सारस न्यूज, वेब डेस्क।
आज ही के दिन भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति के गौरव रवींद्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने इस नश्वर संसार को अलविदा कहा। 80 वर्ष की आयु में कोलकाता स्थित उनके निवास शांतिनिकेतन में उनका निधन हो गया। उनकी मृत्यु से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया ने एक अद्वितीय साहित्यिक और दार्शनिक व्यक्तित्व को खो दिया।
रवींद्रनाथ ठाकुर वह नाम है, जिसने भारत को पहला नोबेल पुरस्कार दिलाया। उन्हें 1913 में उनकी प्रसिद्ध काव्य रचना “गीतांजलि” के लिए साहित्य का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया था। वे एशिया के पहले व्यक्ति थे जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ।
ठाकुर केवल एक कवि ही नहीं, बल्कि संगीतकार, चित्रकार, नाटककार, दार्शनिक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान – “जन गण मन” और “आमार सोनार बांग्ला” – की भी रचना की।
उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति की गहराई, मानवता की पुकार और प्रकृति के सौंदर्य की झलक मिलती है। उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में भी क्रांतिकारी कार्य किए, और शांतिनिकेतन में “विश्व भारती विश्वविद्यालय” की स्थापना की, जो आज भी उनके विचारों की जीवंत धरोहर है।
आज उनके निधन की वर्षगांठ पर देशभर में साहित्यिक और सांस्कृतिक आयोजन किए जा रहे हैं। उनके विचार और काव्य आज भी पीढ़ियों को प्रेरणा देते हैं और भारत की आत्मा को स्वर देते हैं।
“मृत्यु के बाद भी जो जीवित रहता है, वही सच्चा कलाकार होता है” — यह कथन जैसे स्वयं गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर पर सटीक बैठता है।