साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी के सान्निध्य में मनाया गया आचार्य भिक्षु का जन्म जयंती और बोधि दिवस
शहर के आरबी लेन में स्थित तेरापंथ भवन में शुक्रवार को जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वीश्री स्वर्णरेखा जी ठाणा चार के सान्निध्य में तेरापंथ धर्म संघ के आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु स्वामी का 299 वां जन्म दिवस व 267 वां बोधि दिवस सानन्दपूर्वक संपन्न हुआ। आचार्य भिक्षु जिन्होंने तेरापंथ धर्म संघ की नींव रखी थी। कार्यक्रम की शुरुआत महिला मंडल के द्वारा मंगलाचरण से की गई जिसमें साध्वीश्री स्वर्ण रेखा जी ने “भिक्षु म्हारा प्रगटया जी भरत खेतर में “मे अपने स्वर दिये। सुंदर घोषल और प्रियंका घोषल ने अपनी भावों को गीतिका के माध्यम से प्रस्तुत किया। फारबिसगंज के श्रावक वास्तुविद आलोक दुगड़ ने अपने भिक्षु स्वामी को श्रद्धा समर्पित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु भगवान महावीर की प्रतिमूर्ति थे। हम सभी बहुत सौभागी है जो हमें मानव जन्म मिला और तेरापंथ जैसा शासन मिला है लेकिन यह जन्म तभी सफल हो सकता है जब हम आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारे और कर्मणा जैनी भी बने। हमें अपने सम्यकत्व को पुष्ट रखना चाहिए और जो हमें तेरापंथ जैसा धर्म संघ सोने की थाल के रूप में मिला है उसका उपयोग करना चाहिए। सम्यकत्व को पुष्ट करने के लिए “भिक्षु विचार दर्शन” और “अनुकंपा की चौपाई “जैसे ग्रंथो का अध्ययन करना चाहिए। तत्पश्चात साध्वी श्री स्वस्तिकाश्री जी ने आचार्य भिक्षु के जन्म से जुड़े अनछुए पहलुओं को बतलाया। साध्वीश्री सुधांशप्रभा जी ने बहुत ही रोचक ढंग से आचार्य भिक्षु क्या बांधा और क्या खोला के बारे में एक रोचक प्रस्तुति दी। साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु जैसे कुछ विरले संत ही होते हैं जो अपने साहस धैर्य का परिचय देते हुएअपने सिद्धांतों पर अडिग रहकर तेरापंथ जैसे धर्मसंघ की नींव डाली। उनके जन्म मृत्यु और कार्यों के साथ 13 की संख्या का एक अलग ही संयोग है। तेरस के दिन उनका जन्म तेरस के दिन उनका देहावसान तेरह संतों के साथ तेरह नियमों का पालन करते हुए तेरापंथ की स्थापना एक अद्भुत संजोग ही है। यहां तक कि उनके जन्म भूमि कंटालिया से मृत्यु स्थल सिरियारी के बीच भी 13 किलोमीटर की ही दूरी है। जन्म जयंती तो सभी की आती है लेकिन जो व्यक्ति संसार से अंजलि भर लेकर सागर जैसे देने वाले होते हैं उनको मृत्यु के बाद भी समय-समय पर याद किया जाता है। भिक्षु स्वामी में ऊंचाई के साथ गहराई भी थी। कार्यक्रम का कुशल संचालन नीलम बोथरा ने किया। श्रावक श्राविकाओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। धर्म संघ के प्रथम आचार्य आध प्रवर्तक को श्रद्धांजलि देने के लिए काफी श्रावक श्राविकाओं ने उपवास, संवर पौषध आदि का भी प्रत्याख्यान भी किया.साध्वी श्री ने सभी को ज्यादा से ज्यादा जप तप से जुड़ने की प्रेरणा भी दी। बड़ी संख्या में सभा, महिला मंडल, युवक परिषद, कन्या मंडल व ज्ञानशाला के बच्चे अपने आराध्य को श्रद्धांजलि देने वहां मौजूद थे।
सारस न्यूज, अररिया।
साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी के सान्निध्य में मनाया गया आचार्य भिक्षु का जन्म जयंती और बोधि दिवस
शहर के आरबी लेन में स्थित तेरापंथ भवन में शुक्रवार को जैन श्वेतांबर तेरापंथ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमण जी की विदुषी सुशिष्या साध्वीश्री स्वर्णरेखा जी ठाणा चार के सान्निध्य में तेरापंथ धर्म संघ के आद्य प्रवर्तक आचार्यश्री भिक्षु स्वामी का 299 वां जन्म दिवस व 267 वां बोधि दिवस सानन्दपूर्वक संपन्न हुआ। आचार्य भिक्षु जिन्होंने तेरापंथ धर्म संघ की नींव रखी थी। कार्यक्रम की शुरुआत महिला मंडल के द्वारा मंगलाचरण से की गई जिसमें साध्वीश्री स्वर्ण रेखा जी ने “भिक्षु म्हारा प्रगटया जी भरत खेतर में “मे अपने स्वर दिये। सुंदर घोषल और प्रियंका घोषल ने अपनी भावों को गीतिका के माध्यम से प्रस्तुत किया। फारबिसगंज के श्रावक वास्तुविद आलोक दुगड़ ने अपने भिक्षु स्वामी को श्रद्धा समर्पित करते हुए कहा कि आचार्य भिक्षु भगवान महावीर की प्रतिमूर्ति थे। हम सभी बहुत सौभागी है जो हमें मानव जन्म मिला और तेरापंथ जैसा शासन मिला है लेकिन यह जन्म तभी सफल हो सकता है जब हम आचार्य भिक्षु के सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारे और कर्मणा जैनी भी बने। हमें अपने सम्यकत्व को पुष्ट रखना चाहिए और जो हमें तेरापंथ जैसा धर्म संघ सोने की थाल के रूप में मिला है उसका उपयोग करना चाहिए। सम्यकत्व को पुष्ट करने के लिए “भिक्षु विचार दर्शन” और “अनुकंपा की चौपाई “जैसे ग्रंथो का अध्ययन करना चाहिए। तत्पश्चात साध्वी श्री स्वस्तिकाश्री जी ने आचार्य भिक्षु के जन्म से जुड़े अनछुए पहलुओं को बतलाया। साध्वीश्री सुधांशप्रभा जी ने बहुत ही रोचक ढंग से आचार्य भिक्षु क्या बांधा और क्या खोला के बारे में एक रोचक प्रस्तुति दी। साध्वी श्री स्वर्ण रेखा जी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा कि आचार्य भिक्षु जैसे कुछ विरले संत ही होते हैं जो अपने साहस धैर्य का परिचय देते हुएअपने सिद्धांतों पर अडिग रहकर तेरापंथ जैसे धर्मसंघ की नींव डाली। उनके जन्म मृत्यु और कार्यों के साथ 13 की संख्या का एक अलग ही संयोग है। तेरस के दिन उनका जन्म तेरस के दिन उनका देहावसान तेरह संतों के साथ तेरह नियमों का पालन करते हुए तेरापंथ की स्थापना एक अद्भुत संजोग ही है। यहां तक कि उनके जन्म भूमि कंटालिया से मृत्यु स्थल सिरियारी के बीच भी 13 किलोमीटर की ही दूरी है। जन्म जयंती तो सभी की आती है लेकिन जो व्यक्ति संसार से अंजलि भर लेकर सागर जैसे देने वाले होते हैं उनको मृत्यु के बाद भी समय-समय पर याद किया जाता है। भिक्षु स्वामी में ऊंचाई के साथ गहराई भी थी। कार्यक्रम का कुशल संचालन नीलम बोथरा ने किया। श्रावक श्राविकाओं का उत्साह देखते ही बन रहा था। धर्म संघ के प्रथम आचार्य आध प्रवर्तक को श्रद्धांजलि देने के लिए काफी श्रावक श्राविकाओं ने उपवास, संवर पौषध आदि का भी प्रत्याख्यान भी किया.साध्वी श्री ने सभी को ज्यादा से ज्यादा जप तप से जुड़ने की प्रेरणा भी दी। बड़ी संख्या में सभा, महिला मंडल, युवक परिषद, कन्या मंडल व ज्ञानशाला के बच्चे अपने आराध्य को श्रद्धांजलि देने वहां मौजूद थे।
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