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दिव्यांगों के लिए अनेक योजनाएं सिर्फ सरकारी दस्तावेजों में ही कैद।

चंदन मंडल, सारस न्यूज़, खोरीबाड़ी।

खोरीबाड़ी: वैसे तो सरकार द्वारा लोगों के विकास के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही हैं, लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो इन सुविधाओं से वंचित हैं। कुछ ऐसा ही हाल है दार्जिलिंग जिले के अंतिम छोड़ व भारत-नेपाल सीमांत पर बसा हुआ डांगुजोत इलाके में है। यहां डांगुजोत इलाके के निवासी रहमती खातून हर सरकारी योजनाओं से वंचित हैं। साथ ही रहमती खातून का एक पुत्र भी है। जो बचपन से दिव्यांग होने के साथ ही गूंगा भी है। इसके पिता मोहम्मद रफीक अंसारी रिक्शा चलाकर अपना और अपने परिवार का भरण पोषण करते है। इनके जमीन के मामले में घर छोड़कर और कुछ नहीं है। इनको न तो आवास और न ही कुछ सरकारी मदद व लाभ मिला है। साथ ही इसका पुत्र मोहम्मद राज अंसारी (11 वर्ष) है। जोकि दिव्यांग (विकलांग) है। इसे भी कोई सरकारी लाभ नही मिलती है। विकलांगता अभिशाप बनकर रह गया है। सरकार द्वारा जरूरतमंदों तक सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने के निर्देश के बावजूद पात्र दरबदर ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो रहे हैं।

इस संबंध में रहमती खातून ने बताया कि मेरा एक ही बेटा है और वो भी दिव्यांग है। उन्होंने कहा उसके पति रिक्शा (भेन) चलाते हैं। जिससे वह दिन भर में 100-150 रुपये ही कमा पाते हैं। इस पैसे से उनका घर चलना मुश्किल हो जाता है। बावजूद किसी भी तरह जीवन-यापन कर रहे हैं। उन्होंने कहा उसने अपने बेटे का दिव्यांग सर्टिफिकेट भी बनाया है। लेकिन किसी महीने दिव्यांग का एक हजार रुपये करके मिलता है और किसी महीने नहीं मिलता है। मैं खुदा से दुआ करती हूं कि दिव्यांग बेटे भगवान किसी ओर महिला को नहीं दे क्योंकि सरकार द्वारा दिव्यांगों के लिए अनेक योजनाएं चलाई गयी है। लेकिन सिर्फ सरकारी दस्तावेजों में ही कैद है। बताते चलें कि दिव्यांग का तो दुनिया भर में कोई इलाज तो नहीं है। लेकिन दिव्यांग समाज के अभिन्न अंग हैं। केंद्र सरकार द्वारा 8 दिसबंर 1992 को संयुक्त राष्ट्र के प्रावधान लागू हुआ। समाज में उनके आत्म सम्मान, सेहत और अधिकार को सुधारने के लिए सरकार द्वारा उनके वास्तविक जीवन में काफी सहायता को लागू किया है। उनको बढ़ावा देने के लिए नौकरी में आरक्षण, कौशल विकास आदि योजनाओं द्वारा उन्हें बढ़ावा दिया जा रहा है। शिक्षा के क्षेत्र में भी विकलांगों को जागरूक कर आगे बढ़ाने का प्रावधान है। जिससे वे सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक क्षेत्रों में बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी निभा सके। लेकिन इसके बावजूद भी रहमती खातुन के दिव्यांग पुत्र मोहम्मद राज को एक भी योजनाओं को लाभ न मिलना सरकार के ऊपर सवाल खड़ा करती है।


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