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महिला संवाद में गूंजीं उम्मीदें: डेयरी, परिवहन और योजनाओं पर रखीं महिलाओं ने बेबाक राय।

राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।

किशनगंज जिले में आयोजित महिला संवाद कार्यक्रम में ग्रामीण महिलाओं ने खुलकर अपनी बात रखी। मंच पर उन्होंने न केवल अपनी आकांक्षाएं प्रकट कीं, बल्कि स्थानीय विकास, योजनाओं की जानकारी और आधारभूत सुविधाओं से जुड़ी समस्याओं पर ठोस सुझाव भी दिए।

डेयरी उद्योग बनेगा सशक्त आय का जरिया
टेढ़ागाछ प्रखंड की सुरमी देवी ने दुग्ध संग्रहण केंद्र की जरूरत को मजबूती से उठाया। उन्होंने कहा, “हमारे क्षेत्र की बड़ी आबादी कृषि और पशुपालन पर निर्भर है, लेकिन दूध की बिक्री और खपत में अनिश्चितता के कारण आमदनी प्रभावित होती है। यदि डेयरी उद्योग को संगठित रूप से बढ़ावा दिया जाए, तो यह पशुपालकों के लिए एक स्थायी आय का मजबूत स्रोत बन सकता है।”

योजनाओं का प्रचार-प्रसार और शिकायत निवारण पर ज़ोर
पोठिया प्रखंड की कश्मीरा बेगम ने सरकार की योजनाओं की जानकारी सभी तक पहुँचाने पर ज़ोर देते हुए कहा, “हमें योजनाओं की पूरी जानकारी मिले, इसके लिए नियमित प्रचार-प्रसार जरूरी है। महिला संवाद के जरिए हमें न सिर्फ योजनाओं के बारे में जानकारी मिली, बल्कि वीडियो फिल्म के माध्यम से उनकी उपयोगिता भी समझ आई। दूसरी महिलाओं का अनुभव सुनकर हमें भी लाभ उठाने की प्रेरणा मिली।”
उन्होंने यह भी कहा कि शिकायत और सुझावों को सुनना और उनका समाधान करना सरकार की जिम्मेदारी है, तभी यह प्रयास सफल होगा।

परिवहन सुविधा बढ़ाने की मांग
बगलबाड़ी पंचायत की नूरजमी बेगम ने कोचाधामन में एक बस स्टैंड की आवश्यकता पर ज़ोर दिया और कहा, “रेल मार्ग की कमी के कारण यहाँ की जनता बस और ऑटो जैसी सेवाओं पर निर्भर है। इसलिए सरकारी बस सेवा की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए, ताकि लोगों को बेहतर आवागमन सुविधा मिल सके।” उन्होंने यह भी कहा कि इस क्षेत्र में विकास की न केवल संभावना है बल्कि आवश्यकता भी बहुत है।

महिलाओं की बेबाक भागीदारी, नीति निर्माण की नींव
महिला संवाद कार्यक्रम में यह स्पष्ट हुआ कि महिलाएं अब अपने अधिकार, जरूरत और विकास की दिशा में सजग हैं और मुखर भी। यह मंच उन्हें अपनी स्थानीय समस्याओं और नीतिगत सुझावों को सामने रखने का अवसर देता है।
कार्यक्रम का उद्देश्य महिलाओं की आवाज़ को नीतिगत बदलावों तक पहुँचाना और उन्हें सरकार की विभिन्न योजनाओं से सीधे जोड़ना है। जब गाँव-गाँव की महिलाएँ अपनी बात कहेंगी, और उनके अनुसार नीति बनाई जाएगी — तभी वास्तविक और सकारात्मक बदलाव की राह खुलेगी।


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