मात्स्यिकी शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत और थाईलैंड के बीच सहयोग को प्रगाढ़ करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। शनिवार को थाईलैंड के विश्वविख्यात खाद्य प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन सीफूड साइंस एंड इनोवेशन, प्रिंस ऑफ सोंगक्ला विश्वविद्यालय, थाईलैंड के निदेशक प्रो. सुट्टावट बेंजाकुल बिहार के किशनगंज स्थित मत्स्यिकी महाविद्यालय पहुंचे। इस प्रतिष्ठित संस्थान का संचालन बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया जाता है।
प्रो. बेंजाकुल के आगमन पर महाविद्यालय में पारंपरिक और आत्मीय स्वागत किया गया। महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. वी. पी. सैनी ने उन्हें पुष्पगुच्छ, मिथिला शॉल, पाग और मधुबनी पेंटिंग भेंट कर भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप उनका अभिनंदन किया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह के मार्गदर्शन और अधिष्ठाता डॉ. सैनी के नेतृत्व में आयोजित किया गया।
अपने स्वागत भाषण में डॉ. वी. पी. सैनी ने प्रो. बेंजाकुल के शैक्षणिक योगदानों का उल्लेख करते हुए बताया कि उनके नाम 1000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हैं तथा 48,000 से अधिक उद्धरण दर्ज हैं। उन्होंने इस दौरे को भारत और थाईलैंड के बीच मत्स्यिकी शिक्षा, अनुसंधान और तकनीकी नवाचारों में दीर्घकालिक सहयोग की दिशा में मील का पत्थर बताया।
इस अवसर पर प्रो. बेंजाकुल ने अपने संबोधन में मत्स्य प्रसंस्करण उद्योग से उत्पन्न उप-उत्पादों के प्रभावी उपयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि इन उप-उत्पादों का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग किया जाए तो इससे मत्स्य उद्योग की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। साथ ही, उन्होंने जैव-सक्रिय न्यूट्रास्यूटिकल्स जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों के विकास की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला।
प्रो. बेंजाकुल ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, मूल्य वर्धन, खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर संयुक्त शोध की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत और थाईलैंड के बीच छात्र और शिक्षक विनिमय कार्यक्रम, संयुक्त शोध परियोजनाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की जानी चाहिए, जिससे दोनों देशों को लाभ मिलेगा।
उन्होंने महाविद्यालय की विभिन्न प्रयोगशालाओं का निरीक्षण किया और वहां चल रहे अनुसंधान कार्यों की सराहना की। छात्रों और शिक्षकों से संवाद करते हुए उन्होंने संतोष व्यक्त किया और आगे भी सहयोग जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. ममता ने कुशलतापूर्वक किया, जबकि आयोजन की सफलता में डॉ. अभिषेक ठाकुर ने विशेष भूमिका निभाई। समापन पर अधिष्ठाता डॉ. वी. पी. सैनी ने आशा व्यक्त की कि यह दौरा बिहार और भारत की ब्लू इकोनॉमी रणनीति को गति देगा और नवाचार आधारित मत्स्यिकी विकास की दिशा में प्रेरणा स्रोत बनेगा।
सारस न्यूज, किशनगंज।
मात्स्यिकी शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में भारत और थाईलैंड के बीच सहयोग को प्रगाढ़ करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम उठाया गया। शनिवार को थाईलैंड के विश्वविख्यात खाद्य प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ और इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन सीफूड साइंस एंड इनोवेशन, प्रिंस ऑफ सोंगक्ला विश्वविद्यालय, थाईलैंड के निदेशक प्रो. सुट्टावट बेंजाकुल बिहार के किशनगंज स्थित मत्स्यिकी महाविद्यालय पहुंचे। इस प्रतिष्ठित संस्थान का संचालन बिहार पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, पटना द्वारा किया जाता है।
प्रो. बेंजाकुल के आगमन पर महाविद्यालय में पारंपरिक और आत्मीय स्वागत किया गया। महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. वी. पी. सैनी ने उन्हें पुष्पगुच्छ, मिथिला शॉल, पाग और मधुबनी पेंटिंग भेंट कर भारतीय सांस्कृतिक परंपरा के अनुरूप उनका अभिनंदन किया। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. इंद्रजीत सिंह के मार्गदर्शन और अधिष्ठाता डॉ. सैनी के नेतृत्व में आयोजित किया गया।
अपने स्वागत भाषण में डॉ. वी. पी. सैनी ने प्रो. बेंजाकुल के शैक्षणिक योगदानों का उल्लेख करते हुए बताया कि उनके नाम 1000 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हैं तथा 48,000 से अधिक उद्धरण दर्ज हैं। उन्होंने इस दौरे को भारत और थाईलैंड के बीच मत्स्यिकी शिक्षा, अनुसंधान और तकनीकी नवाचारों में दीर्घकालिक सहयोग की दिशा में मील का पत्थर बताया।
इस अवसर पर प्रो. बेंजाकुल ने अपने संबोधन में मत्स्य प्रसंस्करण उद्योग से उत्पन्न उप-उत्पादों के प्रभावी उपयोग की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यदि इन उप-उत्पादों का वैज्ञानिक तरीके से उपयोग किया जाए तो इससे मत्स्य उद्योग की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। साथ ही, उन्होंने जैव-सक्रिय न्यूट्रास्यूटिकल्स जैसे उच्च मूल्य वाले उत्पादों के विकास की संभावनाओं पर भी प्रकाश डाला।
प्रो. बेंजाकुल ने जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, मूल्य वर्धन, खाद्य सुरक्षा और टिकाऊ विकास जैसे वैश्विक मुद्दों पर संयुक्त शोध की आवश्यकता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि भारत और थाईलैंड के बीच छात्र और शिक्षक विनिमय कार्यक्रम, संयुक्त शोध परियोजनाएं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों की शुरुआत की जानी चाहिए, जिससे दोनों देशों को लाभ मिलेगा।
उन्होंने महाविद्यालय की विभिन्न प्रयोगशालाओं का निरीक्षण किया और वहां चल रहे अनुसंधान कार्यों की सराहना की। छात्रों और शिक्षकों से संवाद करते हुए उन्होंने संतोष व्यक्त किया और आगे भी सहयोग जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. ममता ने कुशलतापूर्वक किया, जबकि आयोजन की सफलता में डॉ. अभिषेक ठाकुर ने विशेष भूमिका निभाई। समापन पर अधिष्ठाता डॉ. वी. पी. सैनी ने आशा व्यक्त की कि यह दौरा बिहार और भारत की ब्लू इकोनॉमी रणनीति को गति देगा और नवाचार आधारित मत्स्यिकी विकास की दिशा में प्रेरणा स्रोत बनेगा।
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