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सुप्रीम कोर्ट का सरकार से तीखा सवाल, क्या मुस्लिम होंगे हिंदू मंदिर बोर्ड का हिस्सा?

सारस न्यूज़, वेब डेस्क।

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को वक्फ संशोधन अधिनियम 2025 की कुछ धाराओं पर अस्थायी रोक लगाने का संकेत दिया है। इनमें केंद्रीय वक्फ परिषद और राज्य वक्फ बोर्डों में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति, वक्फ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करना और जिलाधिकारियों को वक्फ संपत्ति की वैधता तय करने का पूर्णाधिकार देना शामिल है।

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या सरकार हिंदू धार्मिक न्यासों में भी गैर-हिंदुओं को शामिल करने के लिए तैयार है। पीठ में जस्टिस संजय कुमार और के.वी. विश्वनाथन भी शामिल थे। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल द्वारा न्यायाधीशों की धार्मिक पहचान पर टिप्पणी से कोर्ट ने असहमति जताई।

हालांकि, अदालत ने यह भी माना कि नए कानून में कुछ सकारात्मक बिंदु हैं, जिन्हें केंद्र सरकार को अगली सुनवाई में विस्तार से रखना चाहिए। यह अधिनियम मोदी सरकार द्वारा पारित किया गया था, जिसका विपक्ष और मुस्लिम संगठनों द्वारा विरोध किया गया था।

करीब दो घंटे चली सुनवाई के दौरान 120 से अधिक याचिकाओं और जवाबी याचिकाओं पर बहस हुई, जो अभी अधूरी रही। अब इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार दोपहर 2 बजे होगी।

मुख्य न्यायाधीश ने सुनवाई के अंत में यह स्पष्ट किया कि अदालत एक अंतरिम आदेश पारित कर सकती है, जिसमें निम्नलिखित निर्देश हो सकते हैं:

  • जो संपत्तियां अदालत द्वारा वक्फ घोषित की जा चुकी हैं, उन्हें तब तक डिनोटिफाई नहीं किया जाएगा जब तक सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अंतिम निर्णय नहीं लेता। इसमें ‘वक्फ-बाय-यूजर’ संपत्तियां भी शामिल हैं, जो वर्षों से धार्मिक या सामाजिक उपयोग में रही हैं, भले ही दस्तावेजी स्वामित्व स्पष्ट न हो।
  • नए कानून की वह धारा, जो कहती है कि जब तक कलेक्टर जांच कर यह तय न करे कि कोई संपत्ति सरकारी है या नहीं, तब तक उसे वक्फ संपत्ति नहीं माना जाएगा—इस पर अस्थायी रोक लगाई जा सकती है।
  • राज्य वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में केवल मुस्लिम सदस्य ही शामिल किए जाएं, सिवाय पदेन सदस्यों के।

सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, “जब कानून बनता है, तो हम शुरुआत में आदेश नहीं देते, लेकिन वक्फ-बाय-यूजर जैसी व्यवस्था के मामले में गंभीर परिणाम हो सकते हैं।”

अदालत ने देश में कुछ स्थानों पर हो रही हिंसा पर चिंता व्यक्त की और कहा कि जब मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित हो, तो ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए। इस संदर्भ में बंगाल का नाम नहीं लिया गया, जहां वक्फ कानून के विरोध में हिंसक घटनाएं सामने आई थीं।

न्यायमूर्ति विश्वनाथन ने सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा कि जब हिंदू धर्मस्थलों के प्रबंधन बोर्डों में गैर-हिंदुओं को अनुमति नहीं है, तो वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिमों की नियुक्ति का औचित्य क्या है।

मुख्य न्यायाधीश ने तीखे लहजे में पूछा, “क्या अब आप यह कहने जा रहे हैं कि मुस्लिम भी हिंदू मंदिर बोर्डों का हिस्सा होंगे? अगर हां, तो यह खुले तौर पर कहिए।”

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मुस्लिम संगठनों की ओर से बहस करते हुए कहा कि अधिनियम में कुछ वास्तविक चिंताएं हैं, लेकिन सभी वक्फ संपत्तियों को एक ही दृष्टि से देखना उचित नहीं।

अदालत ने यह भी आपत्ति जताई कि संशोधित कानून की एक धारा किसी न्यायिक निर्णय को अमान्य घोषित करती है, जो संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ है। न्यायमूर्तियों ने कहा, “कोई भी विधायिका किसी न्यायिक निर्णय को अमान्य नहीं घोषित कर सकती, वह केवल कानून के आधार को हटा सकती है।”

यह मामला अभी विचाराधीन है और अगली सुनवाई में न्यायालय अंतरिम निर्देश जारी कर सकता है।


By Hasrat

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