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170 वर्षों से हो रही बदराजोत के मां दुर्गा मंदिर में पूजा।

चंदन मंडल, सारस न्यूज़, खोरीबाड़ी।

दुर्गा पूजा के दौरान हर कोई जात-पात भूलकर, उम्र की सीमा को पार कर बस पंडालों में पूजा का लुत्फ उठाते नजर आते हैं। इन दिनों बड़े, बुढ़े, युवा और महिलाएं हर कोई पंडालों की सैर करते नजर आते हैं, सारे काम-काज भूल कर वे बस मां की आराधना में जुट जाते हैं। हो भी क्यों नहीं राज्य में दुर्गा पूजा को लेकर पूजा पंडाल विशाल बनाए जाते हैं, पंडालों को अधिक से अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्हें देश दुनिया के चर्चित मंदिरों व ऐतिहासिक स्मारकों की तरह भव्य बनाया जाता है। साथ ही हर वर्ष गांव से लेकर शहर तक धूमधाम से दुर्गा पूजा का आयोजन किया जाता है। दरअसल, राज्य में पूजा का मतलब केवल पूजा, आराधना या मां को याद करना ही नहीं है, बल्कि पूरे साल के सारे दुख-दर्द और गम भूलाकर मस्ती करने का वक्त है और इलाके के भव्य पंडाल लोगों को मस्ती के लिए स्वत: आमंत्रित करती हैं।

श्यामलाल दुर्गा पूजा का है अहम् स्थान :

खोरीबाड़ी प्रखंड क्षेत्र के बतासी (बदराजोत) में स्थित मां दुर्गा की मंदिर में सौ साल से भी अधिक समय से हो रही पूजा श्यामलाल दुर्गापूजन में अपना अहम् स्थान रखता है। काफी संख्या में भक्त यहां मां के दरबार में हाजिरी लगाते हैं। श्यामलाल दुर्गा पूजा कमेटी का हमेशा एक सामाजिक संदेश के साथ, जागरूकता फैलाने के मकसद से बनाये जाते हैं। इस मंदिर में पूजा देखने लायक होती है।

रोचक है पूजा का इतिहास :

170 वर्षो से बदराजोत में बनाई जाने वाली इस पूजा के प्रारंभ होने का इतिहास काफी रोमांचक है। इस बाबत कमेटी के सचिव होरलाल सिंह बताते हैं कि 1852 में बदराजोत में शुरू हुई दुर्गा पूजा छः दशक तक स्वर्गीय श्यामलाल नामक व्यक्ति ने की। इस दौरान बंगाली और राजवंशी समुदाय की भागीदारी इस पूजा में हुई। श्यामलाल का देहांत होने के बाद 1912 में उनके पुत्र स्वर्गीय अगेन सिंह ने आगे की पूजा जारी रखा और उसने पांच दशक तक इस दुर्गा मंदिर में पूजा अर्चना की और इसके बाद उनके पुत्र अगेन सिंह का भी देहांत हो गया। इसके बाद फिर 1962 में उनके थर्ड जेनरेशन फूलचंद सिंह ने आगे की पूजा जारी रखी और उन्होंने 1995 तक पूजा-अर्चना की।

अब पूजा शरू करने की थी बड़ी समस्या :

1996 में अब इस मंदिर में पूजा आयोजन कैसे हो ,इसको लेकर इलाके के लोग असमंजस की स्थिति में थे। इसके बाद इलाके के कुछ लोग पूजा शुरू केसे हो इसके लिए उस वक्त उसी इलाके के सुबह सिंह नामक व्यक्ति से मिले और पूजा को लेकर विचार विमर्श किया गया। इसके बाद उन्होंने न केवल पूर्ण सहयोग का वायदा किया। बल्कि बदराजोत इलाके में पूजा शुरू होने के दौरान सबसे पहला आर्थिक सहयोग भी दिया। 1996 में बदराजोत के नए सदस्यों ने इस स्थल पर पूजा का निर्णय लेते हुए स्वर्गीय श्री श्यामलाल के नाम से श्यामलाल दुर्गा पूजा की नई कमिटी बनाई। इस दौरान कमिटी के अध्यक्ष सुबह सिंह ,सचिव होरलाल सिंह व कोषाध्यक्ष परेश सिंह के अलावा सैकड़ों लोगों का सक्रिय सहयोग था। आज स्वर्गीय श्यामलाल के प्रयास से 1852 में शुरू हुई बदराजोत में स्थित दुर्गा मंदिर में पूजा खोरीबाड़ी के बेहतरीन पूजा पंडालो में शुमार भी हो चुका है।

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