किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में स्थापित दर्जनों मंदिरों में देवी मां मनसा की पूजा धूमधाम से संपन्न हुई। इस पूजा में आसपास के इलाकों से सैकड़ों श्रद्धालु सम्मिलित हुए, और पूजा के बाद महाप्रसाद का वितरण किया गया। बंगाली समुदाय में इस पूजा का विशेष महत्व है। सुबह से ही महिलाएं उपवास रखकर व्रत करती हैं। ऐसी मान्यता है कि विषहरी पूजा से भक्तों को विभिन्न प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माना जाता है कि मां मनसा की पूजा करने वाले भक्तों को सर्पदोष से मुक्ति मिलती है। शिव शंकर, भोलेनाथ की मानस कन्या देवी विषहरी को मनसा देवी के नाम से भी जाना जाता है। सीमांचल और अंग क्षेत्र में सर्पों की देवी मां विषहरी की पूजा लंबे समय से चली आ रही है। इन क्षेत्रों में देवी विषहरी को कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है।
मनसा देवी की पूजा से भक्तों को विभिन्न प्रकार के तापों से मुक्ति और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। विषहरी पूजा करने वाले श्रद्धालु आम तौर पर सर्पदंश के शिकार नहीं होते। शनिवार के दिन पूजा स्थलों पर भक्तों द्वारा बांस की मंजूषा बनाकर, फल-फूल, चना, दूध, और लावा से मां विषहरी की विशेष पूजा की गई। पूजा के अंतिम क्षणों में दूध और लावा चढ़ाने के बाद कबूतरों की बलि देने का रिवाज भी जारी है। इस दौरान बिहुला और विषहरी के गीत भी गाए गए। पूजा अनुष्ठान के समापन के बाद मंजूषा सहित पूजन सामग्रियों के अवशेषों को नदी में विसर्जित कर दिए जाने की परंपरा आज भी कायम है। मोहल्ले के मानिक पाल, राम मिस्त्री, सौरव साहा, जयदेव साहा, निताई साहा, लखन गोस्वामी, गोपाल मजूमदार, राकेश धर, शंकर दास, विकास सूत्रधर, और ममता साहा सहित कई अन्य लोगों ने मंदिरों में मां मनसा की पूजा आयोजित की, जिसके बाद महाप्रसाद का वितरण किया गया।
राहुल कुमार, सारस न्यूज़, किशनगंज।
किशनगंज के नेपालगढ़ कॉलोनी में स्थापित दर्जनों मंदिरों में देवी मां मनसा की पूजा धूमधाम से संपन्न हुई। इस पूजा में आसपास के इलाकों से सैकड़ों श्रद्धालु सम्मिलित हुए, और पूजा के बाद महाप्रसाद का वितरण किया गया। बंगाली समुदाय में इस पूजा का विशेष महत्व है। सुबह से ही महिलाएं उपवास रखकर व्रत करती हैं। ऐसी मान्यता है कि विषहरी पूजा से भक्तों को विभिन्न प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिलती है और उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माना जाता है कि मां मनसा की पूजा करने वाले भक्तों को सर्पदोष से मुक्ति मिलती है। शिव शंकर, भोलेनाथ की मानस कन्या देवी विषहरी को मनसा देवी के नाम से भी जाना जाता है। सीमांचल और अंग क्षेत्र में सर्पों की देवी मां विषहरी की पूजा लंबे समय से चली आ रही है। इन क्षेत्रों में देवी विषहरी को कुलदेवी के रूप में भी पूजा जाता है।
मनसा देवी की पूजा से भक्तों को विभिन्न प्रकार के तापों से मुक्ति और मनवांछित फल की प्राप्ति होती है। विषहरी पूजा करने वाले श्रद्धालु आम तौर पर सर्पदंश के शिकार नहीं होते। शनिवार के दिन पूजा स्थलों पर भक्तों द्वारा बांस की मंजूषा बनाकर, फल-फूल, चना, दूध, और लावा से मां विषहरी की विशेष पूजा की गई। पूजा के अंतिम क्षणों में दूध और लावा चढ़ाने के बाद कबूतरों की बलि देने का रिवाज भी जारी है। इस दौरान बिहुला और विषहरी के गीत भी गाए गए। पूजा अनुष्ठान के समापन के बाद मंजूषा सहित पूजन सामग्रियों के अवशेषों को नदी में विसर्जित कर दिए जाने की परंपरा आज भी कायम है। मोहल्ले के मानिक पाल, राम मिस्त्री, सौरव साहा, जयदेव साहा, निताई साहा, लखन गोस्वामी, गोपाल मजूमदार, राकेश धर, शंकर दास, विकास सूत्रधर, और ममता साहा सहित कई अन्य लोगों ने मंदिरों में मां मनसा की पूजा आयोजित की, जिसके बाद महाप्रसाद का वितरण किया गया।
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