रूठी क्यों दुखहरणी माता कैसे मैं तुझे मनाऊं? कैसी विकट प्रतीक्षा की है कैसे मैं तुझे बताऊं?
ना जानूं मैं जप तप ध्याना कैसे तुझे रिझाऊं? मुझमें नही है धैर्य राम सा राजीव नयन चढ़ाऊं।
कष्ट भरा है मेरा जीवन तुझसे अरदास लगाऊं। मै शबरी सी भक्त नही हूं चख- चख बैर खिलाऊं।
ना जानूं मैं दिया बाती कैसे दीप जलाऊं? नैनन की दो बाती मैया निश दिन जोत जलाऊं। मै पाहन अहिल्या माता चरणों में बिछ जाऊं। हो तेरी कृपा दृष्टि तो भाव सागर तर जाऊं।
बिंदु अग्रवाल , शिक्षिका सह कवयित्री लेखिका किशनगंज बिहार
विजय गुप्ता, सारस न्यूज, गलगलिया।
रूठी क्यों दुखहरणी माता कैसे मैं तुझे मनाऊं? कैसी विकट प्रतीक्षा की है कैसे मैं तुझे बताऊं?
ना जानूं मैं जप तप ध्याना कैसे तुझे रिझाऊं? मुझमें नही है धैर्य राम सा राजीव नयन चढ़ाऊं।
कष्ट भरा है मेरा जीवन तुझसे अरदास लगाऊं। मै शबरी सी भक्त नही हूं चख- चख बैर खिलाऊं।
ना जानूं मैं दिया बाती कैसे दीप जलाऊं? नैनन की दो बाती मैया निश दिन जोत जलाऊं। मै पाहन अहिल्या माता चरणों में बिछ जाऊं। हो तेरी कृपा दृष्टि तो भाव सागर तर जाऊं।
बिंदु अग्रवाल , शिक्षिका सह कवयित्री लेखिका किशनगंज बिहार
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