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छोटा परिवार, सुखी परिवार” का सपना हो रहा साकार।

राहुल कुमार, सारस न्यूज, किशनगंज।


परिवार जितना छोटा, खुशहाली उतनी बड़ी – यह सिर्फ एक नारा नहीं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक समृद्धि की दिशा में एक मजबूत कदम है। जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण, मातृ-शिशु स्वास्थ्य में सुधार, आर्थिक स्थिरता और बेहतर जीवनशैली – यह सब कुछ परिवार नियोजन के माध्यम से ही संभव हो सकता है। इसके बावजूद आज भी समाज के एक वर्ग, खासकर पुरुषों में इस विषय को लेकर जागरूकता और पहल की कमी देखने को मिलती है।

सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (NFHS-5) के आंकड़े किशनगंज जिले की स्थिति स्पष्ट करते हैं। जिले की कुल 25.3 प्रतिशत आबादी ही परिवार नियोजन के किसी न किसी साधन का उपयोग कर रही है। इनमें महिला नसबंदी 14.6 प्रतिशत, पुरुष नसबंदी मात्र 0.1 प्रतिशत, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल 3.5 प्रतिशत और कंडोम का उपयोग करने वाले पुरुष 7.3 प्रतिशत हैं।

ये आंकड़े दर्शाते हैं कि परिवार नियोजन की जिम्मेदारी आज भी महिलाओं पर ही अधिक है, जबकि पुरुषों की भागीदारी न्यूनतम है। यह मानसिकता न केवल महिलाओं के स्वास्थ्य और सम्मान के लिए चुनौती है, बल्कि सामाजिक संतुलन और सतत विकास के लिए भी एक बड़ी रुकावट बन रही है। उन्होंने बताया कि जिले में व्यापक जागरूकता के लिए सहयोगी संस्था सिफार एवं पीएसआई लगातार कार्य कर रही हैं।

परिवार नियोजन: सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति की कुंजी
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्य (SDGs) 2030 के तहत स्वास्थ्य और कल्याण (SDG-3), लैंगिक समानता (SDG-5), गरीबी उन्मूलन (SDG-1) और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा (SDG-4) जैसे कई प्रमुख लक्ष्य सीधे तौर पर जनसंख्या स्थिरीकरण और परिवार नियोजन से जुड़े हुए हैं।

जब परिवार छोटा होता है, तो माताएं अधिक सुरक्षित होती हैं, बच्चों को पोषण, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर मिलती हैं, और परिवार की आय का उपयोग अधिक कुशलता से किया जा सकता है। इस तरह परिवार नियोजन केवल व्यक्तिगत या पारिवारिक विषय नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक विकास का आधार बनता है।

जिले में भी इस दिशा में स्वास्थ्य विभाग लगातार प्रयास कर रहा है। सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी के अनुसार जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर अस्थायी और स्थायी दोनों प्रकार के परिवार नियोजन साधन निःशुल्क उपलब्ध हैं। प्राथमिक, सामुदायिक, उप-स्वास्थ्य केंद्रों और जिला अस्पताल में दैनिक तथा साप्ताहिक गर्भनिरोधक गोलियाँ, अंतरा इंजेक्शन, आपातकालीन गोली, “निश्चय” किट और कंडोम की उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। सभी केंद्रों पर कंडोम बॉक्स लगाए गए हैं और उनके वितरण व भंडारण की निगरानी एफएलएमआईएस प्रणाली के माध्यम से हो रही है।

सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. अनवर हुसैन बताते हैं कि पुरुष नसबंदी, महिला नसबंदी की तुलना में ज्यादा सरल, सुरक्षित और कम संसाधन वाली प्रक्रिया है, फिर भी इसे लेकर समाज में भ्रांतियाँ हैं। यही कारण है कि पुरुष नसबंदी का प्रतिशत जिले में न के बराबर है। जब तक पुरुष वर्ग परिवार नियोजन को अपनी जिम्मेदारी नहीं मानेगा, तब तक न तो महिलाओं को सशक्त किया जा सकता है और न ही समाज को संतुलित रूप से आगे बढ़ाया जा सकता है।

सरल साधन, बेहतर परिणाम
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि परिवार नियोजन साधनों के उपयोग से समाज को जो बहुआयामी लाभ मिलते हैं, वे सिर्फ स्वास्थ्य या जनसंख्या नियंत्रण तक सीमित नहीं हैं। यह महिलाओं को निर्णय लेने का अधिकार देता है, किशोरियों में कम उम्र में गर्भावस्था रोकता है, एचआईवी/एड्स जैसी बीमारियों से बचाव करता है और बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और पोषण का रास्ता खोलता है। जब हर परिवार जागरूक होकर जिम्मेदारी निभाता है, तब ही सतत विकास के लक्ष्य जमीनी स्तर पर साकार होते हैं।

परामर्श सेवाओं और टोल फ्री नंबर से मिल रही सहायता
सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रशिक्षित कर्मियों द्वारा परामर्श सेवाएं दी जा रही हैं। साथ ही भारत सरकार के टोल फ्री नंबर 1800116555 के माध्यम से भी जानकारी व सलाह उपलब्ध कराई जा रही है।

परिवार नियोजन को बढ़ावा देना सिर्फ जनसंख्या नियंत्रण नहीं, बल्कि एक समृद्ध, स्वस्थ और समान समाज की नींव तैयार करना है। किशनगंज जिले में इस दिशा में बेहतर पहल हो रही है, लेकिन इसे और प्रभावी बनाने के लिए पुरुषों की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। जब पुरुष और महिलाएं समान रूप से परिवार नियोजन की जिम्मेदारी को साझा करेंगे, तभी ‘छोटा परिवार, सुखी परिवार’ के साथ-साथ सतत विकास का सपना भी साकार होगा।

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