दिवाली पर घर को जगमगाने के लिये बिहार-नेपाल जा रहे खोरीबाड़ी के उत्पाद
चाइनीज दीयों को मात देने में पीछे नहीं है मिट्टी के दीपक
चंदन मंडल, सारस न्यूज़, सिलीगुड़ी: दीपावली में करीब छः दिन दिनों का ही समय शेष रह गए हैं। घरों को जगमगाने के लिए आज भी लोग मिट्टी के दीये को प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि बदलते समय में एलईडी लाइटों की चकाचौंध में भी लोग दिवाली पर वर्षों से चली आ रही मिट्टी के दीये की परम्परा को कायम रखे हैं। दीपावली के आते ही इलाके में कुम्हारों के चाक तेजी से घूमने लगे हैं। फलस्वरूप बड़ी संख्या में मिट्टी के दीये तैयार हो रहे हैं। स्थानीय कुम्हारों के अनुसार, खोरीबाड़ी और आसपास के इलाके में तैयार हो रहे मिट्टी के दीये ना केवल पड़ोसी राष्ट्र नेपाल बल्कि पड़ोसी राज्य बिहार के विभिन्न हिस्सों में लोगों तक पहुंच रहे हैं। मिट्टी के दीये को लेकर इस बार कुम्हारों में अच्छी कमाई होने की उम्मीद जगी है। दीपावली आगामी 31 अक्टूबर गुरुवार को मनाई जाएगी। इस अवसर पर दीपों से अपने घर-आंगन को सजाने की तैयारी लोगों ने शुरू कर दी है। बदलते ट्रेंड के साथ बाजार में तरह-तरह के दीये आ चुके हैं। जिसे लोग खूब पसंद कर कर रहे हैं। वहीं चाइनीज दीयों के मुकाबले मिट्टी के दीये की मांग काफी है। दीपावली पर अच्छी कमाई होने की उम्मीद थामे कुम्हारों के चेहरे खिले हुए हैं। दीपावली और कालीपूजा के मद्देनजर मिट्टी के दीये, कुल्लड़ और मिट्टी की घरिया के अलावा मिट्टी के खिलौने बनाने का काम सितम्बर महीने से शुरू हो जाता है। दीवाली कुम्हारों के लिए इसलिए खास रही है। प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसलिए दिवाली में मिट्टी के दीये व खेल-खिलौनों की डिमांड बढ़ जाती है। इस संबंध में बतासी के कुम्हार रवींद्र पाल चौधरी ने बताया कि उन्हें इस बार अच्छी विक्री की उम्मीद है। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए उनकी मां और पत्नी के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार देने में व्यस्त है।
बिक्री अधिक होने की उम्मीद
बतासी के शुकारुजोत स्थित पालपाड़ा निवासी कुम्हार आशु पाल व सूचित पाल चौधरी बताते हैं कि लोग चीन के बने रंग-बिरंगे लाइटें खरीद रहे हैं फिर भी उम्मीद है कि मिट्टी के दीपक की ज्यादा बिक्री होगी। पिछले साल करीब 45 हजार दीपक व मिट्टी के अन्य खिलौने बेची थी। इस बार उम्मीद है कि 60 से 70हजार तक दीपक बेचे जा सकते हैं।
कुम्हारों को ईधन पड़ता है महंगा
कुम्हार बताते हैं कि मिट्टी के दीये, बर्तन तथा खिलौनों को पकाया जाना काफी भारी पड़ रहा है। पहले ईंधन इतना महंगा नहीं था पर अब ईंधन ने कुम्हारों का पसीना छुड़ा दे रहा है। कुम्हारों ने बताया कि उनके उत्पादों पर लागत अधिक आ रही है। मेहनत और अन्य खर्च के मुकाबले उतनी कमाई नहीं हो पाती है। मौसम अनुकूल है, इसलिए मिट्टी के सारे उत्पादों को धूप में सुखाना संभव हो रहा है।
बोले युवा मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे
प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। यही वजह है कि अब चाइना के उत्पादों को छोड़कर देशी दीपकों की मांग बढ़ रही है। युवा पप्पू कुमार , आकाश कुमार , उत्तम सिंह आदि कहते हैं कि वे कुम्हारों से बने मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे। साथ ही अन्य लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं।
दिवाली पर घर को जगमगाने के लिये बिहार-नेपाल जा रहे खोरीबाड़ी के उत्पाद
चाइनीज दीयों को मात देने में पीछे नहीं है मिट्टी के दीपक
चंदन मंडल, सारस न्यूज़, सिलीगुड़ी: दीपावली में करीब छः दिन दिनों का ही समय शेष रह गए हैं। घरों को जगमगाने के लिए आज भी लोग मिट्टी के दीये को प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि बदलते समय में एलईडी लाइटों की चकाचौंध में भी लोग दिवाली पर वर्षों से चली आ रही मिट्टी के दीये की परम्परा को कायम रखे हैं। दीपावली के आते ही इलाके में कुम्हारों के चाक तेजी से घूमने लगे हैं। फलस्वरूप बड़ी संख्या में मिट्टी के दीये तैयार हो रहे हैं। स्थानीय कुम्हारों के अनुसार, खोरीबाड़ी और आसपास के इलाके में तैयार हो रहे मिट्टी के दीये ना केवल पड़ोसी राष्ट्र नेपाल बल्कि पड़ोसी राज्य बिहार के विभिन्न हिस्सों में लोगों तक पहुंच रहे हैं। मिट्टी के दीये को लेकर इस बार कुम्हारों में अच्छी कमाई होने की उम्मीद जगी है। दीपावली आगामी 31 अक्टूबर गुरुवार को मनाई जाएगी। इस अवसर पर दीपों से अपने घर-आंगन को सजाने की तैयारी लोगों ने शुरू कर दी है। बदलते ट्रेंड के साथ बाजार में तरह-तरह के दीये आ चुके हैं। जिसे लोग खूब पसंद कर कर रहे हैं। वहीं चाइनीज दीयों के मुकाबले मिट्टी के दीये की मांग काफी है। दीपावली पर अच्छी कमाई होने की उम्मीद थामे कुम्हारों के चेहरे खिले हुए हैं। दीपावली और कालीपूजा के मद्देनजर मिट्टी के दीये, कुल्लड़ और मिट्टी की घरिया के अलावा मिट्टी के खिलौने बनाने का काम सितम्बर महीने से शुरू हो जाता है। दीवाली कुम्हारों के लिए इसलिए खास रही है। प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसलिए दिवाली में मिट्टी के दीये व खेल-खिलौनों की डिमांड बढ़ जाती है। इस संबंध में बतासी के कुम्हार रवींद्र पाल चौधरी ने बताया कि उन्हें इस बार अच्छी विक्री की उम्मीद है। मिट्टी के दीपक, मटकी आदि बनाने के लिए उनकी मां और पत्नी के साथ उनके बच्चे भी हाथ बंटा रहे हैं। कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के बर्तनों को आकार देने में व्यस्त है।
बिक्री अधिक होने की उम्मीद
बतासी के शुकारुजोत स्थित पालपाड़ा निवासी कुम्हार आशु पाल व सूचित पाल चौधरी बताते हैं कि लोग चीन के बने रंग-बिरंगे लाइटें खरीद रहे हैं फिर भी उम्मीद है कि मिट्टी के दीपक की ज्यादा बिक्री होगी। पिछले साल करीब 45 हजार दीपक व मिट्टी के अन्य खिलौने बेची थी। इस बार उम्मीद है कि 60 से 70हजार तक दीपक बेचे जा सकते हैं।
कुम्हारों को ईधन पड़ता है महंगा
कुम्हार बताते हैं कि मिट्टी के दीये, बर्तन तथा खिलौनों को पकाया जाना काफी भारी पड़ रहा है। पहले ईंधन इतना महंगा नहीं था पर अब ईंधन ने कुम्हारों का पसीना छुड़ा दे रहा है। कुम्हारों ने बताया कि उनके उत्पादों पर लागत अधिक आ रही है। मेहनत और अन्य खर्च के मुकाबले उतनी कमाई नहीं हो पाती है। मौसम अनुकूल है, इसलिए मिट्टी के सारे उत्पादों को धूप में सुखाना संभव हो रहा है।
बोले युवा मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे
प्राचीन संस्कृति के लिहाज से मिट्टी के दीपकों का ही दीपावली में महत्व होता है। इसे बच्चे व युवा खूब अच्छे से जान रहे हैं। यही वजह है कि अब चाइना के उत्पादों को छोड़कर देशी दीपकों की मांग बढ़ रही है। युवा पप्पू कुमार , आकाश कुमार , उत्तम सिंह आदि कहते हैं कि वे कुम्हारों से बने मिट्टी की दीपक ही जलाएंगे। साथ ही अन्य लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं।
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