भारत आस्थाओं का देश रहा है। जितनी भी पौराणिक कथाएं हैं, सभी की शुरुआत हमारी पावन धरती से ही हुई हैं। इनमें से एक है शारदीय नवरात्र। नवरात्र का पर्वvमां दुर्गा की अवधारणा, भक्ति और उपासना का पर्व है।मान्यता के अनुसार यह पर्व हमारे देश में वैदिक युग से मनाया जा रहा है। नवरात्र का पर्व मनाए जाने के पीछे कई कारण या मान्यताएं हैं। कहा जाता है, पौराणिक मान्यता के अनुसार महिषासुर नामक दैत्य, ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त कर अहंकारी और अत्याचारी हो गया था। तब मां आदि शक्ति ने देवी दुर्गा का रूप धर कर उसका विनाश किया था और उसके अत्याचारों से देवताओं को मुक्त किया था।
अब आइए बात करते हैं नवरात्र मनाने के दूसरे और अहम बिंदु पर जब राम ने नौ दिनों तक की थी माता शक्ति की पूजा। जब सीता हरण के बाद राम और रावण में युद्ध प्रारंभ हुआ था तब युद्ध में एक दिन ऐसा भी आया था जब रावण की सेना ने भारी तबाही मचाई थी। जब राम की सेना पराजित हो गई थी। लक्ष्मण सहित सुग्रीव भी बेहोश हो गए थे। इच्छवाकू वंश के पुत्र, रघुकुल गौरव, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, रावण को परास्त नही कर पाए। उनका पूरा दल कष्ट और शोक के अंधकार में डूबा था। तब राम के सेनापति जामबंत ने समझाया की आप परेशान न हो, आज हार गए तो क्या हुआ कल जीत निश्चित है। तब राम ने कहा नही “मैने देखा है शक्ति को उनके साथ लड़ते हुए। मैं धर्म के पक्ष में हूं फिर भी मेरा साथ ना देकर मां दुर्गा रावण का साथ दे रही है और जब तक मां आदि शक्ति उसके साथ है तब तक हमारी विजय असंभव है “श्री राम की बात सुनकर जामबंत ने कहा अगर ऐसा है तो आप माता की उपासना कीजिए युद्ध हम देख लेंगे। नौ दिनों तक राम जी ने माता को प्रसन्न करने के लिए ध्यान धारण किया। 108 कमल वे रोज माता को अर्पण करते थे। पूजा के अंतिम दिन जब राम को वरदान मिलना था। माता शक्ति ने राम की भक्ति की परीक्षा लेने की सोची। जब राम 107 पुष्प अर्पित कर चुके तो मां एक पुष्प उठा ले गई। राम ने अंतिम पुष्प के लिए थाल में हाथ बढ़ाया। पर उन्हें फूल नही मिला। वे ध्यान से नीचे उतरे और पात्र में पुष्प न पाकर थोड़ा दुखी हुए। पर अगले ही क्षण उन्हें अपनी माता की बात याद आई कि उनकी मां उन्हें राजीव नयन यानी कमल के समान आंख वाला है मेरा बेटा कहा करती थी। राम ने पुष्प की जगह अपनी एक आंख निकाल कर चढ़ाने का निश्चय किया। जैसे ही उन्होंने अपनी आंख निकालने के लिए तीर उठाया, माता आदि शक्ति प्रकट हुई और उन्हें विजय का वरदान दिया और दसवें दिन राम ने रावण को मार कर सत्य की विजय का उदघोष किया। तभी से हम अधर्म पे धर्म की विजय का प्रतीक नवरात्र दशहरा के रूप में मनाते हैं।
यह सिर्फ एक त्योहार नही है। यह हमे सिखाता है अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो उसका अंत निश्चित है, तभी तो राम की वानर सेना के सामने जो धर्म और सत्य के साथ थी, रावण की चतुरंगी सेना नही टिक पाई। आइए इस दशहरा अपने जीवन में राम के आदर्शो को समाहित कर अपने जीवन को सफल और उज्ज्वल बनाएं।
बिंदु अग्रवाल
सारस न्यूज, गलगलिया।
भारत आस्थाओं का देश रहा है। जितनी भी पौराणिक कथाएं हैं, सभी की शुरुआत हमारी पावन धरती से ही हुई हैं। इनमें से एक है शारदीय नवरात्र। नवरात्र का पर्वvमां दुर्गा की अवधारणा, भक्ति और उपासना का पर्व है।मान्यता के अनुसार यह पर्व हमारे देश में वैदिक युग से मनाया जा रहा है। नवरात्र का पर्व मनाए जाने के पीछे कई कारण या मान्यताएं हैं। कहा जाता है, पौराणिक मान्यता के अनुसार महिषासुर नामक दैत्य, ब्रह्मा जी से अमरता का वरदान प्राप्त कर अहंकारी और अत्याचारी हो गया था। तब मां आदि शक्ति ने देवी दुर्गा का रूप धर कर उसका विनाश किया था और उसके अत्याचारों से देवताओं को मुक्त किया था।
अब आइए बात करते हैं नवरात्र मनाने के दूसरे और अहम बिंदु पर जब राम ने नौ दिनों तक की थी माता शक्ति की पूजा। जब सीता हरण के बाद राम और रावण में युद्ध प्रारंभ हुआ था तब युद्ध में एक दिन ऐसा भी आया था जब रावण की सेना ने भारी तबाही मचाई थी। जब राम की सेना पराजित हो गई थी। लक्ष्मण सहित सुग्रीव भी बेहोश हो गए थे। इच्छवाकू वंश के पुत्र, रघुकुल गौरव, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम, रावण को परास्त नही कर पाए। उनका पूरा दल कष्ट और शोक के अंधकार में डूबा था। तब राम के सेनापति जामबंत ने समझाया की आप परेशान न हो, आज हार गए तो क्या हुआ कल जीत निश्चित है। तब राम ने कहा नही “मैने देखा है शक्ति को उनके साथ लड़ते हुए। मैं धर्म के पक्ष में हूं फिर भी मेरा साथ ना देकर मां दुर्गा रावण का साथ दे रही है और जब तक मां आदि शक्ति उसके साथ है तब तक हमारी विजय असंभव है “श्री राम की बात सुनकर जामबंत ने कहा अगर ऐसा है तो आप माता की उपासना कीजिए युद्ध हम देख लेंगे। नौ दिनों तक राम जी ने माता को प्रसन्न करने के लिए ध्यान धारण किया। 108 कमल वे रोज माता को अर्पण करते थे। पूजा के अंतिम दिन जब राम को वरदान मिलना था। माता शक्ति ने राम की भक्ति की परीक्षा लेने की सोची। जब राम 107 पुष्प अर्पित कर चुके तो मां एक पुष्प उठा ले गई। राम ने अंतिम पुष्प के लिए थाल में हाथ बढ़ाया। पर उन्हें फूल नही मिला। वे ध्यान से नीचे उतरे और पात्र में पुष्प न पाकर थोड़ा दुखी हुए। पर अगले ही क्षण उन्हें अपनी माता की बात याद आई कि उनकी मां उन्हें राजीव नयन यानी कमल के समान आंख वाला है मेरा बेटा कहा करती थी। राम ने पुष्प की जगह अपनी एक आंख निकाल कर चढ़ाने का निश्चय किया। जैसे ही उन्होंने अपनी आंख निकालने के लिए तीर उठाया, माता आदि शक्ति प्रकट हुई और उन्हें विजय का वरदान दिया और दसवें दिन राम ने रावण को मार कर सत्य की विजय का उदघोष किया। तभी से हम अधर्म पे धर्म की विजय का प्रतीक नवरात्र दशहरा के रूप में मनाते हैं।
यह सिर्फ एक त्योहार नही है। यह हमे सिखाता है अधर्म कितना भी शक्तिशाली क्यों ना हो उसका अंत निश्चित है, तभी तो राम की वानर सेना के सामने जो धर्म और सत्य के साथ थी, रावण की चतुरंगी सेना नही टिक पाई। आइए इस दशहरा अपने जीवन में राम के आदर्शो को समाहित कर अपने जीवन को सफल और उज्ज्वल बनाएं।
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