तुत किया:
“अल एम आद् रेले, रोड़ एम् आद् रेले, अरीचलीम् आद् रेले, आमहोम् आदो” (अर्थ: जिस दिन तुम अपनी भाषा और अरी चली संस्कृति को खो दोगे, उसी दिन तुम विलुप्त हो जाओगे।)
उन्होंने यह भी बताया कि आज असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और झारखंड जैसे कई राज्यों के सरकारी विद्यालयों में अलचिकी भाषा के शिक्षक नियुक्त किए जा चुके हैं। भारत के कई विश्वविद्यालयों में छात्र संथाली भाषा में पीएचडी कर रहे हैं और प्रोफेसर बनकर समाज की सेवा कर रहे हैं।
इस बैठक में श्री सरकार मरांडी, वकील सोरेन, पृथ्वी हेम्ब्रम, वीरेंद्र मुर्मू, सुनीराम सोरेन, सुखदेव सोरेन, शिवलाल टुडू, श्याम किस्कू, रूपलाल हेम्ब्रम, तांतली मुर्मू सहित दर्जनों ग्रामीणों की उपस्थिति रही। सभी ने एक स्वर में अलचिकी लिपि और संथाली संस्कृति को जीवित रखने के लिए निरंतर प्रयास करने की शपथ ली।
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