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माघी पूर्णिमा के अवसर पर भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द जी का मनाया गया 128वां जन्मोत्सव।


सारस न्यूज, किशनगंज।


माघी पूर्णिमा के अवसर पर शनिवार देर शाम ठाकुरगंज नगर के वार्ड नं 5 आश्रमपाड़ा में अवस्थित हिन्दू मिलन मंदिर में फटिक महाराज के नेतृत्व में विशेष पूजन आयोजित किया गया। इस मौके पर पूरा मंदिर परिसर गीता पाठ और चंडी पाठ के वैदिक मंत्रों से गुंजायमान रहा। पूजन के दौरान फटिक महाराज ने माघी पूर्णिमा के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि हिंदू धर्म में माघी पूर्णिमा का बहुत अधिक महत्व है। शास्त्रों में माघ स्नान और व्रत की महिमा बतायी गई है। इस दिन लोग पवित्र नदी में स्नान करके पूजा पाठ और दान करते हैं। वास्तव में माघी पूर्णिमा माघ मास का आखिरी दिन है और इसके ठीक अगले दिन से ही फाल्गुन की शुरूआत होती है। उन्होंने कहा कि साल में शरद पूर्णिमा सहित अन्य कई पूर्णिमा पड़ती है लेकिन इन सभी में माघी पूर्णिमा का विशेष महत्व है। शास्त्रों में लिखा गया है कि माघी पूर्णिमा पर विधि विधान से पूजा करना काफी फलदायक होता है। अपने सामर्थ्य के अनुसार लोग साधु, सन्यासियों, ब्राह्मणों और गरीबों को दान करते हैं। माना जाता है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु स्वयं गंगाजल में निवास करते हैं। इसलिए गंगाजल में स्नान और आचमन करना फलदायी होता है। माघी पूर्णिमा पर पितरों को श्राद्ध देना चाहिए। इस दिन देवता रूप बदल कर गंगा में स्नान करने धरती पर उतरते हैं और हर मनुष्य का कल्याण करते हैं। इस शुभ अवसर पर तिल, कम्बल, कपास, गुड़, घी, मोदक, फल, चरण पादुकाएं, अन्न का दान करना फलदायक होता है। इस कार्यक्रम का संचालन प्रदीप्ता दत्ता ने किया। इस मौके पर आयोजित भक्ति संगीत कार्यक्रम, होम, आरती के साथ प्रसाद वितरण का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।   मनाया गया  स्वामी प्रणवानन्द  का जन्मदिन : इस दौरान हिंदु मिलन मंदिर में भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक स्वामी प्रणवानन्द जी का 128वा  जन्मोत्सव भी मनाया गया। इस दौरान भारत सेवाश्रम संघ के संस्थापक सह युवाचार्य स्वामी प्रणवानंद जी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला गया। कार्यक्रम के संचालक प्रदीप्त दत्ता ने इस उपस्थित लोगो को संबोधित करते हुए बताया कि स्वामी प्रणवानंद जी महाराज का जन्म 29 जनवरी 1896 ई. (माघ पूर्णिमा) को ग्राम बाजिदपुर, जिला फरीदपुर (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था। 1913 ई. में विजयादशमी के दूसरे दिन गोरखपुर के बाबा गम्भीरनाथ ने उन्हें ब्रह्मचारी की दीक्षा दी। 1924 ई. में पौष पूर्णिमा के दिन स्वामी गोविन्दानन्द गिरि से संन्यास की दीक्षा ली। अब उनका नाम स्वामी प्रणवानन्द हो गया।

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