ठाकुरगंज प्रखंड के अंतर्गत आने वाली सखुआ डाली पंचायत में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव देखने को मिल रहा है। इस पंचायत की भौगोलिक स्थिति भी इसके विकास में बड़ी बाधा बन रही है।
यह इलाका तीन नदियों — महानंदा, चेंगा, और टेमूर — से चारों ओर से घिरा हुआ है। खासकर बारिश के मौसम में ये पंचायत एक ‘जलद्वीप’ का रूप ले लेता है। चारों दिशाओं से नदियों का पानी फैलने के कारण पंचायत का संपर्क बाहरी दुनिया से कट जाता है, जिससे लोगों को काफी परेशानी होती है।
पंचायत की स्थिति मानसून में भयावह हो जाती है। पश्चिमी सीमा पर चेंगा नदी, पूर्व और दक्षिण की ओर महानंदा, और उत्तर दिशा में टेमूर नदी का प्रवाह इस इलाके को पूरी तरह घेर लेता है।
नदी किनारे बसे गांवों जैसे नींबू भिट्ठा, दहीभाषा, शिशा गुरी बथान, दधीगच्छ, और थारोसिंघा में बाढ़ के दौरान पानी घरों तक घुस जाता है। इससे ना सिर्फ जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और आपात सेवाएं भी ठप पड़ जाती हैं।
स्थानीय लोगों ने प्रशासन से राहत और स्थायी समाधान की मांग की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। बरसात के हर मौसम में ये पंचायत अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है।
सारस न्यूज, वेब डेस्क।
ठाकुरगंज प्रखंड के अंतर्गत आने वाली सखुआ डाली पंचायत में मूलभूत सुविधाओं का घोर अभाव देखने को मिल रहा है। इस पंचायत की भौगोलिक स्थिति भी इसके विकास में बड़ी बाधा बन रही है।
यह इलाका तीन नदियों — महानंदा, चेंगा, और टेमूर — से चारों ओर से घिरा हुआ है। खासकर बारिश के मौसम में ये पंचायत एक ‘जलद्वीप’ का रूप ले लेता है। चारों दिशाओं से नदियों का पानी फैलने के कारण पंचायत का संपर्क बाहरी दुनिया से कट जाता है, जिससे लोगों को काफी परेशानी होती है।
पंचायत की स्थिति मानसून में भयावह हो जाती है। पश्चिमी सीमा पर चेंगा नदी, पूर्व और दक्षिण की ओर महानंदा, और उत्तर दिशा में टेमूर नदी का प्रवाह इस इलाके को पूरी तरह घेर लेता है।
नदी किनारे बसे गांवों जैसे नींबू भिट्ठा, दहीभाषा, शिशा गुरी बथान, दधीगच्छ, और थारोसिंघा में बाढ़ के दौरान पानी घरों तक घुस जाता है। इससे ना सिर्फ जनजीवन अस्त-व्यस्त हो जाता है, बल्कि स्वास्थ्य, शिक्षा और आपात सेवाएं भी ठप पड़ जाती हैं।
स्थानीय लोगों ने प्रशासन से राहत और स्थायी समाधान की मांग की है, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है। बरसात के हर मौसम में ये पंचायत अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को मजबूर है।
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