• Sun. Dec 7th, 2025

Saaras News - सारस न्यूज़ - चुन - चुन के हर खबर, ताकि आप न रहें बेखबर

राजनीतिक मंचों से शिक्षकों को दूर रखना कितना उचित? अभिव्यक्ति पर रोक क्यों? गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्ति ज़रूरी, न कि विचारों से।

Rajeev Kumar, Saaras News

शिक्षक समाज का वह स्तंभ हैं जो न केवल ज्ञान का संचार करते हैं, बल्कि विचारों की दिशा भी तय करते हैं। वे बच्चों को सिर्फ किताबें नहीं पढ़ाते, बल्कि उन्हें सोचने, समझने और सवाल करने की ताकत देते हैं। ऐसे में अगर उन्हीं शिक्षकों को राजनीतिक बहस, विचार-विमर्श या भाषणों में भाग लेने से रोका जाए — तो यह न केवल उनकी स्वतंत्रता का हनन है, बल्कि लोकतंत्र की आत्मा पर भी चोट है।

दोहरी विडंबना: बोलने पर रोक, लेकिन गैर-शैक्षणिक कार्यों में झोंकना

आज बिहार सहित कई राज्यों में शिक्षकों को राजनीतिक मंचों पर बोलने, बहस करने या किसी विचारधारा पर राय रखने से रोका जा रहा है। लेकिन दूसरी ओर, उन्हें पढ़ाई के अलावा ऐसे कार्यों में लगाया जा रहा है जिनका शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। पढाई के अलावा शिक्षक को बहुत काम में लगाया जाता है – तब कोई क्यों नहीं कहता शिक्षक का काम पढ़ाना है – लिस्ट देखिये –

  1. चुनाव ड्यूटी – लोकसभा, विधानसभा, पंचायत चुनावों में मतदान केंद्रों पर ड्यूटी
  2. जनगणना कार्य – राष्ट्रीय जनगणना या जाति आधारित जनगणना में प्रतिनियुक्ति
  3. पल्स पोलियो अभियान – पोलियो ड्रॉप्स देने और सर्वेक्षण कार्य
  4. आंगनबाड़ी सर्वेक्षण – बच्चों की संख्या, पोषण स्तर आदि का डेटा संग्रह
  5. मिड-डे मील की निगरानी – भोजन की गुणवत्ता, मात्रा और वितरण की देखरेख
  6. डाटा एंट्री कार्य – शिक्षा विभाग के पोर्टल पर छात्र/शिक्षक डेटा अपलोड करना
  7. सरकारी योजनाओं का प्रचार-प्रसार – जैसे बेटी बचाओ, जल जीवन हरियाली आदि
  8. बीएलओ ड्यूटी – मतदाता सूची का सत्यापन और अपडेट
  9. कोविड-19 ड्यूटी – वैक्सीनेशन केंद्रों पर ड्यूटी, सर्वे और निगरानी
  10. विद्यालय भवन निर्माण की निगरानी – निर्माण कार्य की रिपोर्टिंग
  11. परीक्षा केंद्रों पर ड्यूटी – बोर्ड परीक्षाओं में केंद्राधीक्षक या परीक्षक के रूप में
  12. प्रखंड/जिला कार्यालयों में प्रतिनियुक्ति – शिक्षा विभाग के अन्य प्रशासनिक कार्यों में
  13. सीसीटीवी निगरानी रिपोर्टिंग – जिला शिक्षा कार्यालय में निगरानी कार्य
  14. कागजी कार्यवाही और रिपोर्ट तैयार करना – मासिक रिपोर्ट, उपस्थिति, निरीक्षण रिपोर्ट आदि

इन कार्यों से शिक्षकों की शैक्षणिक गुणवत्ता प्रभावित होती है, और वे अपने मूल कार्य — यानी पढ़ाने — से दूर होते जा रहे हैं।

हाल ही में बिहार सहित कई राज्यों में शिक्षकों को राजनीतिक मंचों पर बोलने, बहस करने या किसी विचारधारा पर सार्वजनिक रूप से राय रखने से रोका गया है। यह प्रतिबंध कई स्तरों पर चिंताजनक है:

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन
संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) के तहत हर नागरिक को बोलने और विचार व्यक्त करने का अधिकार है। शिक्षक भी नागरिक हैं — उन्हें यह अधिकार क्यों नहीं?

लोकतांत्रिक भागीदारी से वंचित करना
शिक्षक समाज के जागरूक वर्ग हैं। अगर वे राजनीतिक मुद्दों पर चर्चा नहीं करेंगे, तो कौन करेगा?

छात्रों पर अप्रत्यक्ष असर
जब शिक्षक खुद विचारों से डरेंगे, तो वे छात्रों को स्वतंत्र सोच कैसे सिखा पाएंगे?

शिक्षक की गरिमा को ठेस
उन्हें सिर्फ सरकारी आदेशों का पालन करने वाला कर्मचारी बना देना, उनके बौद्धिक योगदान को नज़रअंदाज़ करना है।

शिक्षक कोई प्रचारक नहीं हैं — वे विचारक हैं। उन्हें चुप कराना लोकतंत्र को कमजोर करना है। सरकार को चाहिए कि वह शिक्षकों को गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्त करे और उन्हें सामाजिक संवाद का हिस्सा बनाए। एक शिक्षक जब बोलता है, तो समाज सोचता है। और जब शिक्षक चुप हो जाता है, तो समाज भी मौन हो जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *