ईद-उल-अज़हा हज़रत इब्राहीम की कुर्बानी की याद के तौर पर शनिवार को खोरीबाड़ी और नक्सलबाड़ी में बकरीद पर्व मनाया गया। इस अवसर पर दोनों प्रखंड के ईदगाहों व मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की नमाज़ पढ़ी गई। नमाज़ अदा करने के बाद सभी ने एक-दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद दी।
बकरीद पर सुरक्षा के मद्देनज़र खोरीबाड़ी व नक्सलबाड़ी थाना क्षेत्र के चौक-चौराहों पर पुलिस की गश्त तेज़ थी। बताया जाता है कि इस दिन हज़रत इब्राहीम अल्लाह के हुक्म पर, अल्लाह के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखाने के लिए, अपने बेटे हज़रत इस्माईल को क़ुर्बान करने पर राज़ी हो गए थे। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह की सेवा के भाव को जगाना है। अल्लाह के पास केवल इंसान के दिल की कैफ़ियत पहुँचती है। यानी जब इंसान का हृदय पवित्र हो जाएगा और अल्लाह के लिए उसका पूर्ण समर्पण होगा, तो इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन और समाज पर भी पड़ेगा। वह हर बुरे काम से बचेगा और मानवता के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करेगा। अल्लाह को खुश रखने के लिए लोगों के साथ भलाई करेगा, दयालु बनेगा और इस तरह एक सभ्य और आध्यात्मिकता से पूर्ण समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा।
इस संबंध में जानकारी देते हुए नक्सलबाड़ी बाज़ार मस्जिद के मोहम्मद दराजुद्दीन ने कहा कि ईद-उल-अजहा का यह पर्व इस्लाम के पाँचवें सिद्धांत हज की भी पूर्ति करता है। आदिकाल से ही, जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की, तो इंसान को सही जीवन जीने के लिए अपने पसंदीदा बंदों या नबियों के द्वारा ऐसा संविधान और जीवन-दर्शन भेजा, जो मानव समाज को क़ुर्बानी अर्थात बलिदान का महत्व समझा सके और उसमें यह भावना भी पैदा कर सके।
इस संविधान को आदम से लेकर तमाम नबी अपने साथ लाए। इस संविधान या जीवन-दर्शन में अन्य बातों के अलावा, इंसान को अपने अहंकार व अपनी प्रिय वस्तुओं को अल्लाह की राह में और उसकी इच्छा के लिए क़ुर्बान करने की भी शिक्षा दी गई।
क़ुरान में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज़ की कुर्बानी मांगी। हज़रत इब्राहीम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया। लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे की बलि देने के लिए उसकी गर्दन पर चाकू रखा, अल्लाह ने चाकू की धार से हज़रत इब्राहीम के पुत्र को बचाकर जन्नत से एक दुम्बा (भेड़) भेजा और उसी की कुर्बानी दिलवाई। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
सारस न्यूज, सिलीगुड़ी।
ईद-उल-अज़हा हज़रत इब्राहीम की कुर्बानी की याद के तौर पर शनिवार को खोरीबाड़ी और नक्सलबाड़ी में बकरीद पर्व मनाया गया। इस अवसर पर दोनों प्रखंड के ईदगाहों व मस्जिदों में ईद-उल-अजहा की नमाज़ पढ़ी गई। नमाज़ अदा करने के बाद सभी ने एक-दूसरे को बकरीद की मुबारकबाद दी।
बकरीद पर सुरक्षा के मद्देनज़र खोरीबाड़ी व नक्सलबाड़ी थाना क्षेत्र के चौक-चौराहों पर पुलिस की गश्त तेज़ थी। बताया जाता है कि इस दिन हज़रत इब्राहीम अल्लाह के हुक्म पर, अल्लाह के प्रति अपनी वफ़ादारी दिखाने के लिए, अपने बेटे हज़रत इस्माईल को क़ुर्बान करने पर राज़ी हो गए थे। इस पर्व का मुख्य उद्देश्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह की सेवा के भाव को जगाना है। अल्लाह के पास केवल इंसान के दिल की कैफ़ियत पहुँचती है। यानी जब इंसान का हृदय पवित्र हो जाएगा और अल्लाह के लिए उसका पूर्ण समर्पण होगा, तो इसका प्रभाव उसके पूरे जीवन और समाज पर भी पड़ेगा। वह हर बुरे काम से बचेगा और मानवता के विरुद्ध कोई भी कार्य नहीं करेगा। अल्लाह को खुश रखने के लिए लोगों के साथ भलाई करेगा, दयालु बनेगा और इस तरह एक सभ्य और आध्यात्मिकता से पूर्ण समाज के निर्माण में सहायक सिद्ध होगा।
इस संबंध में जानकारी देते हुए नक्सलबाड़ी बाज़ार मस्जिद के मोहम्मद दराजुद्दीन ने कहा कि ईद-उल-अजहा का यह पर्व इस्लाम के पाँचवें सिद्धांत हज की भी पूर्ति करता है। आदिकाल से ही, जब ईश्वर ने इस सृष्टि की रचना की, तो इंसान को सही जीवन जीने के लिए अपने पसंदीदा बंदों या नबियों के द्वारा ऐसा संविधान और जीवन-दर्शन भेजा, जो मानव समाज को क़ुर्बानी अर्थात बलिदान का महत्व समझा सके और उसमें यह भावना भी पैदा कर सके।
इस संविधान को आदम से लेकर तमाम नबी अपने साथ लाए। इस संविधान या जीवन-दर्शन में अन्य बातों के अलावा, इंसान को अपने अहंकार व अपनी प्रिय वस्तुओं को अल्लाह की राह में और उसकी इच्छा के लिए क़ुर्बान करने की भी शिक्षा दी गई।
क़ुरान में बताया गया है कि एक दिन अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम से सपने में उनकी सबसे प्रिय चीज़ की कुर्बानी मांगी। हज़रत इब्राहीम को सबसे प्रिय अपना बेटा लगता था। उन्होंने अपने बेटे की कुर्बानी देने का निर्णय लिया। लेकिन जैसे ही हज़रत इब्राहीम ने अपने बेटे की बलि देने के लिए उसकी गर्दन पर चाकू रखा, अल्लाह ने चाकू की धार से हज़रत इब्राहीम के पुत्र को बचाकर जन्नत से एक दुम्बा (भेड़) भेजा और उसी की कुर्बानी दिलवाई। इसी कारण इस पर्व को बकरीद के नाम से भी जाना जाता है।
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