चंदन मंडल सारस न्यूज़, सिलीगुड़ी।
सभी नेताओं के लिए सोशल मीडिया हो रही वरदान साबित।
लोकत्रंत का महापर्व लोकसभा चुनाव आगामी 26 अप्रैल को दार्जिलिंग जिला में होना है। मद्देनजर सिलीगुड़ी समेत खोरीबाड़ी व नक्सलबाड़ी में चुनाव का माहौल पूरा दिख रहा है,जिसमें ज्यादातर चाय पान की दुकानों पर चुनावी चर्चा जोर -शोर से हो रही है। राजनीतिक दलों के नेता व कार्यकर्ता चुनाव के मद्देनजर जोर-शोर से चुनाव प्रचार कर रहे हैं। सभी कार्यकर्ता अपने -अपने प्रत्याशी की जीत का दावा कर रहे हैं । वहीं दूसरी ओर राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे पर निशाना साधना भी शुरू कर दिया है।जबकि चुनाव आयोग के निर्देश अनुसार अभी भी कई तरह की गतिविधियों पर रोक है। इसके बावजूद राजनीतिक दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला तेज है। इन दलों के नेता भले ही चुनाव आयोग के निर्देश अनुसार अपने आपको शांत करके हैं , लेकिन इन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से एक-दूसरे पर निशाना साधना जारी कर दिया है। अभी सोशल मीडिया सभी नेताओं के लिए एक वरदान साबित हो रही है। सोशल मीडिया पर सक्रिय बाहर में काम करने वाले लोग भी अपनी पसंद के प्रत्याशी के पक्ष में जमकर प्रचार कर रहे हैं। साथ ही विरोधी पर हमला भी फेसबुक के माध्यम से ही कर रहे हैं और अपना एक दूसरे के उपर मन की भड़ास निकाल लेते हैं। अगर हमलोग करीब दो दशक पीछे जाकर देखें तो चुनावी सीजन में आंखों के सामने कार, बस या ऑटो में लगे झंडे, लाउडस्पीकर से प्रत्याशी को जिताने की अपील के साथ धुआंधार नारेबाजी और छोटे-छोटे प्लास्टिक या कागज के बिल्लों के लिए लपकते बच्चों वाली चुनाव प्रचार की तस्वीर जीवंत हो उठती है,
लेकिन अब यह सीन पूरी तरह बदल चुका है और इसका स्थान छह इंच के मोबाइल फोन के स्क्रीन ने ले लिया है । पिछले एक दशक में तो सोशल मीडिया चुनाव प्रचार अभियान का सशक्त माध्यम बनकर उभरा है। भारत में राजनीतिक दल सोशल मीडिया को प्रचार के प्रमुख साधन के रूप में अपना रहे हैं। शायद ही कोई राजनीतिक दल ऐसा होगा, जो इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल अपनी बात रखने और प्रतिद्वंद्वियों के आरोपों का जवाब देने के लिए न कर रहा हो। आज अधिकांश नेता और उनके समर्थक फेसबुक, वाट्सएप, ट्विटर जैसे माध्यमों से राजनीतिक दलों का अधिकाधिक प्रचार कर रहे है। इसके कई कारण हैं। सबसे पहले तो यह कि आज कोई ऐसा घर नहीं है जहां मोबाइल नहीं है, और शायद ही कोई ऐसा स्मार्टफोन हो जिसमें वाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम और यूट्यूब नहीं हो। सोशल मीडिया की पहुंच पर तो किसी को संदेह ही नहीं।इससे सटीक प्रचार माध्यम फिलहाल कुछ नहीं है। दूसरा इस प्रचार तंत्र में सूचनाओं का फ्लो काफी तेजी से होता है। पहल झपकते ही आप लाखों के बीच अपनी बात पहुंचा सकते हैं। तीसरा इस माध्यम से प्रचार करना अपेक्षाकृत सस्ता भी होता है। बस मोबाइल में इंटरनेट होना चाहिए। पोस्ट लिखा, हैशटैग किया और पहुंच गए टारगेट ऑडिएंस के पास।
प्रचार के पीछे जनसंचार का एक सिद्धांत (टू ल्स्टेप थ्योरी) काम कर रहा है। इसके मुताबिक, लोग जानकारी के लिए या विचारों के लिए सीधे जनसंचार के किसी श्रोत पर कम ही निर्भर रहते हैं और अपनी जानकारी समाज के ही किसी और व्यक्ति से लेते हैं।