सारस न्यूज, वेब डेस्क।
द्वितीय विश्व युद्ध के अंतिम चरण में एक बड़ा और निर्णायक मोड़ उस समय आया, जब सोवियत संघ ने आज औपचारिक रूप से जापान के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। इस घटनाक्रम ने न केवल एशिया में चल रहे युद्ध को और भड़काया, बल्कि जापान को आत्मसमर्पण की ओर भी धकेल दिया।
सोवियत विदेश मंत्री वायचेस्लाव मोलोटोव ने आधिकारिक बयान जारी करते हुए कहा कि सोवियत संघ, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ याल्टा सम्मेलन में किए गए समझौते के तहत यह कदम उठा रहा है। मोलोटोव ने जापानी राजदूत को युद्ध की घोषणा की जानकारी देकर औपचारिक रूप से संबंध तोड़ दिए।
इस घोषणा के कुछ ही घंटे बाद, सोवियत सेना ने मंचूरिया (चीन के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र) में जापानी कब्जे वाले क्षेत्रों पर तेज़ हमले शुरू कर दिए। रेड आर्मी की इस सैन्य कार्रवाई को ‘मंचूरियन स्ट्रैटेजिक ऑफेंसिव ऑपरेशन’ का नाम दिया गया है।
विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका द्वारा 6 अगस्त को हिरोशिमा पर परमाणु बम गिराए जाने के बाद यह दूसरा बड़ा झटका था, जिसने जापान की सैन्य शक्ति को हिला कर रख दिया। अब सोवियत संघ की पूर्वी मोर्चे से युद्ध में एंट्री ने जापान के लिए दो मोर्चों पर लड़ना लगभग असंभव बना दिया है।
इतिहासकारों के अनुसार, सोवियत संघ का यह निर्णय ना केवल सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इससे युद्ध के बाद के वैश्विक शक्ति संतुलन पर भी गहरा असर पड़ा।
जापान की प्रतिक्रिया का अभी इंतज़ार किया जा रहा है, लेकिन जानकारों का मानना है कि इस दबाव के चलते जापान शीघ्र ही आत्मसमर्पण कर सकता है।